आबूरोड (सिरोही)। होलिका के धधकते अंगारों पर चहल कदमी! जी हां ये कोई जुमला नहीं बल्कि हकीकत है। हैरान ना हों, होलिका दहन निर्वहन की एक अनूठी परंपरा सिरोही जिले की आबूरोड तहसील के जांबूडी गांव में परंपरागत रूप से बनी हुई है। होलिका के अंगारों से होकर बेदाग और सुरक्षित निकल आना किसी हैरतअंगेज कारनामे से कम नहीं है।
सैकड़ों की मौजूदगी में आज भी हिरण्यकश्यप भक्त प्रहलाद की होलिका दहन के निर्वहन की अनूठी परंपरा आबूरोड में गुजरात से सटे जांबूडी गांव में निभाई जाती है। जांबूडी होलिका दहन निर्वहन की इस परम्परा को यहां कोई आश्चर्यजनक नहीं कहता। आदिवासी इस परम्परा का सहज रूप में पीढी दर पीढी पालना करते आ रहे हैं।
दीगर बात यह है कि अग्नि की लपटों और उसकी उष्मा के कारण समीप खड़े रहना भी संभव नहीं होता है। ऐसे में होलिका दहन के दौरान धधकते अंगारों पर चहल कदमी करते हुए गुजरते उपवासधारी स्वांगरचकों और ग्रामीणों को देख कोई भी आम दर्शक हैरानगी और सहमें बिना नहीं रह पाता।
इस बार भी जांबूडी गांव में पंचांग की निर्धारित होलिका दहन के दूसरी शुक्रवार रात्रि होलिका दहन का श्री गणेश गांव के पटेल द्वारा किया गया। मशाल से होलीका दहन तथा लपटें उठने के बाद कुछ देर बाद जैसे होली गिरी, पहले से ढोल वादक चहूं और परिधि में हो गए तथा उनके पीछे महिलाएं ज्वार नृत्य के साथ चक्र दर-चक्र घेरे में आ गईं।
स्वांग रचक वेश और व्रत धारी इसे मानते महाकुंभ
खड़ी होली गिरने के ऐन वक्त धधकते अंगारों पर गुजरने के पल शुद्ध पवित्रता पूर्वक होते हैं, अलग ध्वनि का ढोल बजाए जाने की घोषणा होती है। साधक की तपस्या की तरह एकाग्र चित्त स्वांग रचक संत रूपी तन और कुछ समय के लिए इष्ट के मंनन के बाद अंगारों के आर-पार गुुजरकर बेदाग और सुरक्षित हो जाते हैं। आदिवासी इसे यहां महाकुंभ का स्नान मानते हैं।