सबगुरु न्यूज-सिरोही। अपने समर्थकों द्वारा गांधीवादी कहे जाने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के राज में उनके अधिकारियों द्वारा गांधीवाद कैसे कुचला जा रहा है इसकी बानगी माउंट आबू के उपखण्ड अधिकारी की कर्यप्रणाली से लगाया जा सकता है।
यही नहीं माउंट आबू उपखण्ड अधिकारी अंग्रेजी मानसिकता से सत्याग्रह को दबाने की कर्यप्रणाली ने सोनिया गांधी के सन्देश ट्वीट और और राहुल गांधी ट्वीट को रीट्वीट करने वाली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के दावों की पोल खोल दी है।
राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) ने अपने ट्विटर हैंडल पर 12 जून को सुबह 10.04 बजे सोनिया गांधी के एक संदेश के साथ ट्वीट किया। इसमें सोनिया गांधी के हवाले से लिखा गया है कि ‘ये कांग्रेस पार्टी है जो अन्याय के खिलाफ एकजुटता से खड़ी है और इसके खिलाफ आवाज उठाती है।’
पीसीसी के ही ट्विटर हैंडल से राहुल गांधी के एक ट्वीट को रिट्वीट किया गया है। इसमें पहली लाइन में लिखा है कि ‘बापू के आदर्श ही स्वतंत्र भारत की नींव है।’ बापू के आदर्श में सबसे महत्वपूर्ण है अपने जायज हक के लिए अहिंसात्मक सत्याग्रह। 13 जून को ईडी में पेशी में जाते समय कांग्रेस ने सत्याग्रह मनाने का फैसला किया है। लेकिन, सोनिया और राहुल गांधी के दावों के विपरीत महात्मा गांधी के इसी सत्याग्रह में कथित गांधीवादी मुख्यमंत्री के माउंट आबू उपखण्ड अधिकारी को अंग्रेजों की तरह शांति भंग नजर आ रही है।
– अनशन करने वालों को शांतिभंग में पाबंदकर किया जेसी
<span;>रैबिट फार्म में बेतहाशा निर्माण सामग्री जाने की शिकायत सामने आने का बाद माउंट आबू के उपखण्ड अधिकारी कार्यालय निर्माण सामग्री घोटाले में आकंठ डूबा स्पष्ट नजर आ रहा है। यहाँ के उपखण्ड अधिकारियों ने राज्य सरकार द्वारा निर्माण सामग्री देने के हक का दुरुयोग करके सत्ताधारी दल के नेताओं के पुत्रों और बाहर से आये व्यापारियों को मुक्त हस्त से निर्माण सामग्री लुटाई।
लेकिन, जिन स्थानीय लोगों के मानवाधिकार के संरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जोनल मास्टर प्लान के तहत ईको सेंसेटिव जोन में अधिकार दिए थे उन अधिकारों को दबाकर उपखण्ड अधिकारी अपनी मांग के लिए उन्हें सत्याग्रह भी नहीं करने दे रहे हैं।
स्थानीय नागरिक गौरव असरसा द्वारा अपने पट्टेशुद, कन्वर्टेड और स्वीकृत परिसर की छत पर आ रही शाखाओं को छांटने, टूटे फर्श को दुरुस्त करवाने और अपनी सम्पत्ति की फेंसिंग के लिए 2017 से मांग की जा रही है। लेकिन, कथित रूप से ईको सेंसेटिव जोन (ईएसजेड) के तहत पात्र होने पर भी उपखण्ड अधिकारी कार्यालय ने 5 साल बीतने पर भी कोई कारवाई नही की। इसके विपरीत ईएसजेड के तहत अपात्र होने पर भी लिमबड़ी कोठी को कई सारे शौचालय बनाने और बिल्डिंग के तल बढवाकर पूरा का पूरा नक्शा बदलवा दिया।
अपनी मांगों के लिए असरसा ने 29 अप्रैल को अनशन किया। इस दौरान उपखंड अधिकारी और कर्यवाहक आयुक्त कनिष्क कटारिया ने सात दिन में उनकी मांगें पूरी करने को आश्वस्त किया। पेड़ की टहनी छंटाई के आदेश 2021 में ही हो चुके थे, लेकिन असरसा को पहुँचाये नहीं गए। इसकी अनुमति की प्रति उन्हें पहुंचा दी गई। लेकिन शेष मांगें नहीं पूरी की। इस पर असारसा ने फिर 31 मई को अनशन के लिए एसडीएम को सूचना दी।
असारसा के अनशन में माउंट आबू उपखण्ड अधिकारी कनिष्क कटारिया को को अंग्रेजों की तरह शांतिभंग नजर आने लगी। लेकिन, हकीकत ये थी कि शांति भंग की जगह इस अनशन में लोगों के हक दबाकर माउंट आबू से बाहर से आ रहे व्यापारियों और नेताओं को सुविधाएं देने की पोल खुलने की आशंका ज्यादा थी।
धरने से नौ दिन पहले 21 मई को उपखण्ड अधिकारी ने अंग्रेजों द्वारा सत्याग्रहियों को दबाने के लिये बनाई गई सीआरपीसी की धारा 107 के तहत नियमित फौजदारी प्रकरण संख्या 52/2022 दर्ज कर उन्हें धरने से शांति भंग होने की आशंका जताते हुए 27 मई को तीन महीने के लिये पाबंद करने का नोटिस जारी करके उनके समक्ष पेश होने का आदेश जारी किया।
उनसे 10 हजार का मुचलका भी पेश करने को कहा। मुचलका पेश नहीं करने पर उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में भेजने का आदेश दिया। इस पर जब उन्होंने अभिरक्षा में भूख हड़ताल करने की बात कही तो उन्हें फिर वहीं से जमानत भी दे दी गई। अभी असरसा ने उपखंड अधिकारी के इस पाबंदी पर रिव्यू पिटीशन की है।
– प्रशासनिक अधिकारियों के ऐसे रवैये से कैसे निपटेगी गहलोत सरकार
<span;>राजस्थान के राज्यसभा चुनाव में 2 जून को कांग्रेस समर्थित अधिकांश समर्थक विधायक नदारद थे। अधिकांश की नाराजगी व असंतोष नौकरशाही के असंवैधानिक रवैये से थी। बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस नाराजगी को नौकरशाहों और अफसरों पर कार्रवाई करके दूर कर दी।
नौकरशाही से नाराज इन विधायकों की संख्या दो डिजिट में थी तो गहलोत के लिए इन्हें साधना मुश्किल नहीं था। लेकिन, माउंट आबू के उपखण्ड अधिकारियों की तरह के अधिकारियों की कार्यप्रणाली से नाराज व असंतुष्ट लोगों की संख्या 7 डिजिट में है यानि करोड़ों में। इतने लोगों को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मना पाएंगे ये असम्भव लग रहा है और कांग्रेस को ग्रास रुट लेवल पर गहलोत सरकार ने जिंदा छोड़ा नहीं है जो अगले चुनाव में खुद कांग्रेस को बचा सके।
इसलिये समय रहते लोगों का हक मारकर उन्हें हक के लिए सत्याग्रह का गांधीवादी अधिकार छीनने वाले अधिकारियों को फील्ड से हटाकर जयपुर के कार्यालयों में बैठाने का उपक्रम सरकार ने नहीं किया तो तमाम लोक कल्याणकारी योजनाओं के दावों के बाद भी 2013 की तरह 2023 में प्रदेश की जनता कांग्रेस को सीएमओ से निकालकर फिर से पीसीसी में शिफ्ट करने में देर नहीं लगाएगी। क्योंकि प्रदेश की जनता को उनके दिए टैक्स को खर्च करके लागू की गई योजनाओ से ज्यादा गुड गवर्नेंस यानि सुराज चाहिए।