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अर्नब, सहअभियुक्तों को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का ‘सुप्रीम’ आदेश - Sabguru News
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अर्नब, सहअभियुक्तों को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का ‘सुप्रीम’ आदेश

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अर्नब, सहअभियुक्तों को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का ‘सुप्रीम’ आदेश

नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में रिपब्लिक टीवी के प्रमुख सम्पादक अर्नब गोस्वामी एवं सहअभियुक्तों को बड़ी राहत प्रदान करते हुए अंतरिम जमानत पर रिहा करने का बुधवार को आदेश दिया।

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की अवकाशकालीन खंडपीठ ने अर्नब एवं अन्य अभियुक्तों की बॉम्बे उच्च न्यायालय के खिलाफ अपील स्वीकार करते हुए सभी को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का महाराष्ट्र पुलिस को निर्देश दिया। न्यायालय ने कहा कि वह अपने आदेश का तथ्यात्मक विवरण बाद में जारी करेगा। तब तक अभियुक्तों की जमानत पर रिहाई के आदेश पर तत्काल प्रभाव से अमल किया जाए।

खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि अभियुक्तों को अंतरिम जमानत पर रिहाई के लिए 50 हजार रुपए का निजी मुचलका देना होगा। साथ ही उन्हें जांच में पूरा सहयोग करना होगा। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने अर्नब एवं अन्य की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं खारिज करते हुए उन्हें निचली अदालत के समक्ष नियमित जमानत याचिका दायर करने का निर्देश दिया था, जिसे उन्होंने शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी।

नियमित समय 10:30 बजे से करीब 10 मिनट देर से शुरू सुनवाई शुरू होते ही अर्नब की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने अपने मुवक्किल के साथ हुई मुंबई पुलिस की ज्यादती और राज्य की मशीनरी के दुरुपयोग का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि अर्नब के खिलाफ प्राथमिकी पांच मई 2018 को दर्ज की गई थी। मसला यहां यह है कि मामले की फिर से जांच की शक्ति का दुरुपयोग किया गया। इसके समर्थन में उन्होंने क्लोजर रिपोर्ट पढ़कर खंडपीठ को सुनाया।

साल्वे ने कहा कि मृतक अन्वय नायक ने आत्महत्या अर्नब के उकसावे के कारण नहीं की, बल्कि आर्थिक तंगी में की, जबकि उनकी मां की हत्या गला दबाकर की गई थी। उन्होंने हाल के दिनों में अर्नब के खिलाफ कई तरह के मामले दर्ज किए जाने का भी लेखा-जोखा प्रस्तुत किया। उन्होंने टीआरपी केस से लेकर पालघर एवं आत्महत्या के मामलों का जिक्र करते हुए महाराष्ट्र सरकार की नीयत पर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि यदि उनके मुवक्किल को अंतरिम जमानत दे दी जाती तो पहाड़ नहीं टूट जाता।

महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने साल्वे की इन दलीलों का यह कहते हुए खंडन किया कि यहां पालघर या टीआरपी या किस मामले पर जिरह हो रही है, यह पता ही नहीं चल रहा है। सिब्बल ने कहा कि एक व्यक्ति का पैसा बकाया है और उसने आत्महत्या की है, इस तथ्य में कोई झूठ नहीं है, लेकिन न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सिब्बल से पूछा कि मान भी लें कि अर्नब के यहां पैसे बकाया थे, तो क्या यह आत्महत्या के लिए उकसावे की श्रेणी में आता है?

महाराष्ट्र पुलिस की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने दलील दी कि हाईकोर्ट के समक्ष याचिका संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत थी और उसने याचिकाकर्ता को उचित फोरम पर जाने को कहा है। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने सीआरपीसी की धारा 439 के तहत सेशन कोर्ट जाने को कहा है। यही न्यायिक प्रक्रिया की मांग है। उन्होंने कहा कि न तो इस मामले में जांच पूरी हुई है और न ही याचिकाकर्ता का न्यायिक उपाय समाप्त हुआ है। धारा 439 के तहत उपाय मौजूद है।

भोजनावकाश के बाद मामले की सुनवाई दोबारा शुरू होने पर साल्वे ने अर्नब की गिरफ्तारी में पुलिसिया उत्पीड़न का एक बार फिर जिक्र किया। उन्होंने कहा कि 20 से 30 सशस्त्र पुलिसकर्मी अर्नब के घर पहुंचते हैं और उन्हें बिना नोटिस दिए गिरफ्तार करके मुंबई से रायगढ़ ले आते हैं। उन्होंने पूछा कि क्या अर्नब आतंकवादी हैं? क्या उनके खिलाफ हत्या के आरोप हैं?

साल्वे ने कहा कि यह सवाल विचारनीय है कि क्या जांच फिर से शुरू की जानी चाहिए या नहीं? यदि उच्च न्यायालय को लगता था कि विचार के योग्य कई गम्भीर सवाल हैं तो अर्नब को क्यों नहीं अंतरिम जमानत पर रिहाई के आदेश दिए गए?

मामले के एक अन्य सह अभियुक्त फिरोज मोहम्मद शेख की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि अभियुक्त का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन प्राथमिकी में ‘समान इरादे’ का उल्लेख किया गया है। उन्होंने कहा कि मृतक अन्वय नायक की पत्नी अक्षता नायक की शिकायत में उनके मुवक्किल के खिलाफ कोई मामला नहीं है।

सह अभियुक्त नीतीश शारदा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि उनके मुवक्किल की उस कंपनी में महज 0.3 प्रतिशत की हिस्सेदारी है, जिसने नायक की कंपनी के साथ करार किया था। उनके मुवक्किल की उम्र महज 27 साल है और वह अन्वय नायक से कभी मिले तक नहीं।

इस बीच सिब्बल ने दोबारा दलील दी कि प्राथमिकी केवल प्रथम सूचना है और जांच जारी है। ऐसे में साक्ष्य को देखे बिना जमानत नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा कि मामले की पुनर्जांच पर बहस बेमानी है, क्योंकि सीआरपीसी की धारा 154 के तहत जांच पूरी नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि आप यह क्यों मानकर चल रहे हैं कि सेशन कोर्ट ऐसा कोई आदेश सुनाएगा जो निष्पक्ष और न्यायोचित नहीं होगा। अंतिम निर्णय कल ही आ रहा है।

इस बीच न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) ने अपने आदेश में कहा है कि न तो आरोपी की व्यक्तिगत भूमिका का निर्धारण किया गया है, न ही भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत उसकी गिरफ्तारी के लिए कोई प्रथम दृष्ट्या आधार बनाया गया है।

इस पर साल्वे ने कहा कि इसके बावजूद सिब्बल की यह दलील है कि केवल प्राथमिकी पढ़कर ही जमानत मंजूर नहीं की जा सकती, जबकि इस मामले में हिरासत और गिरफ्तारी केवल प्राथमिकी के आधार पर हुई है। उसके बाद न्यायालय ने अंतरिम जमानत पर रिहाई के आदेश सुनाए।