त्रेता युग में श्रीविष्णु के सातवें अवतार श्रीरामजी ने पुष्य नक्षत्र पर, मध्याह्न काल में अयोध्या में जन्म लिया। वह दिन था, चैत्र शुक्ल नवमी। तब से श्रीरामजी के जन्मप्रीत्यर्थ श्रीरामनवमी मनाई जाती है। सामान्यतः श्रीरामनवमी का उत्सव विभिन्न स्थानों पर विविध प्रकार से मनाया जाता है। कहीं सार्वजनिक रूप में, कहीं व्यक्तिगत स्तर पर तो कहीं पारिवारिक रूप में इसे मनाते हैं।
प्रभु श्रीराम का जीवन हम सभी को हर स्थिति में कैसे रहना है, इसका संदेश देता है। धर्म की सभी मर्यादाओं का पालन करने वाला अर्थात ‘मर्यादा-पुरुषोत्तम’, आदर्श पुत्र, आदर्श बंधु, आदर्श पति, आदर्श मित्र, आदर्श राजा, आदर्श शत्रु ऐसे सभी स्तर पर आदर्श रहे हैं, प्रभु श्रीराम। आज भी आदर्श राज्यको रामराज्य की ही उपमा देते हैं।
सनातन संस्था द्वारा संकलित इस लेख में श्रीरामनवमी का इतिहास एवं महत्त्व, यह उत्सव मनाने की पद्धति और रामनाम का महत्त्व इस विषय में जान लेंगे। इस वर्ष कोरोना की पृष्ठभूमि पर अनेक स्थानों पर यह उत्सव सदैव की भांति करने में मर्यादाएं हो सकती हैं। इस लेख में कोरोना के संकटकाल के निर्बंध (यातायात बंदी) में भी रामनवमी कैसे मनाएं यह भी समझ लेंगे। रामनवमी को श्रीरामजी उपासना एवं नामजप कर रामराज्य स्थापना का संकल्प करेंगे।
1. तिथि : चैत्र शुक्ल नवमी को ‘श्रीरामनवमी’ कहते हैं। श्रीराम के जन्म के उपलक्ष्य में श्रीरामनवमी मनाई जाती है।
2. इतिहास : इस दिन जब पुष्य नक्षत्र पर माध्यान्ह के समय कर्क लग्न में सूर्यादि पांच ग्रह थे तब अयोध्या में प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ।
3. श्रीरामनवमी का आध्यात्मिक महत्त्व : किसी भी देवता एवं अवतारों की जयंती पर उनका तत्त्व पृथ्वी पर अधिक मात्रा में कार्यरत होता है। श्रीरामनवमी को श्रीरामतत्व अन्य दिनों की अपेक्षा 1000 गुना कार्यरत होता है। श्रीराम नवमी पर `श्रीराम जय राम जय जय राम।’ नामजप एवं श्रीराम की भावपूर्ण उपासना से श्रीराम तत्व का अधिकाधिक लाभ होता है।
4. प्रभु श्रीराम का नामजप श्रीराम जय राम जय जय राम। : श्रीराम के कुछ प्रचलित नामजप हैं। उनमें से श्रीराम जय राम जय जय राम। यह त्रयोदशाक्षरी जप सबसे अधिक प्रचलित है। श्रीराम जय राम जयजय राम। इसमें श्रीराम यह श्रीराम का आवाहन है। जय राम यह स्तुतिवाचक है। जय जय राम यह नमः समान शरणागति का दर्शक है। रामायण में राम से बडा राम का नाम की कथा भी हम सबने सुनी है। सभी जानते हैं कि ‘श्रीराम’ शब्द लिखे पत्थर भी समुद्र पर तैर गए। उसी प्रकार श्रीराम का नामजप करने से हमारा जीवन भी इस भवसागर से निश्चित मुक्त होगा।
5. श्रीरामनवमी मनाने की पद्धति : श्रीराम तत्व का अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने के लिए उपासना में श्रीरामजी की प्रतिमा का पूजन, स्तोत्रपाठ एवं नाम जप करें। श्रीरामजी की प्रतिमा का पूजन षोडशोपचार पद्धति से करें। षोडशोपचार पूजन संभव न हो तो पंचोपचार पद्धति से पूजन करें।
6. श्रीराम की प्रतिमा की पूजा विधि एवं उपासना-पद्धति
श्रीरामनवमी की पूजा के लिए नित्य पूजा की सामग्री के साथ सौंठ का बनाया विशेष प्रसाद होता है। सौंठ अर्थात सूखे अदरक का चूर्ण एवं पीसी हुई चीनी तथा सूखे नारियल का चूरा मिलाकर उस मिश्रण को प्रसाद के रूप में निवेदित किया जाता है।
पूजा विधि आरंभ करते समय प्रथम आचमन करें। अब प्राणायाम करें। देश काल कथन कर पूजा के लिए संकल्प करें। अब चंदनका तिलक करें। अब अक्षत समर्पित करें। तदुपरांत फूल एवं तुलसी अर्पित करें। अब पुष्पमाला अर्पित करें। अब अगरबत्ती दिखाएं। अब दीप दिखाएं। अब नैवेद्य समर्पित करें। इस प्रकार पूजा करने के उपरांत आरती, मंत्रपुष्प, परिक्रमा एवं नमस्कार करें।
7. कोरोना के संकटकाल के निर्बंध (यातायात बंदी) में रामनवमी ऐसे मनाएं।
अनेक श्रद्धालु रामनवमी पर रामजन्म के समय श्रीराम के मंदिर में जाकर दर्शन लेते हैं। इस बार अनेक स्थानों पर कोरोना की पार्श्वभूमि पर यातायात बंदी होने से धार्मिक स्थल बंद हैं। ऐसे निर्बंध किए स्थानों पर मंदिरों में जाना संभव नहीं। इसलिए रामनवमी के निमित्त घर में ही श्रीराम की भावपूर्ण आराधना करें।
1. ऐसे कहा है कि नामजप कलियुग की सर्वश्रेष्ठ साधना है। इसलिए रामनवमी पर ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ का नामजप अधिकाधिक और भावपूर्ण करने का प्रयत्न करें। घर के सदस्य घर में ही नामजप और रामरक्षा पठन कर सकते हैं।
2. कुछ स्थानों पर घर में रामजन्मोत्सव मनाने की प्रथा होती है। ऐसे समय पर माध्यान्ह काल रामजी की पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा करें। पूजा के लिए राम की मूर्ति अथवा प्रतिमा (चित्र) उपलब्ध न हो तो मुखपृष्ठ पर राम का चित्रयुक्त कोई ग्रंथ अथवा नामपट्टी पूजा में रख सकते हैं। वह भी संभव न हो तो पाट पर रंगोली से ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ यह नाममंत्र लिखकर उसकी पूजा करें। अध्यात्म का सिद्धांत है कि शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध और उनकी संबंधित शक्ति एकत्र होती है। उस अनुसार श्रीराम की मूर्ति में जो तत्व होता है, वही शब्द में अर्थात श्रीराम के नामजप में भी होता है।
3. पूजा के लिए आवश्यक सामग्री मिलने पर अडचन होगी, तो उपलब्ध पूजा सामग्री में ही श्रीराम की भावपूर्ण पूजा कर रामजन्म करें। जो पूजा सामग्री उपलब्ध न हो, तो उसके स्थान पर अक्षता समर्पित करें। सोंठ का भोग लगाना संभव न हो तो अन्य किसी भी मीठे पदार्थ का भोग चढाएं।
कोरोना के कारण आपातकालीन परिस्थिति निर्माण हो गई है। सर्वसामान्यों का जीवन कठिन हो गया है। अपर्याप्त वैद्यकीय सुविधाओं के कारण कष्ट और बढ जाता है। कुल मिलाकर सभी का जीवन ‘रामभरोसे’ है। ‘रामभरोसे’ यह भावना अनेक जन उद्विग्नता व्यक्त कर रहे हैं, तब भी वास्तव में भगवान भक्त को तार रहा है इसलिए अब तो कम से कम भगवान पर श्रद्धा दृढ कर अपना संपूर्ण भार श्रीराम के चरणों में सौंप देंगे और श्रीरामनवमी के निमित्त समर्पित होकर साधना करने का निश्चय करेंगे।
8. रामनवमी को रामराज्य स्थापना का संकल्प करेंगे।
रामराज्य में प्रजा धर्माचरणी थी; इसीलिए उसे श्रीराम जैसा सात्त्विक राज्यकर्ता मिला और आदर्श रामराज्य का उपभोग कर पाए। इसके साथ ही हम भी धर्माचरणी और ईश्वर का भक्त बनेंगे, तो पहले के समान ही रामराज्य (धर्माधिष्ठित हिन्दु राष्ट्र) अब भी अवतरित होगा।
नित्य धर्माचरण और धर्माधिष्ठित राज्य कार्यभार से आदर्श राज्य का रभार करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम अर्थात प्रभु श्रीराम। प्रजा का जीवन संपन्न करने वालेे; अपराध, भ्रष्टाचार आदि के लिए कोई स्थान नहीं, ऐसे रामराज्य की ख्याति थी। ऐसा आदर्श राज्य (हिन्दू राष्ट्र) स्थापना का निर्धार (निश्चय) करेंगे।
संदर्भ : सनातन संस्था का ग्रंथ ‘श्रीराम’