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Who is responsible for irregularities in sirohi municipal council - Sabguru News
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सिरोही नगर परिषद में भाजपा बोर्ड में अव्यवस्था के जिम्मेदार विधायक तो अब कौन?

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सिरोही नगर परिषद में भाजपा बोर्ड में अव्यवस्था के जिम्मेदार विधायक तो अब कौन?
सिरोही नगर परिषद आयुक्त कक्ष।
सिरोही नगर परिषद आयुक्त कक्ष।

कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये
सबगुरु न्यूज-सिरोही। उक्त< पंक्तियां दुष्यंत कुमार की हैं। सालों पहले लिखी हुई हैं लेकिन, राजनीतिक हलकों में आज भी लागू होती है।
सिरोही मामले में इसके जिक्र इसलिए जरूरी था कि नगर परिषद चुनाव से पहले भी कांग्रेस ने और स्थानीय विधायक ने पिछले भाजपा बोर्ड में सिरोही नगर परिषद व्याप्त अव्यवस्था को दुरुस्त करने के चुनावी वादे किए थे। लेकिन वर्तमान में हालात उससे भी बदतर हो चुके हैं जो भाजपा शासन में थे। उस समय पार्षदों के इतना मान था कि इनकी सुनवाई हुआ करती थी, अब तो कांग्रेस बोर्ड में पार्षद और जनता दोनों ही भटक रहे हैं। कथित आबूरोड कांग्रेस के प्रभाव में लगाये अधिकारी ने पार्षद, सामान्य सिरोहीवासियों को फुटबाल बना दिया है।

आम आदमी इतना सक्षम नहीं है कि अपनी हर छोटी छोटी फरियाद लेकर सर्किट हाउस या शिवगंज दरबार में जा सके। यूँ विपक्ष में थे तो संयम लोढ़ा सरजावाव दरवाजे और नगर परिषद में जन सुनवाई किये थे। लेकिन, उनके विधायक बनते ही सिरोही में रामराज आने के कारण सार्वजनिक जन सुनवाई 4 साल में नहीं की। जबकि हकीकत ये है कि सिरोही के अधिकारी ये मान चुके हैं कि उन्हें सिर्फ विधायक संयम लोढ़ा को खुश करना फिर जनता जाए भाड़ में।

जब सिरोही नगर पालिका में भाजपा का बोर्ड था तो यहां की अधिकांश अव्यवस्था के लिये अपने भाषणों में सिरोही के वर्तमान विधायक तत्कालीन भाजपा विधायक को भी जिम्मेदार मानते थे। तो यक्ष प्रश्न ये है कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के अनुसार वर्तमान अव्यवस्थाओं के लिये विधायक के अलावा किसी और को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है या नहीं?

सिरोही नगर परिषद में कांग्रेस के बोर्ड को इस महीने तीसरा साल होने में अभी कुछ दिन बाकी है। यहाँ व्याप्त अव्यस्थाओं के लिए सालगिरह के दिन का इंतजार करना भी अब सिरोही के आम आदमी के लिए घोर नाइंसाफी होगी। तीसरे साल में कितने दावे पूरे हुए और कितने जुमले साबित हुए ये जानना भी जरूरी है।

-कलेक्टर से मिला चार्ज तो कलेक्टर से बढ़कर खटके
नगर परिषद में ये चर्चा आम है कि सिरोही नगर परिषद में आबुरोड कांग्रेस के नेताओ की सिफारिश से लगे सचिव को कलेक्टर के माध्यम से कार्य संचालन के लिए कार्यवाहक आयुक्त पदभार तो मिल गया है। लेकिन, कलेक्टर के माध्यम से मिले इस चार्ज ने आयुक्त के खटके कलेक्टर के बराबर कर दिये हैं।
आम आदमी हो, पार्षद हो या खुद नगर परिषद का कर्मचारी कोई भी बिना साहब की मर्जी के उनके ब्लैक फ़िल्म वाले शीशे के पीछे की दुनिया में घुस नहीं सकता। इस पर भी फरियादी को बाहर खड़ा कार्मिक गेट पर रोकेगा। कागज साहब के पास ले जाएगा। साहब की इच्छा होगी तो वो उस फरियादी को अंदर बुलवाएँगे नहीं तो बाहर के बाहर ही टरका देंगे। इस मामले में ये सिरोही के जिला कलेक्टरों से एक कदम आगे हैं क्योंकि वो कम से कम फरियादी को अंदर तो बुलवाते हैं।
-एक को साधो, जनता को भुला दो
पार्षदों, नगर परिषद कार्मिकों और आम सिरोही वासी के पिछले 3 महीने के अनुभव को माने तो सिरोही नगर परिषद के कार्यवाहक आयुक्त इस नीति पर चल रहे हैं कि यहाँ रहने के लिए सिर्फ विधायक को साध लो तो जनता को फुटबाल बना दो तो भी चल जाएगा। उसकी परिणीति भी सामने दिख रही है।
विधायक संयम लोढ़ा द्वारा सिरोही में लाये गए प्रोजेक्ट के अलावा शेष सभी रूटीन कामों को रोक दिया है।  और जो काम हो भी रहे हैं वो पिक एंड चूस की नीति पर। शुक्रवार को ऐसे ही रूटीन काम वाले कई शाहरवासी नगर पालिका को नरक पालिका बोलते हुए कोसते हुए भी दिखे। भूमि शाखा में बैठे फरियादियों ने तो आयुक्त की कार्यप्रणाली की पोल खोल दी। यहां पर कुछ लोग ऐसे बैठे थे जिनके भवन निर्माण का सपने को अटकाया हुआ था कुछ लोग ऐसे थे जिनके प्रशासन शहरों के संग अभियान के बनकर तैयार पड़े पट्टे कार्यवाहक आयुक्त ने हस्ताक्षर के लिए अटकाए हुए थे।
– हक के पट्टों को भी रोका
प्रशासन शहरों के संग अभियान के दौरान अतिक्रमण नियमन के पट्टे अटकाए तो एक बार फिर भी ये मान लिया जाए कि उसमें कुछ अनियमितता हो सकती है। लेकिन, पिछले आयुक्त के कार्यकाल में कृषि भूमि के आवासीय कनवर्जन का शुल्क जमा होने और पट्टे बनकर तैयार होने के बाद भी दर्जनों पट्टे सिर्फ हस्ताक्षर के लिए अटकाए हुए हैं।

जबकि उन पट्टों पर तहसीलदार के द्वारा भूमि आवेदक की खातेदारी की होने और जीईएन रिपोर्ट के बाद शुल्क भी जमा करवाया जा चुका है। पट्टा तैयार करके उसपर मोहर भी लगा दी गई है। बस आयुक्त बदल जाने से उस पर हस्ताक्षर नहीं हो पाए।
–  तो पूर्व  आयुक्त कर रहे थे अव्यवस्थित काम!
वर्तमान आयुक्त ने खातेदारी कृषि भूमि के पट्टे जिस कारण से अटकाए हैं उसकी जवाबदारी नगर परिषद आयुक्त और सिरोही तहसीलदार की है, लेकिन फरवरी से इसके लिए भटकाया आम आदमी को जा रहा है।

प्रशासन शहरों के संग अभियान अशोक गहलोत सरकार का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है। सिरोही विधायक उन्ही मुख्यमंत्री के सलाहकार हैं। इनकी ही विधानसभा में प्रशासन शहरों के संग अभियान में तहसीलदार और नगर परिषद आयुक्त किस बेतरतीबी से काम कर रहे हैं इसकी पोल सिरोही के वर्तमान आयुक्त अनिल झिंगोनिया ने खोली।
झिंगोनिया ने जिस दलील पर कृषि भूमि के पट्टों पर हस्ताक्षर नहीं किये उसके पीछे वजह ये बताई जा रही है कि तहसीलदार ने सम्बंधित कृषि भूमि की जमाबंदी आवेदक के नाम होने की तस्दीक तो की, लेकिन इसे नगर परिषद के नाम नहीं चढ़ाई। जबकि उसके बाद की सारी प्रक्रिया हो गई, पट्टे बनकर भी तैयार हो गए।

खुद वर्तमान आयुक्त यहां अपने कमरे के कांच पर काली फ़िल्म चढ़ाकर 18-18 घण्टे काम करने का प्रदर्शन करते दिखते हैं लेकिन, तीन महीनों में ये भी ये आठ महीने पुराने आवेदनों के ये काम नहीं करवा पाए। जबकि प्रशासन शहरों के संग अभियान में 15 दिवस में ये काम होने थे।
प्रशासन शहरों के संग अभियान में सभी विभाग एक ही स्थान पर होने चाहिए थे और सारे काम एक ही शिविर में होने थे इसके बावजूद फरवरी के आवेदनों पर काम नहीं होना सिरोही सभापति और विधायक के इस शिविर पर नजर नहीं होने की ओर इशारा कर रहा है। अभी भी शिविर जारी हैं वर्तमान आयुक्त द्वारा इस तरह के सारे आवेदनों की जमाबंदी नगर परिषद के नाम नहीं करवाई गई।
कांग्रेस के पार्षद खुद यहाँ द्वितीय दर्जे के व्यवहार के कारण बेबस हैं और भाजपा पार्षदों के व्यवहार तो फ़ोटो और वीडियो के रूप में पिछले तीन दिनों से सोशल मीडिया में भाजपा में ही निंदा का विषय बना हुआ है। आयुक्त कक्ष में पार्षदों के हल्ला मचाने के बाद भी विधायक और सभापति इस ओर आंख मूंदे रहते हैं। वर्तमान आयुक्त की उक्त दलील को मानें तो इससे पहले सिरोही नगर परिषद में प्रशासन शहरों के संग अभियान में कृषि भूमि के पट्टे नगर परिषद के नाम कृषि भूमि के नामान्तरण के बिना चढ़े हैं तो वो अवैध हैं।
कुल मिलाकर कथित रूप से सिरोही से आबूरोड होते हुए शिवंगज और शिवंगज से आबूरोड होते हुए सिरोही नगर परिषद आयुक्त कक्ष तक पहुंचने वाले आदेश निर्देशों से स्थानीय पार्षदों और कांग्रेस को दरकिनार किये जाने से सिरोही के लोगों को आयुक्त और तहसीलदार ने नगर परिषद और तहसील के बीच में फुटबॉल बना दिया है।