पाली। कोरोना वायरस के बाद उपजी स्थितियों से निजी शिक्षण संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों को वेतन के लिए तरसना पड रहा है। शिक्षण संस्थान संचालक भी उनकी हालत पर तरस नहीं खा रहे। ऐसे में शिक्षक वर्ग के सब्र का बांध छलकने लगा है।
मंगलवार को कलक्टर अंशदीप को सौंपे गए ज्ञापन में निजी शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों ने अपनी व्यथा बताते हुए कहा कि कोरोना काल में निजी शिक्षक 7 माह से घर में बैठे हैं। लगातार स्कूले बंद रहने से आर्थिक संकट बढता जा रहा है। सरकारी नियमानुसार तीन माह का वेतन देने का प्रावधान करने के बावजूद स्कूल संचालकों की मनमर्जी के चलते शिक्षकों को वेतन नहीं दिया जा रहा।
पीडित शिक्षकों ने ज्ञापन में बताया कि स्कूलों में अभिभावकों से 12 महीने का शुल्क वसूलने के बावजूद शिक्षकों को छुट्टियों का वेतन कभी नहीं दिया जाता। कई विद्यालयों में शिक्षकों को नियमित नहीं करके प्रतिवर्ष नई नियुक्ति प्रदान की जाती है। इस प्रकार निजी संचालक मनमर्जी से शिक्षकों का धन हड़प रहे हैं।
कई विद्यालयों के संचालक शिक्षकों के साथ सामान्य मानवीय व्यवहार भी नहीं करते और एक से अधिक अवकाश लेने पर हाथों हाथ वेतन कटौती कर देते हैं और गर्मी की छुट्टियां पड़ते ही उन्हें सेवामुक्त भी कर देते हैं।
कोरोना संकट के दौरान इन संचालकों ने शिक्षकों को 15 मार्च से ही वेतन देना बंद कर दिया, जबकि लाकडाउन 22 मार्च से लगा था और शिक्षकों ने 21 मार्च तक अपनी सेवाएं दी।
शिक्षकों ने अपनी मर्जी से अवकाश नहीं रखा और सरकार की ओर से तीन माह की आधे वेतन की घोषणा के बावजूद ये संचालक टस से मस नहीं हो रहे और स्वयं का रोना ही सरकार व प्रशासन के आगे रो रहे हैं। आनलाइन शिक्षण के नाम पर 10 फीसदी शिक्षकों को बुलाया जाता है बाकि 90 प्रतिशत दो वक्त की रोजी रोटी के लिए तरस रहे हैं।
कलक्टर ने ज्ञापन के आधार पर जांच कराने तथा जिला शिक्षा अधिकारी से इस बारे में रिपोट लेने का शिक्षकों को भरोसा दिलाया। ज्ञापन देने वालों में संघ अध्यक्ष प्रमोद श्रीमाली, हर्षवर्धन जोशी, धर्मेन्द्र कुमार, लोकेन्द्र सिंह कुम्पावत, आजाद सैन, ऋषि कुमार, मनीष कुमार आदि कई शिक्षक शामिल रहे।