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बाल्यकाल से ही अतिथि देवो भवः का भाव हो : मोहन भागवत - Sabguru News
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बाल्यकाल से ही अतिथि देवो भवः का भाव हो : मोहन भागवत

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बाल्यकाल से ही अतिथि देवो भवः का भाव हो : मोहन भागवत

कानपुर। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आज हिन्दुत्व के साथ परिवार का भी महत्व समझाया और कहा कि परिवार केवल पति,पत्नी और एक या दो बच्चे ही नहीं हैं।

कानपुर में संघ की दो दिवसीय बैठक के आज अंतिम दिन कई सामाजिक मुद्दों पर विचार विमर्श के बाद  मोहन भागवत ने कहा कि परिवार केवल पति, पत्नी और बच्चे नहीं हैं। परिवार में बुआ, चाचा, चाची, दादा, दादी आदि भी शामिल होते हैं।

सभी रिश्तों को निभाने के लिए बच्चे मेंं प्रारंभिक काल से ही संस्कारी होना बेहद जरूरी है, इसलिए प्रारंभिक काल से ही उसके संस्कार निर्माण करने की योजना माता पिता को बनानी चाहिए। बच्चे के अंदर बाल्यकाल से ही अतिथि देवो भवः का भाव उत्पन्न करना चाहिए। घर में महापुरुषों के चित्र लगाते हुए पौराणिक कहानियों का भी स्मरण बच्चों को कराना चाहिए।

उन्होंने हिन्दू आध्यात्मिक एंव सेवा फाउंडेशन द्वारा किए गए कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा की कार्यकर्ताओं से देशहित,प्रकृति हित में किसी भी सामाजिक सगंठन,धार्मिक संगठन द्वारा किये जाने किये जाने वाले कार्य में संघ के स्वयंसेवकों को बढकर सहयोग करना चाहिए।

सामाजिक समरसता के विषय पर भी उन्होंने कार्यकर्ताओं से जानकारी ली। सरसंघचालक ने कहा कोई भी ऐसी जाति नही जिसमें श्रेष्ठ, महान तथा देशभक्त लोगों ने जन्म नहीं लिया हो। मदिंर, श्मशान और जलाशय पर सभी जातियों का समान अधिकार है। महापुरुष केवल अपने श्रेष्ठ कार्यों से महापुरुष हैं और उनको उसी दृष्टि से देखे जाने का भाव समाज में बनाए रखना है।

संबोधन के अंत में उन्होंनेे कहा कि गौ आधारित कृषि को महत्व देने की आवश्यकता है। श्रद्धा के भाव के साथ गाय का वैज्ञानिक महत्व भी है।