लंदन। ईरान में नौ वर्ष की कैद की सजा सुनाये जाने के बाद जमानत पर रिहा ब्रिटेन और ईरान की दोहरी नागरिकता वाले वैज्ञानिक कामील अहमदी वहां से फरार हो गए हैं। ब्रितानी अखबार ‘द गार्डियन’ ने बुधवार को यह जानकारी दी।
अहमदी के सामाजिक विज्ञान अनुसंधान में ईरान में महिलाओं का खतना, बाल विवाह, अस्थायी विवाह, समलैंगिकता और देश में वर्जित माने जाने वाले अन्य विषयों पर ध्यान केंद्रित किया गया था। उन्हें पिछले नवंबर में सजा सुनाई गई थी और जमानत पर रिहा कर दिया गया था। उन पर 6,00,000 यूरो (7,20,000 डॉलर) का जुर्माना भी लगाया गया था। उनकी अपील याचिका सोमवार को उनकी अनुपस्थिति में खारिज कर दी गई थी।
वैज्ञानिक ने गार्डियन से कहा कि एक बार जब मुझे सजा सुना दी गई तो मेरे पास यह विकल्प था कि क्या मैं यहां रह कर अपने परिवार और चार साल के बच्चे को तब तक नहीं देखूं जब तक कि वह 14 वर्ष का नहीं हो जाए अथवा भागने का जोखिम उठाऊं। मैंने खुद को निराशा और ईरान दोनों से बाहर निकाल लिया।
रिपोर्ट के अनुसार अहमदी ने भागने के लिए उसी रास्ते का इस्तेमाल किया जिसका ईरान, अमरीकी प्रतिबंधों को धता बताते हुए इराक और तुर्की से शराब, कार के कलपुर्जे, सिगरेट और अन्य सामनों की तस्करी के लिए इस्तेमाल करता है। ये रास्ते पहाड़ों में स्थित हैं, जो वर्तमान में बर्फ की मोटी चादर से ढंके हुए हैं।
गौरतलब है कि वह ऐसे समय में देश से भागे हैं जब ईरानी सुरक्षा बलों ने पिछले साल परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की हत्या के बाद सीमा पर सुरक्षा बढ़ा दी थी। साथ ही यह बताया जाता है कि सीमा पर तैनात सुरक्षा बल संदिग्ध अपराधियों को दूर से ही गोली मार देते हैं।
अहमदी ने कहा कि मैं नस्ल से कुर्द हूं और मैं कुछ रास्तों को जानता था, लेकिन वे बहुत खतरनाक थे। मुझे कई बार कोशिश करनी पड़ी। वैज्ञानिक कथित तौर पर केवल अपने लैपटॉप और पुस्तकों के साथ फरार हुए। उन्होंने कहा कि वह अभी भी अनिश्चितता की स्थिति में हैं कि ईरानी सरकार को उनके देश छोड़कर भागने के बारे में पता चला है या नहीं।
अहमदी को पहली बार 2019 में गिरफ्तार किया गया था। उस समय ब्रिटेन के नौसैनिकों द्वारा जिब्राल्टर तट से दूर से एक ईरानी टैंकर ग्रेस 1 को कब्जे में लिए जाने पर दोनों देशों के बीच बड़ा विवाद खड़ा हो गया था।
हिरासत में लिए जाने पर अहमदी को पहले लगा कि उन्हें ब्रिटेन के साथ सौदेबाजी लिए पकड़ा गया है लेकिन जहाज को मुक्त किए जाने के बाद भी उन्हें जाने नहीं दिया गया। उन्हें पूछताछ के लिए करीब 100 दिन तक कालकोठरी में रखा गया था।