जोधपुर। वैश्विक महामारी कोरोना के कारण अस्तव्यस्त जनजीवन के दो साल बाद फिर पटरी पर आने के पश्चात राजस्थान में पारंपरिक उत्सवों में लोगों का काफी उत्साह नजर आने लगा है और राज्य की सूर्यनगरी जोधपुर में आयोजित परम्परागत एवं अनोखा धींगा गवर मेला (बेंत मार मेला) भी मंगलवार की रात पूरे परवान पर था और इसमें महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा एवं विभिन्न स्वांग रचकर आकर्षण का केन्द्र बनी और युवकों की बेंत से पिटाई की।
इस दौरान पुराने शहर की गलियां आकर्षक सजावट और रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगा रही थीं और सड़कों पर महिलाएं विभिन्न स्वांग रचकर हाथ में बेंत लेकर घूम रही थी और सामने आये पुरुषों की बेंत से पिटाई कर रही थी। इस दौरान सड़क पर महिलाएं ही महिलाएं विभिन्न रुप धारण किए हुए नजर आ रही थी और जिनकी शादी नहीं हो रही है वे युवक इन महिलाओं के आसपास से गुजरने की कोशिश कर रहे थे कि गवर मेले में उनके एक-आधी बेंत पड़ जाए तो शायद उनकी शादी शीघ्र तय हो जाए। इसलिए इस दौरान कुंवारे बेंत खाने को तैयार रहते हैं और उन्हें बेंत से पिटने के बाद भी कोई ऐतराज भी नहीं होता। इस दौरान एक युवक ने बेंत पड़ते ही महिलाओं का धन्यवाद करते हुए बोला अब तो म्हारों ब्याव पक्को।
मान्यता है कि जिस युवक की शादी नहीं हो रही हो और उसके इस मेले में भाग ले रही महिलाओं की बैंत पड़ गई तो उसकी शादी हो जाती है। इस मान्यता के चलते भी इस मेेले में युवक भाग लेने ज्यादा आते हैं।
इस दौरान हर किसी की इन महिलाओं के पास से गुजरने की हिम्मत नहीं होती, क्योंकि गवर मेले के दौरान पूरा राज महिलाओं का ही चलता है और उनके पास फटकते ही बेंत पड़ जाती है। वे मेले में विभिन्न स्वांग रचती हैं जिसमें कोई काली मां बनती हैं तो कोई शिव-पार्वती, कृष्ण का रुप धारण किया वहीं कई महिलाएं दाढ़ी एवं मूंछे लगाकर केसरिया सहित अलग अलग रंगे के साफा बांधकर लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनी वहीं कई जगहों पर वे नाचते गाते हुए मेले का लुत्फ उठाया।
मेेले में कुछ महिलाओं ने कोरोना से बचाव के बारे में लिखी तख्तियां हाथ में लेकर कोरोना से सतर्क रहने एवं उससे बचाव का संदेश भी दिया। मेले में एक बुजर्ग महिला व्हील चेयर सहारे साफा पहनकर मेला देखने आई। देर रात तक चलने वाले धींगा गवर के दौरान शहर में कई जगहों पर स्टेज लगाए गए और जहां सबसे अच्छे और अलग दिखने वाले को सम्मानित भी किया गया। मेले में कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए पुलिस का जाप्ता भी तैनात था और पूरी सुरक्षा व्यवस्था की गई।
माना जा रहा है कि वर्ष 1459 में राव जोधा के जोधपुर की स्थापना से ही धींगा गवर पूजन की परंपरा चली आ रही है जो राज परिवार से शुरू हुई थी। हालांकि कोरोना के दौरान पिछले दो साल में धींगा गवर पूजन एवं मेला नहीं भर पाया। दो साल बाद इस बार इसके आयोजन होने से लोगों में काफी उत्साह नजर आया और बड़ी संख्या में जोधपुर के अलावा अन्य कई जगहों से सैलानी और अन्य लोग मेला देखने पहुंचे।
धींगा गवर की पूजा करने वाली महिलाओं को तीजणियां कहा जाता है और मान्यता है कि मां पार्वती के सती होने के बाद जब दूसरा जन्म लिया तो वे धींगा गवर के रूप में आई थी। इसलिए मां गवर की पार्वती के रूप में भी पूजा होती है। भगवान शिव ने ही मां पार्वती को इस पूजन का वरदान दिया था।
इसके बाद से धींगा गवर की पूजा होती है। सोलह दिन तक इसका पूजन होता है और 16वें दिन पूरी रात महिलाएं घर से बाहर रहती हैं और देर रात अलग-अलग समय में धींगा गवर की आरती की जाती है। महिलाएं पूजन के बाद अपने हाथ में बेंत लेकर निकलती हैं। इस दौरान जो भी पुरुष सामने आता है, उस पर यह बेंत बरसाई जाती है।