जयपुर। राजस्थान के युवा एवं खेल मामलात राज्यमंत्री अशोक चांदना ने कहा है कि राज्य सरकार ने गुर्जर आंदोलन से जुड़ी मानने योग्य सभी मांगों को मान लिया है एवं कर्नल बैंसला और संघर्ष समिति आंदोलन की राह छोड़ वार्ता के लिए आगे आना चाहिए।
चांदना ने आज कहा कि अति पिछड़ा वर्ग के शैक्षणिक, सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पिछली दो सरकारों में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। साथ ही वर्तमान कार्यकाल में भी लगातार ऎसे फैसले लिए हैं, जिनसे ये वर्ग समाज की अग्रणी पंक्ति मेें खड़ा हो सके।
उन्होंने कहा है कि अति पिछड़ा वर्ग के उत्थान के लिए पूरी संवेदनशील सोच रखते हुए गुर्जर, राईका, बंजारा, गाड़िया लुहार एवं गडरिया के लिए पांच प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान, 10 आवासीय विद्यालयों का निर्माण, आरक्षण के दौरान दर्ज मुकदमों का निस्तारण, मृतकों के परिवारजनों को आर्थिक सहायता, देवनारायण योजना में विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति, सरकारी भर्तियों में नियुक्ति जैसे बडे निर्णय लिए हैं।
वर्तमान सरकार के कार्यकाल में अति पिछड़ा वर्ग के अभ्यर्थियों को 2491 नियुक्तियां दी जा चुकी हैं और प्रक्रियाधीन भर्तियों में 1356 पद इस वर्ग के लिए आरक्षित हैं। सुप्रीम कोर्ट में प्रकरण विचाराधीन होने के बावजूद भी एमबीसी वर्ग के 1252 अभ्यर्थियों को नियमित वेतन श्रृंखला दिए जाने का निर्णय लिया गया है। इन निर्णयों से अति पिछड़ा वर्ग की तरक्की के रास्ते खुले हैं।
चांदना ने कहा कि अति पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण से सम्बंधित प्रावधान को 9वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए पूर्व में भारत सरकार को 22 फरवरी 2019 एवं 21 अक्टूबर 2020 को पत्र लिखा गया है। अब तीसरी बार फिर भारत सरकार को पत्र लिखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय केंद्र सरकार के स्तर से होना है।
आरक्षण संघर्ष समिति एवं समाज के लोग इसके लिए केंद्र सरकार से संवाद भी करे। उन्होंने कहा है कि कैलाश गुर्जर, मानसिंह गुर्जर एवं बद्री गुर्जर के परिवार जनों को पांच-पांच लाख रूपए की आर्थिक सहायता तथा परिवार के एक-एक सदस्य को नगर परिषद नगर निगम में नौकरी दिए जाने का निर्णय भी ले लिया गया है।
उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार ने कानूनी रूप से संभव सभी मांगे मान ली हैं। इसके बावजूद आंदोलन जारी रखना उचित नहीं है। आंदोलन से आम आदमी को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। बीमार, परीक्षार्थी एवं अन्य अतिआवश्यक कार्य से आने-जाने वाले व्यक्तियों को बेहद पीड़ा से गुजरना पड़ता है।
आंदोलन के कारण व्यक्तियों को कई बार ऎसी हानि का सामना करना पड़ता है, जिसकी भरपाई पूरे जीवनभर नहीं हो सकती। उन्होंने कहा है कि आंदोलन के दौरान कई बार परिस्थितिवश दर्ज होने वाले मुकदमे भी युवाओं की नौकरी में बाधा बनते हैं, जो पीड़ादायक होता है। साथ ही बार-बार आंदोलन से पूरे समाज की छवि को भी नुकसान होता है।