नई दिल्ली। राजधानी में इंडिया गेट के पास ऐतिहासिक छतरी के नीचे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जिस प्रतिमा का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को अनावरण किया वह 65 टन वजनी है और इसे ग्रेनाइट की एक शिला को तराश कर सृजित किया गया है। सिद्धहस्त शिल्पी अरुण योगीराग के नेतृत्व में मूर्तिकारों के एक दल ने मनोयोग के साथ कुल 26 हजार घंटे के प्रयास से इस प्रतिमा को गढ़ा।
इसमें प्रयुक्त की गई ग्रेनाइट पत्थर की शिला को तेलंगाना के खम्मम जिले से 1650 किलोमीटर दूर दिल्ली लाया गया था, शिला का भार 280 टन था, इसे दिल्ली लाने के 100 फुट लंबी और 140 पहियों वाले ट्रक का प्रयोग किया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने इन तथ्यों का उल्लेख राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक फैले राजपथ को कर्तव्य पथ नाम देते हुए किया है।
इसके निर्माण में पारंपरिक मूर्ति शिल्प की तकनीकों के अलावा आधुनिक औजारों का भी प्रयोग किया गया। इंडिया गेट के पास छतरी के नीचे कभी किंग जार्ज पंचम की प्रतिमा हुआ करती थी। मोदी ने गत 21 जनवरी को वहां नेताजी की एक डिजिटल प्रकाश वाली मूर्ति का उद्घाटन करते हुए कहा था कि उसकी जगह ग्रेनाइट से बनी 28 फुट ऊंची प्रतिमा स्थापित की जाएगी।
मोदी ने कर्तव्य पथ के उद्घाटन भाषण का एक बड़ा समय नेताजी के योगदान की चर्चा और सरकार द्वारा उनकी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए किए गए कार्यों पर लगाया। उन्होंने कहा कि आज अगर राजपथ का अस्तित्व समाप्त होकर कर्तव्य पथ बना है, आज अगर जार्ज पंचम की मूर्ति के निशान को हटाकर नेताजी की मूर्ति लगी है तो यह गुलामी की मानसिकता के परित्याग का पहला उदाहरण नहीं है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले आठ वर्षों में एक के बाद ऐसे कई निर्णय किए हैं, जिन पर नेताजी के आदर्शों और सपनों की छाप है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस अखंड भारत के पहले प्रधान थे जिन्होंने 1947 से भी पहले अंडमान को आजाद करवाकर तिरंगा फहराया था।