सिरोही। सिरोही जिला मुख्यालय पर कलेक्टर पुलिस अधीक्षक समेत सभी प्रमुख जिला स्तरीय अधिकारी बैठते हैं। लेकिन जितनी बदहाली के दौर से सिरोही गुजर रहा है उसका जिम्मेदार इन अधिकारियों के अलावा कौन है?
जब सिरोही के विधायक ओटाराम देवासी थे और सभापति ताराराम माली, तब विपक्ष में बैठे सिरोही के वर्तमान विधायक संयम लोढ़ा सिरोही शहर की बदहाली के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराते थे। तो संयम लोढ़ा के ही कथनानुसार ऐसे में वर्तमान बदहाली का जिम्मेदार सिरोही विधायक संयम लोढ़ा और सभापति महेंद्र मेवाड़ा के अलावा किसी को जवाबदेह ठहराया नहीं जा सकता।
तीन साल में यूं जनविश्वास खोया
अगर किसी नेता के प्रति जनभावना का उबाल देखना हो तो तीन स्थान सबसे बेहतर हैं। चाय की थड़ी, पान का केबिन और हेयर सलून। तो पिछले सप्ताह हेयर सलून पर सिरोही के संयम लोढ़ा समर्थित लेहमैन की बात विधायक के लिए अलार्मिंग हैं। शहर की सड़कों की बदहाल स्थिति पर रोष जताते हुए उसकी प्रतिक्रिया थी कि, ‘भाई साहब, सिरोही की जो बदहाली है उससे अब फिर से तो नहीं जीतेंगे।’
लोगों की ये प्रतिक्रिया असामान्य नहीं है। जिस आशा से सिरोही वासियों ने अभूतपूर्व मेंडेट देकर निर्दलीय के रूप में संयम लोढ़ा को जिताया था, उसमें एक आशा थी कि नौकरशाही और आधिकारिक लापरवाहियों से होने वाली सामान्य समस्याएं उन्हें नहीं होगी। लेकिन, वो उत्पीड़न थमा नहीं है।
संभवतः अपनी प्रकृति के अनुसार विधायक संयम लोढ़ा की प्रतिक्रिया ये भी हो कि कौनसा अब चुनाव लड़ना है। लेकिन, ये अविश्वास चुनाव जीतने और हारने से ज्यादा नेता की नेतृत्व क्षमता पर अविश्वास से जुड़ा है। जिसे खोने के बाद कोई भी खद्दरधारी जन नेता तो नहीं रह पाता।
7 हजार के अंतर से जिताया, मिला क्या?
संयम लोढ़ा की जीत में सिरोही के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। पूर्व चुनावों में 3 से साढ़े तीन हजार के अंतर से सिर्फ सिरोही शहर में पिछड़े थे। इस बार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में करीब इतनी ही बढ़त मिली। दोनो अंतरों को मिला दिया जाए तो सिरोही शहर में ही अकेले 7 हजार अतिरिक्त वोट मिले।
लेकिन, वो सिरोही को कितना राहत दिलवा पाए वो जमीन पर साफ नजर आ रही है। आम जन के जीवन को नारकीय बनाने वाली सिरोही की बदहाल मुख्य सड़कें, बेहाल गलियां, अतिक्रमण, अनियमित सफाई व्यवस्था और अवैध निर्माणों की तस्वीरें उनके योगदान की गवाही दे रही हैं। ढाई साल पहले निरीक्षण के दौरान देखी गई जगहें भी उद्धार के लिए राह देख रही हैं।
गत 3 अक्टूबर को शहर के मुख्य सरजावाव दरवाजे पर नालियों ने सड़क पर बहता पानी।दो साल में कुछ नया नहीं
नगर परिषद चुनावों में भी सिरोही ने संयम लोढ़ा पर विश्वास करके अभूतपूर्व मेंडेट दिया। इसके बावजूद सिरोही वासियों को दो साल होने पर एक ढंग का उद्यान तक नहीं मिला है। फील गुड तरीके से रिटायरमेन्ट करवाने के लिए लाकर रखे अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही से शहर विकास की घोषणा फाइलों से बाहर नहीं निकली हैं।
बिना वाटर सप्लाई डिजाइन तैयार किए सीवरेज लाइन के लिए महीनों सड़कें खोदकर मरम्मत नहीं करना दूसरी समस्या है। वहीं अनादरा चौराहे से रीको तक के जानलेवा मार्ग ने तो सिरोही विधायक की जनहित में सही समय पर निर्णय नहीं लेने और जनसमस्या को सुलझाने की प्रशासनिक विफलता में एक और आयाम जोड़ दिया है। पुराने रजवाड़ों की तरह जिस तरह सिरोही विधायक सामंतों के भरोसे सिरोही शहर की व्यवस्थाओं को छोड़ दिए हैं, उससे उपजी बदहाल व्यवस्था शहर वासियों के लिए नासूर बन गई है।