सबगुरु न्यूज-सिरोही। राहुल गांधी के आईडिया ऑफ इंडिया के समान अवसरों के नारे के बीच गहलोत राज में माउंट आबू में सोमवार को वहां के सामान्य शहरी को नियम कायदे की दुहाई दी गई।
माउंट आबू उपखण्ड अधिकारी कार्यालय के निर्देश पर नगर पालिका कार्मिकों ने कल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के निकट एक जर्जर मकान की निर्मानाधीन साइट पर कार्रवाई की है। करवाई के पीछे दलील ये दी गई कि उसने अपनी दीवारों की ऊंचाई दो फीट बढ़ा ली है। बिल्कुल सही बात, आखिर उपखण्ड अधिकारी कार्यालय बनाया भी गया है कानून का राज स्थापित करने के लिए है।
तो फिर है कानून इस आम आबू वासी और बाहर से आकर माउंट आबू में लिमबड़ी कोठी खरीदने वाले नेता पुत्रों के भवन के लिए भी समान ही होना चाहिए। ये मामला ही माउंट आबू में ‘एक शहर दो विधान’ की तस्दीक कर देगा।
-ऊंचाई तो लिमबड़ी कोठी की भी बढ़ी दिख रही है
लिमबड़ी कोठी की 2008 और आज की तस्वीरों की तुलना करने पर भी प्रथम दृष्टया ये लग रहा है कि लिमबड़ी कोठी में भी सबसे ऊपर के माले की ऊंचाई बढ़ाई जा रही है। 2008 की तस्वीर में ऊपरी माले पर जो टिन शेड लगा था उसकी जगह आरसीसी डाल दी गई है।
उपखण्ड अधिकारी कार्यालय द्वारा ऊंचाई के लिए त्रिकोणाकार टिन शेड के आधार को पैमाना माना जा रहा है या फिर उस त्रिकोण के एल्टीट्यूड यानी कि ऊपरी तिकोने की ऊंचाई को। लिमबड़ी कोठी के अंतिम माले की 2008 और अभी की तस्वीरों की तुलना करने पर स्पष्ट नजर आ रहा है कि आरसीसी टीनशेड के आधार की ऊंचाई पर या उससे ऊपर बनाई गई है। लेकिन इसी माले की आरसीसी पर कुछ अतिरिक्त आरसीसी पिलर भी स्पष्ट नजर आ रहा है। इसकी ऊंचाई टीनशेड के ऊपरी तिकोने से भी ज्यादा नजर आ रही है।
ऐसे में यदि सोमवार को स्टेट बैंक के निकट की कार्रवाई टीनशेड के बेस की ऊंचाई को आधार मानकर की गई है तो लिमबड़ी कोठी के ऊपरी माले पर बनाये जा रहे सभी आरसीसी पिलर पर भी वैसी ही कार्रवाई बनती है जो सोमवार को एसबीआई के निकट हुई। और यदि टिन शेड के ऊपरी तिकोने को की ऊंचाई को आधार मानकर कार्रवाई की गई है तो फिर लिमबड़ी कोठी के ऊपर के पिलर्स की ऊंचाई नापकर निर्माण अनुमति से पूर्व नियमानुसार जो डायमेंशन उपखण्ड अधिकारी कार्यालय या नगर परिषद में दिये गए हैं उसके आधार जांच करके ‘एक शहर दो विधान’ की अटकलों पर उपखण्ड अधिकारी विराम लगा सकते हैं।
-क्या है ऊंचाई का रोल?
माउंट आबू के ईको सेंसिटिव जोन बनने के बाद सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के आधार पर यहां पर जोनल मास्टर प्लान बनना था। वो बन गया। इस जोनल मास्टर प्लान को ईको सेंसेटिव ज़ोन का संविधान कहा जा सकता है। इसी के प्रावधानों के आधार पर यहाँ का बिल्डिंग बायलॉज बनने थे। वो भी बन गए।
इनके अनुसार माउंट आबू में घनी आबादी क्षेत्र और पुराने कॉमर्शियल क्षेत्रों में जी प्लस टू या 11 मीटर ऊंचाई तक वर्टिकल निर्माण किया जा सकता है। लिमबड़ी कोठी ग्राउंड प्लस 2 का पुराना निर्माण है यहां इसकी ऊंचाई पहले से भी सम्भवतः ज्यादा हो सकती है। लेकिन, जो एग्जिस्टिंग हाइट है उससे ज्यादा ऊंचाई नहीं हो सकती।
वहीं एसबीआई के निकट वाला निर्माण सिर्फ ग्राउंड फ्लोर का है। इसकी ऊंचाई 11 मीटर तो किसी सूरत में नहीं होगी। जोनल मास्टर प्लान को आधार मानकर सोमवार की कार्रवाई की तो ये बनती नहीं थी वहीं जोनल मास्टर प्लान के लागू होने पहले के मोनिटरिंग कमिटी की प्रथम बैठक में लिए निर्णय के आधार पर कार्रवाई की गई है तो फिर लिमबड़ी कोठी में इतना बड़ा निर्माण की अनुमति तो मिल भी नहीं सकती क्योंकि उसमें मामूली मरम्मत की ही अनुमति थी।