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मतदान में NOTA का मतलब जानते हैं आप? निकाय चुनाव में क्यों है जरूरी

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मतदान में NOTA का मतलब जानते हैं आप? निकाय चुनाव में क्यों है जरूरी

सबगुरु न्यूज। अजमेर जिले में निकाय चुनाव का माहौल है। आपको किसी राजनीतिक पार्टी का कोई उम्मीदवार पसंद न हो और आप उनमें से किसी को भी अपना वोट देना नहीं चाहते हैं तो फिर आप क्या करेंगे?

निर्वाचन आयोग ने ऐसी व्यवस्था की है कि वोटिंग प्रणाली में एक ऐसा तंत्र विकसित किया जाए ताकि यह दर्ज हो सके कि कितने फीसदी लोगों ने किसी को भी वोट देना उचित नहीं समझा है। इसके लिए नोटा की व्यवस्था की गई है।

नोटा का मुख्य उद्देश्य उन मतदाताओं को एक विकल्प उपलब्ध कराना है, जो चुनाव लड़ रहे किसी भी कैंडिडेट को वोट नहीं डालना चाहते। यह वास्तव में मतदाताओं के हाथ में चुनाव लड़ रहे कैंडिडेट का विरोध करने का एक हथियार है।

आमतौर पर राजनीतिक दल जिताऊ उम्मीदवार को खड़ा करते हैं। यह नहीं देखते कि उम्मीदवार ईमानदारी है या नहीं। लेकिन क्षेत्र की जनता उस उम्मीदवार को अच्छी तरह जानती है। लोग सोचते हैं कि किस एक पार्टी को तो वोट देना ही है, एक तो जीतेगा ही, लेकिन ऐसा नहीं है। अगर आपको कोई भी उम्मीदवार पसन्द नहीं है तो फिर आप नोटा दबाकर अपनी नाराजगी जता सकते हैं।

ईवीएम में सबसे नीचे नोटा का बटन होता है। नोटा का मतलब नान ऑफ द एवब यानी इनमें से कोई नहीं है। अब चुनाव में आपके पास एक और विकल्प होता है कि आप ‘इनमें से कोई नहीं’ का बटन दबा सकते हैं। यह विकल्प है नोटा, इसे दबाने का मतलब यह है कि आपको चुनाव लड़ रहे कैंडिडेट में से कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं है। ईवीएम मशीन में इनमें से कोई नहीं या नोटा का बटन गुलाबी रंग का होता है।

पहली बार कब हुआ नोटा का इस्तेमाल?

भारतीय निर्वाचन आयोग ने दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में इनमें से कोई नहीं या नोटा बटन का विकल्प उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे। वोटों की गिनती की समय नोटा पर डाले गए वोट को भी गिना जाता है। नोटा में कितने लोगों ने वोट किया, इसका भी आकलन किया जाता है।

चुनाव के माध्यम से पब्लिक का किसी भी उम्मीदवार के अपात्र, अविश्वसनीय और अयोग्य अथवा नापसन्द होने का यह मत (नोटा) केवल यह संदेश होता है कि कितने प्रतिशत मतदाता किसी भी प्रत्याशी को नहीं चाहते।

जब नोटा की व्यवस्था हमारे देश में नहीं थी, तब चुनाव में आप वोट नहीं कर अपना विरोध दर्ज कराते थे। इस तरह आपका वोट जाया हो जाता था। इसके समाधान के लिए नोटा का विकल्प लाया गया ताकि चुनाव प्रक्रिया और राजनीति में शुचिता कायम हो सके।

भारत, ग्रीस, यूक्रेन, स्पेन, कोलंबिया और रूस समेत कई देशों में नोटा का विकल्प लागू है।चुनाव में ईवीएम के इस्तेमाल से पहले जब बैलेट पेपर का उपयोग होता था। तब भी मतदाताओं के पास बैलेट पेपर को खाली छोड़कर अपना विरोध दर्ज कराने का अधिकार होता था। इसका मतलब यह था कि मतदाताओं को चुनाव लड़ने वाला कोई भी कैंडिडेट पसंद नहीं है।

मतदान कानून 1961 का नियम 49-0 कहता है कि अगर कोई मतदाता वोट डालने पहुंचता है और फॉर्म 17A में एंट्री के बाद नियम 49L के उप नियम (1) के तहत रजिस्टर पर अपने हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान लगा देता है और उसके बाद वोट दर्ज नहीं कराने का फैसला लेता है तो रजिस्टर में इसका रिकॉर्ड दर्ज होता है।

फॉर्म 17A में इस बारे में जिक्र किया जाता है और मतदान अधिकारी को इस बारे में कमेंट लिखना पड़ता है। साल 2009 में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने संबंधी अपनी मंशा से अवगत कराया था।

बाद में नागरिक अधिकार संगठन पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने भी नोटा के समर्थन में एक जनहित याचिका दायर की, जिस पर 2013 को न्यायालय ने मतदाताओं को नोटा का विकल्प देने का निर्णय किया था, हालांकि बाद में चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि नोटा के मत गिने तो जाएंगे पर इसे रद्द मतों की श्रेणी में रखा जाएगा।