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14 days elapse, No further arrest by Sirohi police and Excise Department in Bootlegging - Sabguru News
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शराब तस्करी: सिरोही पुलिस की नीयत और आबकारी की चाल, दोनों पर सवाल क्यों?

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शराब तस्करी: सिरोही पुलिस की नीयत और आबकारी की चाल, दोनों पर सवाल क्यों?
सिरोही जिले के भारजा में पकड़ा गया अवैध शराब का जखीरा।
सिरोही जिले के भारजा में पकड़ा गया अवैध शराब का जखीरा।
सिरोही जिले के भारजा में पकड़ा गया अवैध शराब का जखीरा।

सिरोही। नौ दिन चले अढ़ाई कोस। ये कहावत सुनी होगी। लेकिन, शराब तस्करी के मामले में सिरोही पुलिस और राजस्थान आबकारी की जांच के मामले में ये कहावत फिर से लिखनी पड़ेगी। और ये कहावत हो सकती है ’13 दिन चले शून्य कोस’।

तमाम एडवांस तकनीकों के बावजूद आबकारी विभाग 14 दिनों में भुजेला तस्करी के पीछे के पैडलर और तस्करों तक नहीं पहुंच पाई है। वहीं सिरोही पुलिस के लाजरक्षक सरूपगंज थानाधिकारी छगन डांगी द्वारा दूसरे ही दिन पकड़े गई शराब की खेप के तस्करों के गिरेबान तक नहीं पहुंच पाए हैं। स्थिति यह है कि थानाधिकारी ने जवाबदेही से भागने का नया तरीका और निकाल लिया है। मोबाइल फोन न उठाने का। न जवाब देना पड़ेगा न जवाबदेही होगी।

आबकारी के पास संसाधन नहीं

भुजेला में 30 मई को जो हरियाणा निर्मित शराब की खेप बरामद हुई थी उसमें सिर्फ ग्यारह गिरफ्तारियां हुई थीं। इनमें सभी मजदूर थे। जिन्हें गोदाम से शराब को वहां खड़ी गाडिय़ों में लादना था। मौके से गाडिय़ां और मोबाइल भी मिले थे। इनमें से तीन मोबाइल ऐसे थे, जिनके मालिक गिरफ्तार किए गए 11 लोगों में से नहीं थे।

आखिर पुलिस क्यों नहीं करती दामन साफ करने की कोशिश

इस प्रकरण में सिरोही पुलिस की भूमिका शुरू से ही संदिग्ध थी। तस्करी पुलिस की सरपरस्ती में होने के आरोप भी लगे। पुलिस अधीक्षक बदल दिए गए। उन्हें फील्ड पोस्टिंग की जगह पुलिस को ट्रेनिंग देने वाले सेंटर का प्रधानाचार्य बना दिया गया है। लेकिन, जब तक वो रहे उन्होंने भी इस जांच को आगे बढ़ाने की कोशिश नहीं की। पुलिस चाहती तो तस्करी के तारों को मिलाकर उस तक पहुंच सकती थी।

ये ही नहीं 30 मई को बरामद शराब कीे खेप में अपनी भूमिका नहीं होने की कोशिश के तहत आबकारी के साथ मदद करके उस खेप के तस्कर गिरोह तक भी पहुंच सकती थी। पुलिस की नीयत पर सबसे ज्यादा शक तो 21 मार्च में आबूरोड में पकड़े गए माल के बाद आबूरोड शहर पुलिस द्वारा दर्ज प्रकरण की एफआईआर की जांच से हो रही है। इस प्रकरण में नामदज व्यक्ति को अहमदाबाद के निकोल थाने में 1 जून को गिरफ्तार किया जा चुका था। लेकिन, सिरोही पुलिस की कर्तव्यनिष्ठा देखिये, न तो उससे पूछताछ की कोशिश की न ही प्रोडक्शन वारंट पर लाने को कोशिश।

आबकारी के पास नहीं संसाधन

राजस्थान के आबकारी विभाग ने 30 मई को भुजेला की कार्रवाई तो पांच जिलों की टीमें बुलवाकर कर दी। लेकिन, इसकी जांच में किसी तरह के सहयोग की कोशिश नजर नहीं आ रही है। आबकारी के पास वो संसाधन नहीं है जो पुलिस के पास हैं। मसलन, भुजेला के जो तीन अनजान मोबाइल मिले हैं वो किसके हैं उसे ट्रेस करना, न ही वहां मिले वाहनों के मालिकों की जानकारी जुटा पाना।

फिर कार्रवाई के लिए हर स्तर पर जिला आबकारी विभाग के माध्यम से पत्राचार होना सबसे बड़ी बाधा है। आबूरोड आबकारी थाने से तीन अनजान मोबाइल को ट्रेस करने और कॉल डिटेल निकालने के लिए जिला पुलिस से मदद लेने का पत्र जिला आबकारी अधिकारी को लिखा जा चुका है। लेकिन, उसका क्या हुआ कोई पता नहीं। वहां मिली गाडिय़ों के मालिकों की जांच के लिए गुजरात आरटीओ कार्यालयों की खाक छाननी होगी।

इसके लिए आबकारी थाने के जांच अधिकारी को जिला आबकारी विभाग की अनुमति चाहिए होगी। और नए पुलिस अधीक्षक के आने से पहले तो सिरोही पुलिस की कार्यप्रणाली मामले की परतें खोलकर खुद को पाक साफ साबित करने की बजाय उल जुलूल खुलासे करके खुदको और ज्यादा संदिग्ध बनाने की रही है।

नए अधिकारी नई चुनौती

जिले में नए पुलिस अधीक्षक ने कार्यभार ग्रहण कर लिया है। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती सरूपगंज में पकड़ी गई खेप की तह तक पहुंचने की है। इसके अलावा विभाग का दाग धोने के लिए वो 30 मई की आबकारी की कारवाई में वांछित सहयोग देकर भी सिरोही पुलिस पर तस्करों से साठगांठ के लगे दाग को धो सकते हैं। फिलहाल सिरोही पुलिस के पास खुद को पाक साफ करने का एक ही विकल्प है, भुजेला और सरूपगंज में पकड़े गए माल के तस्करों के गिरेबान तक उसकी पहुंच बनाना।