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भारत की पुनः प्रतिष्ठा के प्रेरक छत्रपति शिवाजी के राजतिलक दिवस पर संगोष्ठी - Sabguru News
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भारत की पुनः प्रतिष्ठा के प्रेरक छत्रपति शिवाजी के राजतिलक दिवस पर संगोष्ठी

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भारत की पुनः प्रतिष्ठा के प्रेरक छत्रपति शिवाजी के राजतिलक दिवस पर संगोष्ठी

उदयपुर। इतिहास संकलन समिति के चित्तौड़ व जयपुर प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में बुधवार को छत्रपति शिवाजी के राज्याभिषेक दिवस पर ‘हिन्दू पद पादशाही के प्रतिष्ठापक छत्रपति शिवाजी’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर वक्ताओं ने बताया कि किस प्रकार शिवाजी ने हिन्दू पद पादशाही की स्थापना की और तुर्कों और मुगलों के पीड़न और समाज को आतंकित करने के प्रयास का प्रतिरोध किया गया।

हिंदू पद पादशाही के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को हुआ था। यह अजीब संयोग है कि 19 फरवरी को शिवाजी का जन्मदिवस है तो 20 फरवरी (1707) औरंगजेब का मृत्यु दिवस है। आजीवन औरंगजेब को नाकों चने चबाने वाले शिवाजी महाराज के कारण ही मुगल साम्राज्य की नींव हिली और औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात ये साम्राज्य भर भराकर गिरने लगा।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता और क्षेत्रीय बौद्धिक प्रमुख श्रीकान्त कौटिल्य ने अपने उद्बोधन में बताया कि शिवाजी महाराज हिंदू राष्ट्रनीति के उन्नायक थे। बाद में चलकर वीर सावरकर ने राजनीति का हिंदूकरण और हिंदुओं का सैनिकीकरण का जो मंत्र हिंदू राष्ट्रनीति (राजनीति नही) का मूल आधार घोषित किया वह चिंतन वास्तव में उन्हें शिवाजी से मिला था।

वह देश में हिंदू राजनीति को स्थापित कर देश से विदेशियों को खदेड़ देना चाहते थे। उनकी राजनीति का मूल आधार नीति, बुद्धि तथा मर्यादा-ये तीन बिंदु थे। रामायण, महाभारत, तथा शुक्रनीतिसार का उन्होंने अच्छा अध्ययन किया था। इसलिए अपने राज्य को उन्होंने इन्हीं तीनों महान ग्रंथों में उल्लेखित राजधर्म के आधार पर स्थापित करने का पुरूषार्थ किया।

वह राष्ट्रनीति में मानवतावाद को ही राष्ट्रधर्म स्वीकार करते थे। उन्होंने शिवाजी के चरित्र पर मध्यकालीन कवि भूषण द्वारा लिखी पुस्तक शिवराज भूषण से छन्दों का उल्लेख कर उनके शौर्य का वर्णन किया। उनके प्रबंधन और युद्ध नीति को समझाया।

मुख्य अतिथि प्रो. परमेन्द्र दशोरा ने बताया कि शिवाजी ने अपनी मंत्री परिषद के गठन में शुक्रनीति का प्रयोग किया और अष्ठ दिग्गज के रूप में मंत्री मण्डल का गठन किया। शुक्र नीति के अलावा रामायण व महाभारत के साथ ही महाराजा कृष्णदेव राय की पुस्तक अवमुक्त माल्यद से उन्होंने अपने शासन का न्यास किया।

शिवाजी महाराज ने भी अपने राज्य में 8 मंत्रियों का मंत्रिमंडल गठित किया था। ये अष्ट प्रधान या अष्ठ दिग्गज ‘पेशवा-मुख्य प्रधान या मंत्री, मुजुमदार-आमात्य, सुरनिस-सचिव, वाकनिक-मंत्री, सरनौबत-सेनापति, दुबीर-सुमंत, न्यायाधीश-प्राड़विवाक, पंडित राव-धर्माधिकारी या दानाध्यक्ष।

कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि डाॅ. महावीर प्रसाद जैन ने बताया कि अंग्रेज इतिहासकारों व मुस्लिम इतिहास कारों ने शिवाजी को अपना सांझा शत्रु माना है। इसलिए उन्होंने शिवाजी को औरंगजेब की नजरों से देखते हुए पहाड़ी चूहा या एक लुटेरा सिद्ध करने का प्रयास किया है।

अत्यंत दुख की बात ये रही है कि इन्हीं इतिहासकारों की नकल करते हुए बाद के कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने भी शिवाजी के साथ न्याय नहीं किया। उन्होंने ने शिवाजी के द्वारा हिंदू राष्ट्रनीति के पुनरूत्थान के लिए जो कुछ महान कार्य किया गया उसे मराठा शक्ति का पुनरूत्थान कहा गया ना कि हिंदू शक्ति का पुनरूत्थान।

कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. केएस गुप्ता ने अपने समापन सम्बोधन में कहा कि शिवाजी की नीति धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना करने की थी। शिवाजी के राज्य में किसी अहिंदू महिला के साथ कभी कोई अभद्रता नही की गई। उन्होंने एक बार कुरान की एक प्रति कहीं गिरी देखी तो अपने एक मुस्लिम सिपाही को बड़े प्यार से दे दी। याकूत नाम के एक पीर ने उन्हें अपनी दाढ़ी का बाल प्रेमवश दे दिया तो उसे उन्होंने ताबीज के रूप में बांह पर बांध लिया। ऐसी ही स्थिति उनकी हिंदुओं के मंदिरों के प्रति थी।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में जयपुर से धर्मचन्द जी चैबे ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। वहीं क्षेत्रीय संगठन मंत्री छगनलाल बोहरा ने अतिथियों का परिचय करवाया। कार्यक्रम के अन्त में चित्तौड़ प्रांत के अध्यक्ष मोहनलाल साहू ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में जयपुर प्रांत के अध्यक्ष डाॅ. रमेशचन्द्र खण्डूरी, जयपुर प्रांत मंत्री गोपाल शरण गुप्ता, चित्तौड़ प्रांत मंत्री डाॅ. शिव कुमार मिश्रा, उदयपुर जिला मंत्री चैनशंकर दशोरा आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का तकनीति समन्वयन शिरिशनाथ माथुर ने किया।