जयपुर। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रदेश में गत 25 सितंबर को नए मुख्यमंत्री को लेकर हुए घटनाक्रम पर दुख व्यक्त करते हुए कहा है कि आखिर 102 विधायकों ने नए मुख्यमंत्री को लेकर ऐसा व्यवहार क्यों किया और यह नौबत क्यों आई, इस पर रिसर्च होना चाहिए।
गहलोत ने आज गांधी जयंती पर सचिवालय में महात्मा गांधी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि के बाद मीडिया से बातचीत में यह बात कही। उन्होंने उनके मुख्यमंत्री बने रहने के सवाल पर कहा कि वे अपना काम कर रहे हैं, मैं मुख्यमंत्री रहूं या नहीं, इसका निर्णय पार्टी आलाकमान को करना है। कांग्रेस में एक लाइन के प्रस्ताव की परंपरा रही है। राजस्थान में इस परंपरा का पालन नहीं किया गया। इसका मुझे दुख है कि जिस विधायक दल के वह खुद नेता है और उसके विधायकों ने उनकी बात नहीं मानी। यह इस तरह पहली बार हुआ हैं, आखिर 102 विधायक नाराज क्यों हो गए। इस पर रिसर्च होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि आखिर विधायकों को इस्तीफा देनें की नौबत क्यों आई। पार्टी पर्यवेक्षक आलाकमान का प्रतिनिधि होते है। पर्यवेक्षकों की बैठक का बहिष्कार कर दिया गया। यह नौबत क्यों आई। इस पर हमें विचार करना होगा। उन्होंने कहा कि जब यह लगा कि मैं अध्यक्ष बन जाऊंगा तो नया मुख्यमंत्री आएगा। इससे 102 विधायक इस कदर भड़क गए कि उन्होंने किसी की नहीं मानी। उन्हें इतना क्या भय था, ऐसा क्यों हुआ, क्या कारण रहे, इस पर तो रिसर्च करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कहा कि 50 साल में पहली बार देखा गया कि हम एक लाइन का प्रस्ताव पारित नहीं करवा पाए जबकि वह हमारी ड्यूटी थी, लेकिन यहां पर यह स्थिति क्यों बनी, इस पर रिसर्च की जरूरत है। यह नौबत क्यों आई कि यहां के विधायक मेरी बात मानने को ही तैयार नहीं थे। विधानसभा अध्यक्ष के पास इस्तीफा देकर आ गए। शायद उन्हें डर था कि अब मैं दिल्ली जा रहा हूं तो वह हमें किसके भरोसे छोड़ कर जा रहे हैं। क्योंकि विधायक मुझे अभिभावक मानते हैं।
अशोक गहलोत ने कहा कि वह उन 102 विधायकों का साथ नहीं छोड़ने चाहते जिन्होंने संकट के समय सरकार बचाने में सहयोग दिया था। उन्होंने कहा कि अगर वह कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते तो यह 102 विधायकों के साथ नाइंसाफी होती।
कांग्रेस आलाकमान 102 विधायकों की भावना का सम्मान नहीं करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि कई बार कुछ कारणों से ऐसे फैसले हो जाते हैं। जिन्हें मानना होता है। मुझे नहीं मालूम की किस स्थिति के अंदर यह फैसला हुआ, मैं उस पर जाना नहीं चाहता। मैं किसी को दोष नहीं देता। जब एक बार फैसला हुआ है तो पर्यवेक्षक तो आएंगे। पर्यवेक्षक आलाकमान का प्रतिनिधि होता है। हम उसी ढंग से व्यवहार करते हैं।
पर्यवेक्षक को भी चाहिए के वे कांग्रेस अध्यक्ष के बिहाफ पर आए है। कांग्रेस अध्यक्ष की जो सोच है, पर्सनेलिटी, विचार है जो ओहदा है वैसे ही काम यहां आकर पर्यवेक्षक को करना चाहिए ताकि कांग्रेस अध्यक्ष का सम्मान बना रहे। राजस्थान का मामला तो अलग तरह का हो गया। यह तो इतिहास में लिखा जाएगा कि यह क्यों हुआ।
उन्होंने कहा कि हमेशा जब मुख्यमंत्री जाने लगता है या बदलने वाला होता है तो उस समय 80 प्रतिशत विधायक मुख्यमंत्री का साथ छोड़ देते हैं। नया आ रहा है। उसको पकड़ों। हमें मंत्री बनना है। हमें काम पड़ेंगे उनसे। ये कायदा होता है। मैं इसे बुरा नहीं मानता। क्या कारण था कि नया मुख्यमंत्री के नाम से ही 102 लोग भड़क गए। इस तरह आजतक कभी नहीं हुआ। इन विधायकों को क्या भय था, क्या फीलिंग थी मन के अंदर।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि कैसे उनकों मालूम पड़ा। कैसे अंदाज कर लिया। मैं नहीं कर पाया। वो कर पाए। विधायकों के भड़कने की नौबत क्यों आई। हमारे नेताओं को और सभी पक्षों को सोचना चाहिए। विधायकों में आक्रोश पैदा क्यूं हुआ है। हम में कुछ कमियां है तो इसे दूर करने के प्रयास करने चाहिए। राजस्थान में चुनाव जीतना हमारे लिए बहुत आवश्यक है। राजस्थान जीतेंगे तो आगे चुनाव जीतने की संभावना बढ़ेगी।
एक अन्य सवाल के जवाब में गहलोत ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए वरिष्ठ कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे डिजर्व करते हैं। दलित नेता है। 50 साल राजनीति करने का अनुभव है। कई बार बार चुनाव जीते हैं। संगठन में काम करने का लंबा अनुभव है। पार्टी को इसका लाभ मिलेगा।