नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर कृषि की अत्यधिक निर्भरता को समाप्त कर मामूली खर्च वाली प्राकृतिक खेती को देश को जन आन्दोलन बनाने का आह्वान किया है।
मोदी ने गुजरात के आणंद में तीन दिन के प्राकृतिक कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण राष्ट्रीय सम्मेलन के तीसरे दिन किसानों के सम्मेलन को आनलाइन सम्बोधित करते हुए गुरुवार को कहा कि राज्य सरकार प्राकृतिक खेती को जन आन्दोलन बनाएं तथा जिले में कम से कम एक गांव को प्राकृतिक खेती से जोड़ें। गुजरात में यह जन आन्दोलन बन गया है और हिमाचल प्रदेश में भी इसका आकर्षण बढ रहा है।
उन्होंने कहा कि विश्व में खाद्य सुरक्षा के लिए प्राकृतिक खेती का आज बेहतर समन्वय करने तथा रासायनिक खाद और कीटनाशक मुक्त कृषि का संकल्प लेने की जरुरत है । उन्होंने कहा कि भारत में जैविक और प्राकृतिक खेती के उत्पादों के प्रसंस्करण में निवेश की अपार संभावना हैं तथा विश्व बाजार ऐसे उत्पादों का इंतजार कर रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हाल के वर्षाे में हजारों किसानों ने प्राकृतिक खेती को अपनाया है और अनेक र्स्टट अप भी इस क्षेत्र में आ गए हैं। किसानों को बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण और मदद दी जा रही है। उन्होंने कहा कि आज खेती को केमिकल लैब से प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ने की जरुरत है। प्राकृतिक खेती विज्ञान आधारित है और इससे जमीन की उर्वराशक्ति बढती है।
मोदी ने खेती के संबंध में प्राचीन ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के फ्रेम में डालने की जरुरत पर बल देते हुए कहा कि इससे जुड़े ज्ञान को शोध या सिद्धांत तक सीमित रखने की जरुरत नहीं है। ऐसी जानकारी को प्रयोग में लाने की आवश्यकता है।
मोदी ने प्राकृतिक खेती को देसी गाय आधारित बताते हुए कहा कि इसके गोबर और मूत्र से मिट्टी की ताकत बढ़ती है और फसल की सुरक्षा भी होती है। इसमें खाद और कीटनाशक पर खर्च नहीं होता है और सिंचाई की भी कम जरुरत होती है। यह पद्धति बाढ और सूखे से भी निपटने में सक्षम है।
उन्होंने कहा कि रासायनिक उर्वरक ने हरितक्रांति में अहम भूमिका निभायी है लेकिन इसके विकल्प पर भी काम करते रहना होगा। उर्वरक और कीटनाशकों के आयात पर बहुत अधिक खर्च करना पड़ता है जिससे कृषि लागत बढ जाती है। उन्होंने सवाल किया कि बहुत अधिक उर्वरकों के प्रयोग से जब मिट्टी और मौसम ही जवाब देने लगें और तथा जल सीमित हो तब क्या करना चाहिए?
उन्होंने कहा कि 21 वी सदी में प्राकृतिक खेती कृषि का कायाकल्प करेगा। आजादी के 100 वर्ष में खेती को नई चुनौतियों के अनुरुप ढालने की जरुरत है। प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले छह सात साल के दौरान किसानों की आय बढाने और कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए सरकार ने अनेक कदम उठाये हैं। बीज से बाजार, और मिट्टी जांच से फसलों की लागत के डेढ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण, सिंचाई सुविधाओं में विस्तार, किसान रेल, पशुपालन, मधुमक्खी एवं मत्स्य पालन जैव ईंधन तथा सौर ऊर्जा से किसानों को जोड़ा गया है।
उन्होंने कहा कि गांवों को भंडारण, कोल्ड चेन और खाद्य प्रसंस्करण से जोड़ा गया है। किसानों को फसलों के विकल्प दिए गए हैं। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि जमीन की गुणवत्ता और प्राकृतिक कृषि उपजों का प्रमाणीकरण सहकारिता एजेंसियों के माध्यम से किया जाएगा। जिससे इन उत्पादों की विश्व में मांग बढ़ेगी तथा किसानों को उनका बेहतर मूल्य मिलेगा। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है जिससे रोगों पर नियंत्रण पाया जा सकेगा।
उन्होंने कहा कि मोदी ने वर्ष 2014 के बाद किसान को अर्थव्यवस्था का केन्द्र बिन्दु बनाने का प्रयास किया है और गुजरात में मुख्यमंत्री रहने के दौरान कृषि वृद्धि दर को दस वर्षो तक दस प्रतिशत के स्तर तक बनाए रखा।
गुजरात के राज्यपाल और प्राकृतिक खेती पर व्यापक अनुभव रखने वाले आचार्य देवव्रत ने कहा कि देसी गाय के गोबर में पाए जाने वाले जीवाणु मिट्टी की प्रकृति को बदल कर रासायनिक उर्वरकों की तुलना में बहुत अधिक उत्पादन देते हैं। उन्होंने कहा कि देसी गाय के एक ग्राम गोबर में 300 करोड़ जीवाणु पाए जाते हैं और इससे जीवाअमृत बनाए जाने के दौरान जमीन की उर्वरता बढ़ाने वाले जीवाणुओं का बड़ी तेजी से विस्तार होता है। इस दौरान हर बीस मिनट पर उनकी संख्या दोगुनी हो जाती है। इनके मिट्टी में जाने पर और विस्तार होता है और इससे फसलों का उत्पादन बढता है।
कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने प्राकृतिक खेती को प्राचीन विद्या बताते हुए कहा कि गैर रासायनिक खेती आज की आवश्यकता है। इसके लिए एक उपयोजना भी तैयार की गयी है और उसे आठ राज्यों में लागू किया जा रहा है।