लखनऊ। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में गुरुवार को हो रही मतगणना के अब तक के रुझानों से साफ है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर जीत की ओर अग्रसर है, वहीं चुनाव के दौरान ऐतिहासिक जीत के दावे कर रहे समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के सियासी प्रयोग को लगातार तीसरी बार नाकामी मिलती दिख रही है।
चुनाव आयाेग के शाम छह बजे तक जारी परिणाम और रुझानों से स्पष्ट है कि भाजपा 74 घोषित नतीजों में से 57 सीट जीत चुकी है और 193 सीट पर आगे चल रही है। वहीं सपा को महज 13 सीटों पर जीत मिल सकी है और 102 सीट पर उसने बढ़त हासिल कर ली है।
स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में भाजपा एक बार फिर पूर्ण बहुमत की ओर निर्णायक तौर पर बढ़ रही है। सूबे के इतिहास में यह पहली बार होगा जब सत्तारूढ़ दल फिर से चुनाव जीता हो। बेशक, भाजपा की जीत का सेहरा भी योगी के सिर पर बंधना तय है। साथ ही, योगी का मुख्यमंत्री रहते हुए जीत हासिल करना और लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनना भी उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहली बार होगा।
इससे इतर अखिलेश की अगुवाई में लड़ा गया यह चुनाव संख्या बल के लिहाज से भले ही लाभकारी साबित हो मगर सपा को सत्ता की दहलीज तक नहीं पहुंचा पाने की नाकामी का जिम्मा भी उन्हें ही उठाना होगा। गौरतलब है कि 2017 के चुनाव में भाजपा को 323 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत मिला था। सपा, 2012 की तुलना में सवा दो सौ सीट से लुढ़क कर 2017 में 49 सीटों पर आ गई थी।
सपा इस चुनाव में सौ का आंकड़ा पार कर अपना पिछला रिकाॅर्ड बेहतर करने मात्र से संतोष कर सकती है। सियासी तौर पर सपा के लिए यह परिणाम निराशाजनक जरूर माना जायेगा। पिछले चुनाव के विपरीत इस बार अखिलेश की चुनावी राह में न तो कोई रोड़ा अटकाने वाला था और ना ही उन्होंने अपने सियासी फैसलों में किसी को शामिल किया। सपा ने यह चुनाव पूरी तरह से अखिलेश की रहनुमाई में ही लड़ा। ऐसे में उनके पास अपनी जिम्मेदारी से बचने का कोई बहाना भी नहीं होगा।
सत्ता पाने के इस खेल में सपा की झोली में फिलहाल पराजय आती दिख रही है। इस चुनाव में अखिलेश ने जातीय समीकरणों को साधते हुए सुभासपा और रालोद सहित अन्य छोटे दलों से गठबंधन करने का प्रयोग किया था। मगर, चुनाव में किए जा रहे सपा मुखिया के प्रयोगों को एक के बाद एक मिलती नाकामी ने उनकी सियासी समझ को सवालों के घेरे में ला खड़ा किया है।
एक बार फिर सपा से गठबंधन करने वाले दल को तो लाभ हुआ लेकिन सपा खुद काे सत्ता की दहलीज तक पहुंचा पाने में फिलहाल नाकाम होती दिख रही है। इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को पटकनी देने के लिए रालोद से किए गए गठबंधन का लाभ जयंत चौधरी को मिल रहा है। रालोद पांच सीट जीत चुकी है और तीन सीट पर आगे है। वहीं सुभासपा छह सीट पर आगे चल रही है।
गौरतलब है कि इससे पहले लोकसभा चुनाव में सपा ने बसपा से गठबंधन किया था। इसका पूरा लाभ बसपा को मिला और सपा मात्र पांच सीट जीत सकी जबकि बसपा ने 10 सीटें जीत लीं। इसी प्रकार पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के अखिलेश के प्रयोग का लाभ सपा को नहीं मिल सका।