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कृषि कानूनों को निरस्त करना NDA सरकार के कदम पीछे खींचने का पहला मौका नहीं - Sabguru News
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कृषि कानूनों को निरस्त करना NDA सरकार के कदम पीछे खींचने का पहला मौका नहीं

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कृषि कानूनों को निरस्त करना NDA सरकार के कदम पीछे खींचने का पहला मौका नहीं

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा ने भले ही देश को आश्चर्यचकित कर दिया हो, लेकिन यह पहली बार नहीं है जब मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने किसानों के मुद्दों पर चिंताओं के मद्देनजर किसी कानून से अपने कदम पीछे खींचे हैं।

राजग के सत्ता में आने के एक लगभग एक वर्ष के बाद 2015 में मोदी सरकार ने विरोध के चलते भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को फिर से नहीं बढ़ाने का फैसला किया था।
सरकार एक अध्यादेश के जरिए 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में नौ बड़े संशोधन लेकर आई थी तथा विपक्ष , किसान और सामाजिक संगठनों के विरोध के बीच इसे संसद में एक विधेयक के तौर पर पेश किया गया था।

‘भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास एवं पुनर्स्थापना अधिनियम-2013’, जिसे उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार के रूप में भी जाना जाता है, में संशोधन के लिए सरकार भूमि अधिग्रहण विधेयक 2015 लेकर आई जो दिसंबर 2014 में इन संशोधनों के लिए जारी किए गए एक अध्यादेश की जगह लेने के लिए लाया गया था।

इन संशोधनों में भूमि अधिग्रहण के सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन की अनिवार्यता के प्रावधानों में संशोधन किए गए थे जिसके तहत सुरक्षा- रक्षा, ग्रामीण बुनियादी ढांचे और औद्योगिक गलियारों की परियोजनाओं के लिए इसकी अनिवार्यता समाप्त कर दी गयी थी। संशोधनो में सरकारी परियोजनाओं के लिए ज़मीन मालिक की सहमति के प्रावधान की अनिवार्यता भी खत्म कर दी गई थी।

कृषि कानूनों के मामले में हुए विरोध प्रदर्शनों के समान ही भूमि अधिग्रहण अधिनियम में संशोधनों का विपक्ष के साथ-साथ राजग के सहयोगियों ने भी विरोध किया था। भूमि अधिग्रहण अधिनियम में संशोधन को विपक्ष ने किसान विरोधी करार दिया, जिसमें उस समय भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना भी शामिल थी। सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी ने भी इन संशोधनों का विरोध किया था। इसके अलावा शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने भी विधेयक पर आपत्ति व्यक्त की थी। वहीं राजनीतिक दलों, किसानों और सामाजिक समूहों के भी कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था।

भारतीय किसान संघ और भारतीय मजदूर संघ सहित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) विचारधारा से जुड़े कई संगठनों भी सरकार के इस कदम का विरोध किया था। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भी विधेयक को ‘किसान विरोधी’ करार देते हुए इन संशोधनो का मुखर विरोध किया था।

कृषि कानूनों के मामले की तरह प्रधानमंत्री ने तब भी विभिन्न अवसरों पर स्पष्ट किया था कि कानून किसानों के खिलाफ नहीं है। उन्होंने पार्टी के नेताओं को विरोधियों के बीच विधेयक के बचाव करने के लिए कहा था। कई महीनों के गतिरोध के बाद, अगस्त 2015 में, मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में घोषणा की थी कि सरकार अध्यादेश की अवधि समाप्त होने के बाद उसे दोबारा जारी नहीं करेगी।

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