नई दिल्ली। सामाजिक कार्यकर्ता और प्रख्यात वकील प्रशांत भूषण ने न्यायालय की अवमानना मामले में उच्चतम न्यायालय से माफी मांगने से सोमवार को इनकार कर दिया।
भूषण ने अपने ट्वीट में शीर्ष न्यायालय और इसके न्यायाधीशों की आलोचना करने के न्यायालय की अवमानना मामले में आज अपना लिखित बयान दाखिल किया। उन्होंने कहा कि वह न्यायालय की अवमानना मामले में बिना शर्त माफी नहीं मागेंगे, जिसमें उन्हें दोषी ठहराया गया है।
वरिष्ठ वकील ने कहा अगर वह माफी मांगते हैं तो यह उनकी ‘अंतरात्मा की अवमानना’ होगी। उन्होंने कहा कि सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने मुझे न्यायालय में दिए मेरे बयान पर पुनर्विचार करने के लिए दो-तीन दिन का समय दिया है।
भूषण ने अपने लिखित बयान में कहा कि मेरे लिए इस संस्था (सुप्रीमकोर्ट) की सेवा करना और सार्वजनिक हितों से संबंधित कई महत्वपूर्ण मामलों को इसके समक्ष लाना सौभाग्य की बात रहा है। उन्होंने कहा कि मैं इस अहसास के साथ जीता हूं कि मैंने जितना दिया है उससे कहीं अधिक इस संस्था से पाया है।
भूषण ने कहा कि मेरे मन में उच्चतम न्यायालय जैसी संस्था के लिए बहुत सम्मान है। मैं विश्वास करता हूं कि मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए सर्वोच्च न्यायालय अंतिम गढ़ है।
उन्होंने कहा कि उच्च्तम न्यायालय को लोकतांत्रिक दुनिया में सबसे शक्तिशाली न्यायालय सही अर्थों में ही कहा गया है। यह दुनिया भर के न्यायालयों के लिए अक्सर उदाहरण पेश करता है।
भूषण ने कहा कि आज इस मुश्किल समय में कानून और संविधान के शासन को सुनिश्चित करने के लिए लोगों की उम्मीदें उच्चतम न्यायालय पर टिकी हुई हैं। भूषण ने अपने लिखित बयान में कहा कि मैं अच्छे उद्देश्य से अपने विचार व्यक्त करता हूं, मैं उच्चतम न्यायालय या किसी विशेष मुख्य न्यायाधीश की निंदा नहीं करता हूं बल्कि रचनात्मक आलोचना करता हूं ताकि शीर्ष न्यायालय संविधान और लोगों के अधिकारों के संरक्षक की भूमिका में बना रहे।
उन्होंने कहा कि मेरे ट्वीट ने मेरे विश्वास का प्रतिनिधित्व किया। ये ट्वीट एक नागरिक और इस न्यायालय के एक वफादार सदस्य के रूप में मेरे उच्च दायित्वों केअनुरूप थे। उन्होंने कहा कि अपने विश्वास व्यक्त करने के लिए सशर्त या बिना शर्त माफी मांगना निष्ठाहीन से भरा कार्य होगा।
इससे पहले 14 अगस्त को न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा के नेतृत्व में शीर्ष न्यायालय की एक पीठ ने भूषण को उनके ट्वीट के लिए न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराया था। भूषण ने 27 जून को न्यायपालिका के छह वर्ष के कामकाज को लेकर एक टिप्पणी की थी, जबकि 22 जुलाई को शीर्ष न्यायालय के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे तथा चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों को लेकर दूसरी टिप्पणी की थी।