सिरोही। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपने जन्मदिन ओर केशवरायपाटन में आयोजित कार्यक्रम से फिर से सक्रिय हो चुकी हैं। उन्होंने यहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर निशाना साधते हुए एक तरह से विधानसभा चुनाव 2023 का आगाज कर दिया है।
उनके इस आव्हान ने भाजपा के साथ कांग्रेस में भी हलचल मचा दी है। चुनाव में डेढ़ साल है और अनिश्चितताओं का दौर है। लेकिन साढ़े तीन साल निकलने के बाद अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे की गवर्नेन्स में अंतर करना जरूरी हो जाता है।
इसे देखने के लिए माउंट आबू के दो मामले काफी हैं। जो राज्य में अफसरशाही पर नियंत्रण करके जनता को राहत पहुंचाने के अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे की कार्य प्रणाली में अंतर स्पष्ट कर देगा।
निरस्त सलगांव परियोजना को 7 दिन में कराया क्लियर
माउंट आबू की सालगांव परियोजना को प्रॉजेक्ट कॉस्टिंग बढ़ने के कारण अशोक गहलोत की 2008 से 13 वाली सरकार के दौरान जलदाय विभाग के सचिव रामलुभाया की मौजूदगी में हुई बैठक में निरस्त कर दिया गया था। निरस्ती से पहले गहलोत सरकार के अधिकारियों ने इस गहराई में जाने की कोशिश नहीं की कि आखिर प्रोजेक्ट कॉस्टिंग बढ़ क्यों गई।
इनके बाद 2013 में वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनी। सिरोही के अपने तीन दिवसीय दौरे के दौरान उनके सामने सालगांव प्रोजेक्ट की कॉस्टिंग बढ़ने के कारण निरस्त होने की बात सामने आई। बैठक में ही मौजूद माउंट आबू के तत्कालीन डीएफओ केजी श्रीवास्तव ने कहा कि ये प्रोजेक्ट कॉस्टिंग सबमर्ज एरिये की बजाय कैचमेंट एरिया को एक्वायर करने के कारण बढ़ी है।
कैचमेंट एरिया के एक्वायर करने की जरूरत नहीं। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने वहीं कलेक्टर और डीएफओ को आदेश दिया कि दोनों विभाग मिलकर 7 दिन में रिवाइज्ड लैंड रिक्वायर्ड रिपोर्ट सबमिट करें। सात दिन में तत्कालीन माउंट आबू डीएफओ केजी श्रीवास्तव और उपखंड अधिकारी अरविंद पोसवाल ने रिवाइज्ड लैंड एक्वायर प्लान बनाया इसमे सिर्फ सबमर्ज एरिया की लैंड को शामिल करते ही प्रोजेक्ट की कॉस्टिंग आधी हो गई।
इतना ही नहीं सबमर्ज एरिया में आने वाली वन विभाग की जमीन की एवज में भी जमीन का आवंटन तुरन्त कर दिया गया। प्रोजेक्ट क्लियर हो गया, जिसका बजट अशोक गहलोत सरकार ने इस बार पारित कर दिया है। जो काम अशोक गहलोत की पूर्व सरकार के अधिकारी वसुंधरा सरकार की तरह 7 दिन में करके प्रोजेक्ट कोस्ट घटा सकते थे, वो काम करने की बजाय प्रोजेक्ट ही निरस्त कर दिया।
2 साल में नोटिफिकेशन नहीं निकाल पाए
अब अशोक गहलोत सरकार में माउंट आबू के अधिकारियों के हाल भी जान लीजिए। लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बामनवाड़ में आयोजित सभा में माउंट आबू का बिल्डिंग बायलॉज घोषित कर दिया। इसे अधिसूचित करवा दिया गया। उनकी मंशा ये थी कि माउंट आबू के लोगों को 35 सालों से जो निर्माण और पुनर्निर्माण की अनुमति नहीं मिल रही वो मिल जाए।
लोग टूटे मकानों और दुकानों में न रहे और काम न करें। लेकिन, मुख्यमन्त्री कार्यालय की संस्तुति पर ही लगाए गए उपखंड अधिकारी गौरव सैनी ने इसे भी अटका दिया। माउंट आबू नगर पालिका के कर्यवाहक आयुक्त का पद भी उनके पास था। अक्टूबर 2019 में लोगों को राहत देने के लिए बैठक भी आयोजित की जानी थी, लेकिन बैठक के ठीक एक दिन पहले चार बिंदु का पत्र राज्य सरकार के भेजकर वहां के लोगों को मिलने वाली राहत को रोक दिया।
इसके बाद तब से अब तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की नाक के नीचे बैठकर नौकरशाह इस पत्र के दिए बिंदुओं का निस्तारण नहीं कर रहे हैं। डीएलबी डायरेक्टर और माउंट आबू के आयुक्त पत्राचार पत्राचार खेल रहे हैं, लेकिन ज़ोन निर्धारण के लिए नोटिफिकेशन जारी नहीं कर रहे।
फिलहाल गहलोत सरकार ने 3 साल में जिले में सबसे ज्यादा 6 आयुक्त माउंट आबू के बदले हैं। लेकिन, अंदरखाने जो आरोप लग रहे हैं उसके अनुसार इनकी नियुक्ति और हटाने का आधार आम जनता को राहत से ज्यादा सत्ता में बैठे दो राजकुमारों के प्रोजेक्ट को राहत दिलवाना ज्यादा रहा है।