पटना। बिहार में नवगठित महागठबंधन सरकार के अविश्वास प्रस्ताव लाने के बावजूद विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने पद से इस्तीफा नहीं देने की आज घोषणा की।
सिन्हा ने मंगलवार को विधानसभा प्रेस सलाहकार समिति की बैठक में कहा कि सभा अध्यक्ष संसदीय नियमाें तथा परंपराओं का संरक्षक है। यह केवल पद नहीं बल्कि एक न्यास का अनुरक्षक भी है इसलिए इस दायित्व के साथ जब तक मैं बंधा हूं तबतक अपने व्यक्तिगत सम्मान से ऊपर लाकतांत्रिक न्यास की गरिमा को संरक्षित और सुरक्षित रखना मेरा कर्तव्य है। इसलिए, विधानसभा अध्यक्ष के रूप में जब मेरे विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया गया तो मैंने उसे अपने ऊपर विश्वास की कमी के रूप में नहीं देखा बल्कि आसन के प्रति अविश्वास के रूप में देखा।
सभाध्यक्ष ने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव का जो नोटिस सभा सचिवालय को दिया गया उसमें नियम, प्रावधान और संसदीय शिष्टाचार की स्पष्ट रूप से अनदेखी की गई है। इसलिए, आसन से बंधे होने के कारण संसदीय नियमों एवं प्रावधानों से असंगत नोटिस को अस्वीकृत करना उनकी स्वाभाविक जिम्मेदारी है।
उसी जिम्मेदारी को निभाते हुए उन्हें अविश्वास प्रस्ताव नियम के अनुकूल प्रतीत नहीं होता है। उन्होंने कहा कि नोटिस में कुछ दुर्भाग्यपूर्ण और निराधार आरोप भी लगाए गए हैं, जो नितांत व्यक्तिगत स्तर के हैं। कुछ सदस्यों ने किसी ठोस तथ्य और तर्क के बिना उनकी कार्यशैली को अलोकतांत्रिक और तानाशाह जैसा बताया है।
सिन्हा ने कहा कि इन तथ्यहीन अरोपों के बीच यदि मैं त्यागपत्र देता हूं तो यह न केवल व्यक्तिगत निष्ठा और आत्मसम्मान के विरुद्ध होगा बल्कि संसदीय परंपरा पर किए गए आक्षेप पर चुप रह जाने वाली बात भी होगी। इसलिए, मैं बिहार विधानसभा अध्यक्ष के रूप में मेरे खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का प्रतिकार करते हुए इस्तीफा नहीं दूंगा।
सभाध्यक्ष ने कहा कि लोकतंत्र हमारे लिए सिर्फ व्यवस्था नहीं है, यह हमारे व्यवहार और विश्वाास का भी विषय है। मन, वचन और कर्म से मैं लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्यों में अटल आस्था रखता हूं। लोकतंत्र और लोकतांत्रिक व्यवहार में मेरी अटूट आस्था ने ही मुझे बिना भय और पक्षपात, लोभ और लालसा, राग और द्वेष के आचरण करने की शक्ति दी है। पिछले दिनों सत्ता बचाए रखने के लिए जो कुछ भी हुआ, उस पर इस समय मेरा कुछ भी कहना उचित नहीं होगा। लेकिन, इस क्रम में विधायिका की प्रतिष्ठा पर जो प्रश्न खड़े किए गए उस पर चुप रह जाना भी मेरे लिए अनुचित होगा।
सिन्हा ने कहा कि वह सदन में बिना किसी द्वंद्व या भय के अपनी बात रखेंगे। उन्होंने अपनी बात कविता की इन पक्तियों के समाप्त की….‘दाव पर सबकु लगा है, रुक नहीं सकते…टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।’