सिरोही। माउंट आबू क्षेत्र के विधायक समाराम गरासिया ने गत सप्ताह विधानसभा में माउंट आबू की समस्या को उठाया। विधायक ने अपने कर्तव्य का पालन किया। लेकिन, माउंट आबू की वास्तविक समस्या से भटका कर सिर्फ व्यक्तिगत मुद्दे को सवाल बनवाकर राज्य विधानसभा में भिजवाने वाले स्थानीय नेता या लोगों ने माउंट आबू के मामले में राज्य सरकार को भ्रमित करने की फिर से कोशिश की है।
असल में विधायक माउंट आबू ने जिन आदेशों को राजस्थान विधानसभा में रखा वो भेदभाव वहां की आम समस्या हो सकती है। लेकिन, इसे रखने से माउंट आबू की वास्तविक समस्या का निस्तारण नहीं होने वाला। माउंट आबू की वास्तविक समस्या माउंट आबू और जयपुर में बैठे वे अधिकारी हैं जो अगस्त 2019 के एक कागज के एस 2 जोन के निर्धारण के नोटिफिकेशन के एक बिंदु की स्वीकृति को फुटबॉल बनाकर जयपुर डीएलबी और माउंट आबू नगर पालिका के गोलपोस्ट के बीच पासिंग द पास खेल खेल रहे हैं।
ये मुद्दा स्थानीय नेताओं का है, आम आदमी का नहीं
विधायक माउंट आबू के माध्यम से राजस्थान विधानसभा में जिन पत्रों का हवाला दिया गया वो माउंट आबू का एक मामला है। जिस व्यक्ति का मामला उठाया गया वो व्यक्ति कुछ स्थानीय नेताओं और अपने ही परिवार के सदस्य के लिए टारगेट हो सकता है लेकिन माउंट आबू की निर्माण अनुमति नहीं मिलने की मूल समस्या नहीं है।
ये सवाल यदि स्थानीय नेता या व्यक्ति ने भेजा है तो जान लीजिए कि समाराम गरासिया के कंधे का इस्तेमाल करके एक व्यक्तिगत मामले को माउंट आबू की मूल समस्या के रूप में प्रदर्शित करवाने वाले लोगों ने माउंट आबू के साथ धोखा किया है।
यदि ये सवाल समाराम गरासिया ने खुदने ही उठाया है तो उन्होंने 11 जून 2021 के अपने उस पांच सितारा होटल वाले ट्वीट वाले मुद्दे को उठाया होता तो माउंट आबू में जोधपुर के दो नेताओं के पुत्रों के लिए अधिकारियों द्वारा किए जा रहे भेदभाव की तरफ राज्य सरकार का ध्यान चला जाता। सत्ता में दखल रखने वाले किसी बड़े व्यक्ति की बजाय माउंट आबू में स्थानीय राजनीति और परिवारिक विवाद के मामला विधान सभा में आने से ना तो माउंट आबू के लोगों का और ना ही किसी पार्टी का कोई फायदा होने वाला है।
ये है मूल समस्या जिसे उठाना था
माउंट आबू की समस्या पैदा की मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा माउंट आबू में लगाया गए उपखंड अधिकारी गौरव सैनी ने। उनके कार्यकाल से ही समाराम गरासिया द्वारा जून 2021 के ट्वीट में उठाये गए प्रकरण वाला गोरखधंधा भी होता रहा। लेकिन, उन्होंने अड़ंगा लगाया माउंट आबू के आम लोगों के हितों पर।
कार्यवाहक आयुक्त के रूप में माउंट आबू की भवन निर्माण समिति की बैठक से पहले जो पत्र राज्य सरकार हो गौरव सैनी ने लिखा उसका मूल मकसद माउंट के आम लोगों की समस्या निस्तारण में अड़ंगा डालना ही था क्योंकि उन्होंने कभी भी उस पत्र के बिंदुओं को फॉलो अप शायद ही दिया हो।
जबकि एक समय 5 हजार से ज्यादा ईंटों से भरा ट्रक भी मिला था, लेकिन कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई जबकि वहीं के कार्यालय से ही निर्माण सामग्री का टोकन जारी होता था।इस पत्र के शेष बिंदुओं का जवाब तो राज्य सरकार से आ गया लेकिन इस 2 जोन का सीमांकन करके नोटिफिकेशन करना मूल समस्या है।
सभी तकनीकी अधिकारियों की रिपोर्ट के बाद भी डीएलबी के निवर्तमान निदेशक इसे अटकाने में लगे रहे। उन्होंने फिर पत्र पत्र मांउट आबू नगर पालिका के गोलपोस्ट पर फेंक दिया। सूत्रों की माने तो हाल में आईएसएस ट्रांसफर लिस्ट में नव पदस्थापित अधिकारियों का मानस कुछ सकारात्मक है। कुछ ने तो डीएलबी के पूर्व निदेशक द्वारा डाली गई टिप्पणी और पत्राचार को भी गौर जरूरी माना।
एस टू ज़ोन के निर्धारण की पत्रावली लंबे समय से डीएलबी में ही अटकी हुई है। वहां से नोटिफिकेशन के लिये मंत्री के पास नहीं पहुंची है। विधायक समाराम गरासिया को माउंट आबू की समस्या का वास्तविक निस्तारण करवाना है तो मूल सवाल ये उठाना था कि आखिर कब तक ये फ़ाइल डीएलबी में अटकी हुई रहेगी।
यदि भेदभाव का मामला उठाना ही था तो स्थानीय नेताओं के व्यक्तिगत दुश्मनी के मामले की बजाय सिर्फ अपने जून 2020 के ट्वीट के मामले को उठा देते तो सीधे ही राज्य सरकार को घेर लेते। इसके अलावा ये प्रक्रिया 295 की बजाय शून्यकाल में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के माध्यम से उठे तो इस पर मंत्री का जवाब भी तुरन्त मिल जाए।
माउंट आबू में उपखंड अधिकारी कार्यालय और नगर पालिका कार्यालय की सरपरस्ती में पांच सितारा होटल का काम बदस्तूर जारी है। इसमें कई काम अवैध हुए हैं। मसलन उपखंड अधिकारी और माउंट आबू नगर पालिका आम आदमी को अपने पट्टेशुदा वैध मकान में टिन शेड की जगह आरसीसी डालने की अनुमति नहीं देते।
ये अनुमति देना किसी भी आदेश में अवैध नहीं हैं। लेकिन, कथित पांच सितारा होटल के पुराने और नए फ़ोटो स्पष्ट बता देंगे कि इसमें फ्रंट एलिवेशन के ही टिन शेड हटाकर आरसीसी डाल दी गई है। लेकिन, दोनो ही अधिकारियों को कोई आपत्ति नहीं।
माउंट आबू के दोनो कार्यालयों के अधिकारियों द्वारा अपने जायज हक को अटकाने पर करीब आधा दर्जन प्रकरण वैध निर्माण अनुमति के लिए हाइकोर्ट पहुंच गये है और ये क्रम बदस्तूर जारी भी है। जहां से देर सबेर न्याय मिल ही जायेगा। लेकिन, शुरुआत में ही अधिकारी इस पर भी नहीं सुधरे तो वो वैध प्रकरण रोक कर अवैध प्रकरण पर आंख मूंदने के उनकी गलती उन पर भारी पड़ जाएगी जो उनके कार्यकाल में ही उन्होंने करवाये और वो देखते रहे।