नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने समाजवादी पार्टी नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री आजम खान को इलाहाबाद हाईकोर्ट से दी गई जमानत की शर्तों में से एक को खारिज करते हुए उन्हें शुक्रवार को जमानत दे दी।
न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति जेबी पादरीवाला ने हाईकोर्ट द्वारा पूर्व मंत्री खान को जमानत की शर्तों में रामपुर के मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय के परिसर को सील करने की शर्त को गैरजरूरी बताते हुए उसे खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने समाजवादी पार्टी के नेता को रामपुर जाने से रोकने की राज्य सरकार की गुहार को भी खारिज कर दी।
उच्चतम न्यायालय की इस पीठ ने उच्च न्यायालय के द्वारा जमानत के लिए इस प्रकार की शर्त लगाने पर हैरानी व्यक्त की और कहा कि वह ऐसे आदेश से परेशान थी।
पूर्व सांसद खान पर उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई जमानत की शर्तों में मौलाना अली जौहर विश्वविद्यालय (खान इस विश्वविद्यालय ट्रस्टी हैं) को दी विवादित जमीन के एक हिस्से को 30 जून 2022 तक कब्जे में लेने का निर्देश रामपुर जिला मजिस्ट्रेट को दिया था। उच्च न्यायालय ने उस जमीन के चारों ओर चारदीवारी और कंटीले तारों से दीवार खड़ी करने का भी निर्देश जारी किया था।
शीर्ष अदालत ने इससे पहले सुनवाई करते हुए जमानत की इस शर्त को गैर जरूरी बताते हुए इस पर अंतरिम रोक लगा दी थी। पीठ ने कहा था कि प्रथम दृष्टया यह अनुचित शर्त लगती है। इस शर्त का याचिकाकर्ता के उपस्थिति सुनिश्चित करने या मुकदमे को बाधित नहीं होने की संभावना से कोई उचित संबंध नहीं है।
पीठ ने कहा था कि उच्च न्यायालय की ओर से जमानत की शर्त के तौर पर दिया गया आदेश दीवानी अदालत के आदेश जैसा लगता है। इससे पहले इसी तरीके के एक अन्य मामले में 19 मई को न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति बीआर गवई और एएस बोपन्ना की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्राप्त अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए अंतरिम जमानत का आदेश पारित कर याचिकाकर्ता पूर्व मंत्री को संबंधित स्थानीय अदालत के समक्ष दो सप्ताह के भीतर नियमित जमानत की अर्जी दाखिल करने की अनुमति दी थी।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ओर से (19 मई को) इस मामले में जमानत मामले में कोई फैसला लेने में देरी पर शीर्ष अदालत ने अपनी नाराजगी व्यक्त की थी। न्यायालय ने पिछले साल दिसंबर में पूर्व मंत्री की जमानत अर्जी पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस बीच याचिकाकर्ता ने अंतरिम जमानत के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जहां उन्हें उच्च न्यायालय में जाने का निर्देश दिया गया था।
शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता खान को जमानत की सुनवाई के दौरान 87 मामलों में से 86 में जमानत मिलने के तथ्य पर गौर किया था तथा कथित तौर पर जमीन हड़पने के एक मामले में जमानत पर फैसला करने में देरी पर नाराजगी जताते हुए सख्त टिप्पणियां की थीं।
उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय को आजम खान की जमानत पर अपना कोई फैसला लेने का मौका देते हुए कहा था कि अब फैसला सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है। 137 दिनों मे कोई आदेश पारित नहीं किया गया है। उन्हें (आजम खान को) 86 मामलों में जमानत पर रिहा किया गया था। यह एक मामला है। हम केवल इतना ही कह सकते हैं कि यह (इस हालत में जमानत पर फैसले में में देरी) न्याय का मजाक है। यदि आवश्यकता होगी तो हम और कुछ कहेंगे। यह मामला उत्तर प्रदेश रामपुर में मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय परियोजना के लिए जमीन हड़पने के आरोप से जुड़ा हुआ है।