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पुरी में रथयात्रा की धूम, लाखों की संख्या में उमड़े श्रद्धालु - Sabguru News
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पुरी में रथयात्रा की धूम, लाखों की संख्या में उमड़े श्रद्धालु

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पुरी में रथयात्रा की धूम, लाखों की संख्या में उमड़े श्रद्धालु

पुरी। चार धामों में से एक विश्वप्रसिद्ध पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में वार्षिक रथयात्रा के मौके पर शुक्रवार को देश-विदेश से लाखों की श्रद्धालु यहा पहुंचे भगवान जगन्नाथ, भगवान बलवद्र और देवी सुभद्रा की रथयात्रा में शामिल हुए।

बारहवीं शताब्दी के इस ऐतिहासिक मंदिर के सामने ‘बड़ा डंडा’ (ग्रैंड रोड) के रूप में जाने जाने वाले तीन किलोमीटर लंबे सड़क पर तिल धरने को भी जगह नजर आई। मंदिर के सेवकों ने जैसे ही भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के रथों को बाहर निकाला, समूचा माहौल ‘जय जगन्नाथ’, ‘हरिबोल’ के उदघोष से गूंज उठा।

इससे पहले सुबह भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई भगवान बलवद्र और बहन देवी सुभद्रा के लिए सेवकों द्वारा अनुष्ठानों की रस्म पूरी की गई, जिसमें देवताओं को बाहर निकालने से पहले आवश्यक अनुष्ठानों के बाद ‘गोपाल भोग’ (नाश्ता) देना शामिल था।

कड़ी सुरक्षा के बीच आनंद बाजार और ‘बैशी पहाचा’ (मंदिर की बाईस सीढ़ियां) से होते हुए शंख फूंकने के बीच सैकड़ों मंदिर सेवकों ने मंदिर से देवताओं को अपने कंधों पर उठा लिया। भगवान जगन्नाथ के 16 पहियों वाले लाल और पीले रंग के ‘नंदीघोष’, 14 पहियों वाले बलभद्र के लाल और हरे रंग के ‘तालध्वज’ और देवी सुभद्रा के लाल और काले रंग के ‘देवदलन’ के रथों में 12 पहिए हैं।

अनुष्ठानों के तहत भगवान बलवद्र को पहले ‘रत्न वेदी’ से बाहर निकाला गया और औपचारिक ‘पहंडी बिजे’ के माध्यम से तलध्वज नामक रथ में स्थापित किया गया, उसके बाद देवी सुभद्रा को ‘दार्पदलन रथ’ और अंत में भगवान जगन्नाथ को प्यार से बुलाया गया। लाखों भक्तों द्वारा ‘कालिया’ को ‘नंदीघोष’ रथ में स्थापित किया गया।

कोविड महामारी के कारण पिछले दो वर्षों से रथयात्रा महोत्सव देखने से वंचित रहे लाखों श्रद्धालु जैसे ही मंदिर से देवी-देवताओं को बाहर आते देख ‘हरिबोल’ और ‘जय जगन्नाथ’ के नारे लगाने लगे।

माना जाता है कि सार्वजनिक रूप से देवताओं की उपस्थिति अंधेरे को दूर करने और प्रकाश लाने के लिए माना जाता है। भगवान जगन्नाथ, भगवान बलवद्र और देवी सुभद्रा की एक झलक पाने के लिए लायंस गेट पर भक्तों की व्यापक भीड़ थी। मंदिर प्रबंधन के सूत्रों ने कहा कि मंदिर प्रशासन द्वारा निर्धारित समय से तीन घंटे पहले देवताओं की पूजा की गई।

सुदर्शन के साथ तीन पीठासीन देवताओं को रथों में स्थापित करने के बाद, पुरी शंकराचार्य स्वामी निशालानंद सरस्वती अपने शिष्यों के साथ रथों के ऊपर देवताओं के पास गए और प्रार्थना की।

लायंस गेट से गुंडिचा मंदिर तक ग्रैंड रोड के दोनों ओर स्थित सभी भवनों की छतें आज सुबह से ही भक्तों से खचाखच भरी हुई थीं। रथ पर देवताओं के ‘दर्शन’ के लिए रथ यात्रा स्थल में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे भव्य सड़क की ओर जाने वाली सभी गलियों और छोटी गलियों में भी भक्तों की भीड़ लगी रही।

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