नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि सिर्फ अविवाहित होने के कारण किसी महिला को गर्भपात से नहीं रोका जा सकता। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने 25 वर्षीया एक अविवाहित महिला द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट के 16 जुलाई के एक फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के बाद अपना यह फैसला सुनाया।
पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि एक महिला को सिर्फ इसलिए अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने के अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वह अविवाहित है।
याचिकाकर्ता महिला ने हाईकोर्ट के आदेश पर सवाल उठाया था, जिसमें उसने अपने 24 सप्ताह के भ्रूण को उसकी (महिला की) सहमति से संबंध के आधार पर गर्भपात करने की अनुमति का अनुरोध अस्वीकार कर दिया गया था।
महिला ने अपनी याचिका में कहा था कि उसके लिए बच्चे को पालना मुश्किल था, क्योंकि उसके साथी ने उससे शादी करने से इनकार कर दिया था। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा था कि वह अपने किसान माता-पिता के पांच भाई-बहनों में एक है।
महिला ने कहा था कि अविवाहित होने पर बच्चे को जन्म देने के कारण सामाजिक बहिष्कार और मानसिक पीड़ा का भी उसे सामना करना पड़ेगा। उसने यह भी कहा था कि वह सिर्फ एक कला स्नातक और उसके पास रोजी रोजगार का कोई जरिया नहीं है। लिहाजा वह बच्चे के पालन पोषण के लिए पर्याप्त साधन नहीं जुटा पाएगी।
शीर्ष न्यायालय अदालत की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि 2021 मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में किए गए संशोधन में अविवाहित महिला को भी शामिल करने के लिए पति के बजाय पार्टनर शब्द का इस्तेमाल किया गया था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून का इरादा वैवाहिक संबंधों से उत्पन्न होने वाली स्थितियों के लाभों को सीमित करना नहीं था। वास्तव में नया कानून एक विधवा या तलाकशुदा महिला को 20-24 सप्ताह की अवधि में गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देता है।
दरअसल, उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि याचिकाकर्ता को अवांछित गर्भधारण की अनुमति देना संसदीय मंशा के विरुद्ध होगा।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि अधिनियम के तहत लाभों से केवल महिला के अविवाहित होने के आधार पर इनकार नहीं किया जा सकता है। विवाहित और अविवाहित महिला के बीच के अंतर का उद्देश्य से कोई संबंध नहीं है। उच्च न्यायालय ने इस मामले में अनुचित प्रतिबंधात्मक दृष्टिकोण अपनाया था।
शीर्ष न्यायालय ने दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के प्रमुख को शुक्रवार को एमटीपी अधिनियम की धारा 3 (2) (डी) के प्रावधानों के तहत एक मेडिकल बोर्ड का गठन करने का निर्देश दिया है।
इसके साथ ही याचिकाकर्ता महिला की जांच के लिए मेडिकल बोर्ड का गठन करने का निर्देश दिया गया है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या उस महिला का गर्भपात उसके जीवन को खतरे में डाले बिना सुरक्षित रूप से किया जा सकता है। शीर्ष न्यायालय की पीठ ने कानून के प्रावधानों की व्याख्या पर केंद्र को नोटिस जारी किया।