पटना। देश की राजनीति में 51 साल के लंबे सफर में जनता की नब्ज को बखूबी समझने, सियासी हवा के रुख को भांपने और विरोधियों के दिल में भी जगह बनाने वाले दूरदर्शी जनप्रिय नेता रामविलास पासवान के निधन से आज एक युग का अंत हो गया।
वर्ष 1989 से सिर्फ दो प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर और पीवी नरसिंह राव को छोड़कर विश्वनाथ प्रताप सिंह, एचडी देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, डाॅ. मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री रहे पासवान का जन्म बिहार के खगड़िया जिले के शहरबन्नी में 5 जुलाई 1946 को हुआ था। पटना विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर और कानून की डिग्री हासिल करने वाले पासवान को एक पुत्र और तीन पुत्री है।
वर्ष 2000 में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) से अलग होकर पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) का गठन किया और तब से वर्ष 2019 तक वह इसके अध्यक्ष रहे। पांच नवंबर 2019 को पासवान ने पार्टी की कमान अपने पुत्र चिराग पासवान को सौंप दी।
वर्ष 1969 में बिहार विधानसभा के सदस्य बनने वाले पासवान ने जेपी आंदोलन के दौरान बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और उस दौरान आपातकाल का विरोध करने के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। वर्ष 1984 और वर्ष 2009 के संसदीय चुनाव को छोड़कर पासवान लगातार 2014 तक बिहार से लोकसभा के लिए चुने जाते रहे हैं।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में स्वास्थ्य कारणों से वह मैदान में नहीं उतरे और राज्यसभा के जरिए उच्च सदन तक पहुंचे। सवान 10 बार लोकसभा के सदस्य रहे। श्रम, कल्याण, रेल, संचार, कोयला एवं खान, दूरसंचार और खाद्य एवं उपभोक्ता जैसे मंत्रालय को चलाने का अनुभव रखने वाले श्री पासवान दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए सदैव कार्य करते रहे हैं, लेकिन अन्य वर्गों से भी उनका नाता बहुत गहरा था।
पासवान 1977 में हाजीपुर (सु) संसदीय क्षेत्र से पहली बार चार लाख 24 हजार 545 मतों के अंतर से चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे थे और यह जीत के अंतर का विश्व रिकाॅर्ड था। इसके बाद पासवान वर्ष 1980 में फिर से हाजीपुर (सु) से ही चुनाव जीत कर दुबारा संसद में पहुंचे।
वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के कारण उभरी सहानुभूति लहर में श्री पासवान हाजीपुर (सु) से चुनाव हार गये, लेकिन वर्ष 1989 में पासवान ने जीत के अंतर का अपना ही पुराना विश्व रिकाॅर्ड तोड़ दिया। उस चुनाव में पासवान पांच लाख चार हजार 448 मतों के अंतर से हाजीपुर (सु) से चुनाव जीत कर पहली बार वीपी सिंह सरकार मे केन्द्रीय मंत्री बने।
इसके बाद पासवान ने अपना चुनाव क्षेत्र बदल लिया और वर्ष 1991 का चुनाव वह रोसड़ा (सु) से लड़े और विजयी हुए। इसके बाद वर्ष 1996 में वह फिर अपने पुराने संसदीय क्षेत्र हाजीपुर (सु) लौट आए और उस चुनाव में भी वह विजयी हुए। पासवान इसके बाद 1998 और 1999 के चुनाव में हाजीपुर (सु) से लोकसभा पहुंचे।
गुजराल सरकार में पासवान जब रेल मंत्री बने तो उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र हाजीपुर में पूर्व-मध्य रेल (ईसीआर) का क्षेत्रीय मुख्यालय बनवा दिया। वह वाजपेयी सरकार में संचार, कोयला और खान मंत्री रहे लेकिन वर्ष 2002 के गुजरात दंगा को लेकर उन्होंने केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अलग हो गए थे।
इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव मे हाजीपुर संसदीय क्षेत्र की जनता ने उन्हें दो लाख से अधिक मतों से विजयी बनाकर उनके फैसले को सही ठहराया। इसके बाद पासवान कांग्रेस नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में रासायन एवं उर्वरक मंत्री बने।
वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में पासवान हाजीपुर (सु) सीट से हार गए। उस चुनाव में उनकी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) का खाता तक नहीं खुला। इसके बाद वह लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सहयोग से राज्यसभा में पहुंचे लेकिन इस बार उन्हें मनमोहन सरकार में जगह नहीं मिली।
वर्ष 2014 के चुनाव में पासवान ने हवा का रुख पहले ही भांप लिया और फिर से भारतीय जनता पार्टी से नाता जोड़कर राजग में लौट आए। इस बार के चुनाव में पासवान, उनके पुत्र चिराग पासवान और छोटे भाई रामचन्द्र पासवान भी संसद में पहुंच गए। इस चुनाव में लोजपा को अभूतपूर्व सफलता मिली और उसके सात में से छह प्रत्याशी विजयी होकर संसद में पहुंच गए।
केन्द्रीय खाद्य आपूर्ति और उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान का निधन