नई दिल्ली। विश्व हिन्दू परिषद ने अनुसूचित जाति के धर्मांतरित लोगों को आरक्षण की मांग का कड़ा विरोध करते हुए आज कहा कि इससे देश में धर्मांतरण तेजी से बढ़ने और बाद में धार्मिक आधार पर आरक्षण दिये जाने का मुद्दा उठाए जाने की आशंका है। विहिप मिशनरियों एवं मौलवियों के इस षड़यंत्र के खिलाफ देश में जनजागरण अभियान चलाएगी।
विहिप के संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेन्द्र जैन ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि मतांतरित अनुसूचित समाज को आरक्षण का लाभ दिलाने की मांग न केवल संविधान विरोधी और राष्ट्र विरोधी है अपितु अनुसूचित जाति के अधिकारों पर खुला डाका है। उन्होंने कहा कि मिशनरी एवं मौलवी बार-बार यही दोहराते हैं कि उनके मजहब में जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है और उनका मजहब स्वीकार करने के बाद कोई पिछड़ा नहीं रह जाता है। इसके बावजूद जब वे अपने समाज में मतांतरित हो कर आए लोगों के लिए बार-बार आरक्षण की मांग करते हैं तो न केवल उनका समानता का दावा खोखला सिद्ध होता है अपितु उनके गलत इरादों का भी पर्दाफाश होता है।
डॉ. जैन ने कहा कि उनका उद्देश्य न्याय दिलाना नहीं अपितु मतांतरण की प्रक्रिया को तेज करना है। यह अनुचित मांग न केवल सामाजिक न्याय अपितु संविधान की मूल भावना के विपरीत किया गया एक षड्यंत्र है। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि संविधान में धार्मिक आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं है। मतांतरित लोगों को आरक्षण धार्मिक आधार पर आरक्षण का पहला चरण हो सकता है और आगे चल कर धार्मिक आधार पर आरक्षण की मांग उठाई जाएगी।
उन्होंने कहा कि 1932 में पूना पैक्ट करते समय डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण पर सहमति व्यक्त की थी। दुर्भाग्य से 1936 से ही मिशनरी और मौलवी मतांतरित अनुसूचित समाज के लिए आरक्षण की मांग सड़क से लेकर संसद तक निरंतर उठाते रहे हैं।
विहिप नेता ने कहा कि 1936 में महात्मा गांधी और डॉक्टर अंबेडकर ने इस मांग को अनुचित ठहराया था। संविधान सभा में भी जब इस मांग को पुनः उठाया गया तो संविधान निर्माता डॉक्टर अंबेडकर ने इसे देश विरोधी सिद्ध करते हुए ठुकरा दिया था। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू और स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने भी इस मांग को अनुचित करार दिया था। इसी मांग को लेकर 1995 में दिल्ली में एक 10 दिवसीय धरने का आयोजन मिशनरियों के द्वारा किया गया था जिसमें सामाजिक समानता और सेवा की ध्वज वाहक माने जाने वाली स्वर्गीय मदर टेरेसा ने भाग लिया था।
विहिप नेता ने आरोप लगाया कि बार-बार ठुकराने की बावजूद उनकी निरंतरता यह सिद्ध करती है कि उनके पीछे धर्मांतरण करने वाली अंतर्राष्ट्रीय शक्तियां काम कर रही हैं। डॉ. जैन ने बताया कि संविधान सभा व संसद द्वारा बार बार ठुकराने पर वे न्यायपालिका में भी जाते रहे हैं और न्यायपालिका भी इनकी अनुचित मांग को ठुकराते रही है।
1985 में ‘सुसाइ व अन्य बनाम भारत सरकार’ मामले में तो उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि मतांतरित अनुसूचित जाति को आरक्षण की मांग संविधान की मूल भावना के विपरीत है। इसके बावजूद 2004 में एक बार फिर से न्यायपालिका में गए जो मामला अभी तक लंबित है।
उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इस नाजायज मांग को स्वीकार कर लिया जाता है तो इससे अवैध धर्मांतरण की गतिविधियां तीव्र हो जाएंगी, ‘छद्म ईसाई’ खुलकर सामने आएंगे जो कुल आबादी का चार प्रतिशत हैं जबकि घोषित ईसाइयों की आबादी दो प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण में मतांतरित लोगों को आरक्षण का लाभ मिलने से बड़ी संख्या में आदिवासी आबादी का धर्मांतरण तेज हुआ है और नागालैंड में सर्वाधिक धर्मांतरण होने के कारण वहां देशविरोधी गतिविधियां किस कदर बढ़ीं, यह सब जानते हैं।
उन्होंने कहा कि मतांतरित लोगों को आरक्षण देने से देश में जनसंख्या असंतुलन के खतरे बढ़ जाएंगे और जिस अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान किया है वे इससे वंचित हो जाएंगे। विहिप इस राष्ट्र विरोधी मांग के विरोध में एक राष्ट्रव्यापी जनजागरण अभियान चलाएगा।
वाल्मीकि महासभा के अध्यक्ष पूर्व न्यायाधीश पवन कुमार ने ईसाई मिशनरियों और मौलवियों को चेतावनी देते हुए कहा कि अनुसूचित जाति के अधिकारों पर डाका डालने का उनका प्रयास सफल नहीं हो पाएगा। अनुसूचित जाति का समाज किसी भी स्थिति में उनके षडयंत्रों को सफल नहीं होने देगा। मिशनरियों और मौलवियों का यह षड्यंत्र राष्ट्र विरोधी और संविधान विरोधी है। हर स्तर पर उनके इस षड्यंत्र का मुकाबला अवश्य किया जाएगा।