अजमेर। जीव बिना स्वार्थ के कोई भी काम नहीं करता, हर कार्य के बदले कुछ पाना चाहता है। मेहनत करेंगे तो मजदूरी मिलेगी, समाज सेवा करेंगे तो यश मिलेगा। ऐसे में भगवान के मंदिर में सेवा करेंगे तो उससे भी कुछ ना कुछ पाने की उम्मीद रहती ही है। भगवान मिल जाएं तब भी भक्ति ना छोड़े। भक्ति निरंतर होनी चाहिए। जैसे भोजन रोज वैसे ही भजन रोज।
यह बात संत उत्तम राम शास्त्री ने लोहाखान शिव मंदिर में चल रहे राम कथा ज्ञान के दौरान प्रवचन करते हुए श्रद्धालुओं से कही। उन्होंने राम कथा के दौरान भगवान राम जानकी विवाह, अयोध्या नगर बारात का स्वागत, मंथरा दासी द्वारा केकई को दो वचन याद दिलाना और भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास और फिर सुमंत द्वारा उन्हें नगर की सीमा पार पहुंचाना आदि प्रसंग का भावपूर्ण प्रस्तुतीकरण किया।
महाराज ने निस्वार्थ भक्ति का उदाहरण देते हुए कहा कि इसका उल्लेख केवट और भगवान राम के बीच हुए संवाद में परीलक्षित होता है। केवट भगवान के प्रेम में लीन होकर निस्वार्थ भक्ति करता था। राम वन गमन का वृतांत के दौरान ऊधो कर्मण की गति न्यारी…. भजन के जरिए बताया कि कर्मफल भोगना ही पडता है। भगवान राम जिन्हें युवराज बनना था लेकिन तब वनवास मिला।
इंसान तो तनिक दुख होने पर विचलित हो जाता है। भगवान किसी को कभी दुखी नहीं करता। हम अपने कर्मो से दुखी होते हैं। जिसमें कोई कामना ना रहे उसके द्वार पर खुद भगवान चलकर आते हैं। वो भगवान से कुछ नही मांगता बल्कि भगवान उससे मांगते हैं। जैसे नाव से पार लगाने को राम ने केवट का सहयोग मांगा। केवट ने भ्गबडे भोलेपन से कहा कि भगवान आपके चरणों की राज में बड़ा चमत्कार है, पत्थर नारी बन गई ऐसे में नाव पर चरण लग जाएंगे तो गड़बढ़ हो जाएगी। उसने भगवान से उनके चरणों को धोने की शर्त रख दी। आखिर भगवान को उसकी शर्त माननी पड़ी।
केवट ने इस निस्वार्थ भक्ति से न केवल परिवार बल्कि पूरे समाज और गांव को भी तार दिया। राम के प्रति केवट की निस्वार्थ भक्ति देखकर माता सीता और लक्ष्मण भी आश्चर्यचकित रह गए। महाराज ने कहा कि भक्ति हो तो केवट जैसी, जो मन से स्वच्छ है। केवट प्रेम, भक्ति व निस्वार्थ सेवा का उदाहरण है। कथा के दौरान महाराज उत्तम राम शास्त्री व दीपक वैष्णव ने भजनों की प्रस्तुति दी। कथा विश्राम के बाद आरती की गई और श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया गया।