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राणा प्रताप संस्कृति, जीवन मूल्यों के आदर्श थे : दत्तात्रेय होसबाले - Sabguru News
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राणा प्रताप संस्कृति, जीवन मूल्यों के आदर्श थे : दत्तात्रेय होसबाले

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राणा प्रताप संस्कृति, जीवन मूल्यों के आदर्श थे : दत्तात्रेय होसबाले

उदयपुर। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जयन्ती की पूर्व संध्या पर प्रताप गौरव केन्द्र- राष्ट्रीय तीर्थ उदयपुर (राजस्थान) द्वारा आयोजित नौ दिवसीय महाराणा प्रताप जयन्ती समारोह 2021 का ऑनलाइन उद्घाटन शनिवार को शाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने किया।

समारोह को ऑनलाइन सम्बोधित करते हुए होसबाले ने कहा कि उदयपुर के प्रताप गौरव केंद्र राष्ट्रीय तीर्थ देशभक्ति का अनोखा प्रेरणा का केन्द्र है, मुझे दो-तीन बार इसे देखने का मौका मिला। दो-तीन दिन रहकर इसका दर्शन किया है, प्रेरणा ली है। यह केन्द्र राष्ट्रीय धर्म, संस्कृति एवं इतिहास बोध का तीर्थ है। राष्ट्रीय तीर्थ नाम रखा है। राष्ट्रीय तीर्थ का नाम रखना अत्यन्त सार्थक है, ऐसा मे मानता हूं।

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति उदयपुर को साधुवाद देता हूं कि उन्होंने भव्य कलात्मक स्मारक की कल्पना को साकार करते हुए इसका निर्माण कर देश की जनता को समर्पित किया ताकि भविष्य की आने वाली पीढी अपने जीवन को पुनीत बनाए। निश्चय ही देश वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के प्रति कृतज्ञ रहेगा। आपने महाराणा प्रताप के जीवन पर एक प्रेरक स्मारक केन्द्र बनाकर राष्ट्रीय कार्य को सम्पन्न किया है।

महाराणा प्रताप के उच्चारण या उनका स्मरण से ही अपने अन्दर देश भक्ति का दीपक उदयपन हो जाता है। प्रताप के चित्र सामने लाने से तो एक सामान्य व्यक्ति भी उत्साह से, शौर्य से अपार भाव मेरे अन्दर है इसी अनुभूति से खडा हो जाता है। ऐसे एक अत्यन्त स्फूर्ति देने वाले व्यक्तित्व उनके शरीर सौष्ठव जीवन काल की मेवाड के राणा की कहानी सुनते हैं तो शरीर के रोम रोंगटे खडे हो जाते हैं।

भारत के इतिहास की हर कहानी में राणा प्रताप को एक वीरोचित स्थान प्राप्त है। न केवल भारत में अपितु विश्व के वीरों की श्रृंखला में प्रखर स्वतंत्रता सेनानी, हिन्दवा सूर्य, एक आदर्श प्रेरणा का राजा समर सदा याद रहेंगे। राणा प्रताप कहते ही हल्दीघाटी की ऐतिहासिक लडाई स्मरण में आ जाती है।

अपने इस सप्ताह का कार्यक्रम बनाया है। कल ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया महाराणा का जन्मदिवस है और 18 जून को हल्दीघाटी युद्ध विजय दिवस। इस वर्ष तृतीया पडने के कारण एक ही सप्ताह मे राजा जनक का दिवस और हल्दीघाटी युद्ध दिवस दोनों हिन्दू पंचाग के अनुसार आ गए हैं।

वह हल्दीघाटी की लडाई अरावली के पर्वत माला, घोडे की खण खण आवाज, उन्होंने किए हुए युद्ध राजस्थान लोक संस्कृति, लोक गीत साहित्य मे अमर स्थान प्राप्त कर चुके हैं। राणा का नाम कहते ही साढे सात फीट का उनका बाहु शरीर यह सब आंखो के सामने आ जाते है। उनके जीवन की कहानी के पृष्ठ में एकलिंग के आराध्य का दृढ प्रतिज्ञ के रूप में दूसरा नाम है।

जीवन में जो संकल्प लिया उस संकल्प को साकार कर दिखाया। अकबर की सेना और प्रताप की सेना दोनों की तुलना करना संभव नहीं है। युद्ध कौशल में राणा के समान तो शत्रु के लोग नहीं थे। मैं हल्दीघाटी इतिहास के संदर्भ में कहना चाहता हूं कि ऐसे युद्ध को भारत के युद्धों की श्रृंखला के इतिहास में कुछ ही लडाई को स्थान प्राप्त हुआ है।

हल्दीघाटी युद्ध के राणा प्रताप की लडाई का अध्यापन ठीक से पूर्ण होना चाहिए। शिवाजी के बारे में खूब कहा जाता है कि उन्होंने गुरिल्ला युद्ध किया। राणा प्रताप कभी मुगलों से हारे नहीं। इधर उधर की पुस्तकों में इतिहास के गलत संकेत मिल जाते हैं। सत्य को प्रस्तुत करने की आवश्यकता है, यह बार बार कहना भी पडता है। अरावली के लोग राणा का गुणगान करते है, ये वहां जाकर सुनेंगे तो राणा प्रताप का नाम अपने कानों में गूंज रहा होता है यह हम सुन सकते हैं।

इतिहास की पुस्तक, इतिहास के अध्ययन से कभी कभी मुझे लगता है कि इन चीजों ने महाराणा प्रताप के साथ अन्याय किया है। भारत के लोगों ने साहित्य में जिन बातों को सदा शाश्वत रूप में रखा है उस इतिहास को पाठ्य पुस्तक लिखने वाले विद्वान लोग पूरा न्याय नहीं कर पाए, ऐसा लगता है न्याय होना चाहिए।

भारत की हर पीढी को राणा प्रताप के जीवन की कहानी के आधार पढ़ने का अवसर मिलना चाहिए। मैं समझता हूं वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति नौजवानों को इस प्रकार के अध्ययन एवं अनुसंधान के लिए सुविधा उपलब्ध कराने का भी प्रयत्न करेगा।

राणा प्रताप 57 वर्ष जीये थे। उनके संघर्ष के बारे मे सुनते हैं, वही बात छत्रपति शिवाजी पर भी लागू होती है। उनका राज्य शासक के साथ भी था। राणा का संघर्ष का जीवन 12 वर्ष के करीब रहा। बाद मे 11 वर्ष उन्होंने शासक के रूप में कार्य किया। यह लोगों की नजर से ओझल है।

समरवीर होते हैं, उनके पराक्रम की कहानी बन जाती है, लोग उनसे प्रेरणा लेते हैं। आदर्श शासन व्यवस्था खडी की उनके बारे में चर्चा विमर्श जो कि जानकारी कम है, यह भी होना चाहिए। जनता के प्रेमी रहे, अच्छे शासक रहे कई प्रकार के आदर्श प्रस्तुत किए जो हमारे सामने है, वह सबके सामने लाना चाहिए आवश्यक है।

महाराणा प्रताप के युद्ध कौशल को आदर्श के रूप में सबके सामने आदर्श पुरूष के नाते प्रेरणा पुरूष के नाते इस प्रकार के एक एक जीवन को सामने रखना होगा। वे प्रेरणा दायी थे, वे संस्कृति के जीवन मूल्यो का आदर्श थे, हम प्रस्तुत ही नहीं कर पाते जो सबके सामने लाना चाहिए। जैसे प्रभु श्रीराम ने रामराज्य की बात की थी। राममर्यादा पुरूषोत्तम थे। राम राज्य मे श्रृद्धा रखते थे, उन्होने रावण को परास्त किया।

आज आवश्यक बातों को सत्यता के साथ, सबूत के साथ समाज के सामने रखने की जरूरत है। राणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, रणजीत सिंह, अहिल्या बाई होल्कर सहित अन्य जनों ने लडाई लडी लेकिन राज व्यवस्था भी की। उसकी प्रकार विचार करते हुए आदर्श स्थापित किया। मुझे लगता है इस पक्ष को भी अवसर मिलना चाहिए।

इससे पहले महाराणा प्रताप जयन्ती समारोह 2021 (दिनांक 12 जून से 20 जून तक) के उद्घाटन के प्रारंभ में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति उदयपुर द्वारा संचालित प्रताप गौरव केंद्र के निदेशक अनुराग सक्सेना ने समारोह के प्रारंभ में अतिथियों का परिचय कराया। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति उदयपुर के महामंत्री परमेन्द्र दशोरा ने स्वागत उद्बोधन दिया। इस अवसर पर प्रताप गौरव केन्द्र राष्ट्रीय तीर्थ पर बनी लघु फिल्म का लोकार्पण भी दत्तात्रेय होसबाले द्वारा किया गया। रवि बोहरा एवं भगवत सिंह ने मायड थारो वो पूत कठे काव्य गीत प्रस्तुत किया। धन्यवाद समिति अध्यक्ष बीएल चौधरी ने ज्ञापित किया।