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चीन का आधिपत्य स्वीकारना फारुख अब्दुल्ला की बडी चाल - Sabguru News
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चीन का आधिपत्य स्वीकारना फारुख अब्दुल्ला की बडी चाल

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चीन का आधिपत्य स्वीकारना फारुख अब्दुल्ला की बडी चाल

जयपुर। जम्मू-कश्मीर के भूतपूर्व मुख्यमंत्री तथा नेशनल कांफ्रेंस के सांसद डॉ. फारुख अब्दुल्ला के काल में सहस्रों हिन्दुओं का वंशविच्छेद हुआ, मुठभेड में मारे गए आतंकवादियों के परिजनों को आर्थिक सहायता देने की योजना बनी, कश्मीर की जनता भारत में रहे अथवा नहीं, इस पर जनमत लेने की मांग हुई तथा म्यांमार के सहस्रों रोहिंग्या मुसलमानों को अवैध रूप से कश्मीर में बसाना आदि अनेक अलगाववादी और देशविरोधी कृत्य हुए हैं।

ऐसे अब्दुल्ला के मुंह में कश्मीरी जनता को चीन का आधिपत्य स्वीकारने की भाषा आश्‍चर्यजनक नहीं है। अन्य देश में ऐसा देशविरोधी वक्तव्य हुआ होता, तो उस व्यक्ति को तत्काल मृत्युदंड दिया जाता। इसलिए खरा दोष हमारी व्यवस्था में है, जो ऐसे असंख्य देशविरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी प्रवृत्तियों को पोसने का काम करती है। यह बात रूट्स इन कश्मीर के संस्थापक तथा कश्मीरी समस्याओं के जानकार सुशील पंडित ने कही।

वे हिन्दू जनजागृति समिति आयोजित चर्चा हिन्दू राष्ट्र की विशेष परिसंवाद शृंखला के ‘क्या कश्मीरी मुसलमान चीन के गुलाम बनना चाहते हैं? ऑनलाइन परिसंवाद में वे बोल रहे थे। फेसबुक और यू ट्यूब के माध्यम से यह परिसंवाद 38,768 लोगों ने प्रत्यक्ष देखा तथा 1 लाख 18 सहस्र 309 लोगों तक यह कार्यक्रम पहुंचा।

समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक डॉ. चारुदत्त पिंगळे ने कहा कि चीन में इस्लाम को कोई स्थान नहीं है। वहां मुसलमानों पर अमानवीय अत्याचार, अनेक मस्जिदें तोडने से कुरान बदलने तक कृत्य चल रहे हैं। उस संबंध में फारुख अब्दुल्ला को आपत्ति नहीं है परंतु धारा 370 और 35 (अ) हटाने पर उन्होंने सीधे चीन के आधिपत्य की भाषा बोलने को नेशनल कांफ्रेंस नहीं, अपितु एन्टी नेशनल कांफ्रेंस कहना पडेगा।

वर्ष 1974 में ‘जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट (जेकेएलएफ)’ के आतंकवादियों के साथ फारुख अब्दुल्ला का छायाचित्र प्रकाशित हो चुका है। इससे उनकी मानसिकता स्पष्ट होती है। जेकेएलएफ के युवक बंदूक लेकर देश पर आक्रमण कर रहे हैं तथा उन्हें बल देने का काम अब्दुल्ला कर रहे हैं।

इस समय जम्मू इकजुट के अध्यक्ष अधिवक्ता अंकुर शर्मा ने कहा कि फारुख अब्दुल्ला के वक्तव्य को जम्मू-कश्मीर की जनता का तीव्र विरोध है। हमारी दृष्टि से फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, मेहबूबा मुफ्ती, अलगाववादी गिलानी, यासीन मलिक तथा जिहादी आतंकवादी और आईएसआई आदि सभी एक ही माला के मोती हैं। इन लोगों को जम्मू-कश्मीर को हिन्दूविहीन बनाना है तथा केवल इस्लामी सत्ता लानी है। उसके लिए जिहाद पुकारा है। यह समस्या पहचान कर उस पर उपाय करने चाहिए।

कश्मीरी विचारक ललित अम्बरदार ने कहा कि अब्दुल्ला का वक्तव्य 370 धारा हटाने के कारण हुई मानसिक बीमारी है। उसके साथ ही कश्मीर में हिन्दुओं का नरसंहार क्यों हुआ इसका उत्तर खोजें तो कश्मीर हिन्दू संस्कृति का प्रतीक है तथा उस पर यह जानबूझकर किया गया आक्रमण है। यदि हमने कश्मीर के संबंध में समझौता किया तो देश के प्रत्येक स्थान पर कश्मीर जैसी भयंकर परिस्थिति उत्पन्न हो जाएगी।