सबगुरु न्यूज-सिरोही। सिरोही में किसान संघर्ष समिति के नेतृत्व में गुरुवार को किसान रैली निकाली गई। रैली ने लोगों का ध्यान आकर्षित भी किया। लेकिन, वो मुद्दों को लेकर नहीं बल्कि रैली में शामिल चेहरों और उसमें लग रहे नारों के पीछे छिपी नीयत को लेकर।
रैली का नेतृत्व भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष लुम्बाराम चौधरी ने किया। लेकिन, भाजपा के पूर्व अध्यक्ष की हैसियत से नहीं बल्कि किसान नेता की हैसियत से। रैली में भाजपा किसान मोर्चा के जिलाध्यक्ष गणपत सिंह देवड़ा, लुम्बाराम चौधरी के करीबी माने जाने वाले मदनसिंह थल, लुम्बाराम चौधरी के समय भाजयुमो जिलाध्यक्ष रहे हेमंत चौधरी, आरएसएस के प्रकल्प भारतीय किसान संघ के पूर्व पदाधिकारी आदि शामिल थे। ये वही लॉबी थी जो चूरमा पार्टी का हिस्सा थी।
रैली में गाहे बगाहे लगे कुछ नारे भी अद्भुत थे। ‘लुम्बाराम जी आगे बढ़ो हम आपके साथ हैं।’ किसानों को आगे बढ़ाने की रैली में लुम्बाराम चौधरी के आगे बढ़ने के नारे ये संकेत कर रहे थे कि किसानों की समस्या से ज्यादा ये रैली लुम्बाराम चौधरी को प्रमोशन के लिए थी। लुम्बाराम चौधरी का दो तरह से प्रमोशन इस रैली से करने की कोशिश लग रही थी। एक जिलाध्यक्ष की दौड़ में नारायण पुरोहित की जगह उन्हें प्रमोट करने तथा आगामी विधानसभा चुनावों में ग्रामीण समर्थन के दम ओर खुदको भाजपा के सिरोही विधानसभा के प्रत्याशी के रूप में दावेदारी करना।
किसान मोर्चा के जिलाध्यक्ष के साथ होते हुए किसान संघर्ष समिति का गठन करना एक रणनीतिक कदम से ज्यादा कुछ नहीं लग रहा। दरअसल, भाजपा के बैनर के तले किसी भी तरह की रेली और प्रदर्शन के लिए सांगठनिक सहमति की जरूरत है। पार्टी लाइन से अलग हटकर ये लोग जा नहीं सकते। प्रोटोकॉल के अनुसार सांगठनिक अनुमति के लिए जिलाध्यक्ष नारायण पुरोहित की अनुमति और उनके नेतृत्व के बिन असम्भव है। ऐसे में लुम्बाराम चौधरी की बजाय नारायण पुरोहित का प्रमोशन होने की संभावना ज्यादा थी।
निःसन्देह जिलाध्यक्ष के रूप में पार्टी निर्देश के अलावा भाजपा जिलाध्यक्ष स्थानीय मुद्दों को लेकर जिला स्तर पर कोई बड़ा आंदोलन अब तक तो नहीं खड़ा कर पाए हैं। ऐसे मुद्दे आज भी जिले में बिखरे पड़े हैं जिसमें कांग्रेस से लेकर मुख्यमंत्री तक को घेरा जा सकता है, लेकिन छोटे भाई गोविंद पुरोहित के मुख्यमंत्री की चरण वंदना का वीडियो वायरल होने के बाद नारायण पुरोहित कांग्रेस को नहीं घेर पाने के मुद्दे पर अब अपनी ही पार्टी में घिर गए हैं।
अगले साल प्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं। इससे पहले सांगठनिक परिवर्तन आम बात होती है। गत बार भी विधानसभा चुनावों से पहले नारायण पुरोहित को जिलाध्यक्ष पद से हटाकर लुम्बाराम चौधरी को जिलाध्यक्ष बना दिया गया था। ऐसे में भाजपा के शासन के दौरान जिले के इस महत्वपूर्ण पद पर उनका दबदबा रहा था।
दरअसल, किसान मोर्चा के जिलाध्यक्ष गणपत सिंह सांसद और लुम्बाराम चौधरी के खेमे से बताए जाते हैं। इस पद पर नियुक्ति को लेकर जिलाध्यक्ष नारायण पुरोहित की पसंद और राज्य से मनोनीत हुए जिलाध्यक्ष अलग अलग थे। पार्टी सूत्रों के अनुसार गणपतसिंह किसी हाल में नारायण पुरोहित की पहली पसन्द नहीं थे।
किसान मोर्चे द्वारा मोदी 2 सरकार के दो साल पूर्ण होने और गत वर्ष आयोजित सम्मेलन में जिस व्यक्ति को मंच पर बैठने को लेकर विवाद हुआ वो पहली पसंद बताए जाते हैं। पार्टी प्रोटोकॉल के अनुसार नारायण पुरोहित के बिना किसान मोर्चे के नेतृत्व में आंदोलन नहीं कर सकते। लेकिन, किसान मोर्चे से जुड़े लोगों को किसान संघर्ष समिति के नाम पर एकत्रित करके तो रैली की ही जा सकती है।