सबगुरु न्यूज-सिरोही। चुनाव पास आते-आते सिरोही में गवर्नेंस के हालात सिर्फ नगर परिषद में ही नहीं प्रशासन में भी बिगड़े हैं।
सिरोही तहसील की स्थिति नगर परिषद से कुछ ज्यादा अच्छी नहीं है। लोगों को नामान्तरण और कनवर्जन के लिए वही समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं जो सिरोही नगर परिषद में झेलनी पड़ रही हैं।
-तहसीलदार के ये हालात
सिरोही तहसील के हाल इसी से पता चल सकते हैं कि तहसीलदार के सिरोही नगर परिषद आयुक्त की तरह फरियादियों को चेम्बर के बाहर लाइन लगवाकर खड़ा रखने और लंबे समय तक नहीं बुलवाने की शिकायत जिला कलेक्टर तक पहुंची। अभी भी हालात में कुछ ज्यादा सुधार नहीं हैं। इसका उदाहरण प्रशासन शहरों के साथ अभियान के तहत लागाए जाने वाले शिविर में तहसील कार्यालय को भेजी जाने वाले जमाबंदी परिवर्तन के मामले को लेकर ही देखी जा सकती है।
सिरोही नगर परिषद के द्वारा मार्च में भेजे गए नामान्तरण के मामले परिवर्तित नहीं किये गए हैं। अधिकारी बदलने पर पेंडेंसी निपटाने की बजाय जन सुनवाई के नाम पर ग्रामीण दौरों के कारण लोग परेशान हो रहे हैं। सिरोही नगर परिषद आयुक्त ने तो अपने कार्यालय के बाहर लगाए गए जनसुनवाई के समय का बोर्ड भी पुतवा दिया है।
– विपक्ष में ऐसे अधिकरियों को यूँ चेताया था वर्तमान विधायक ने
तारीख 16 जनवरी 2018। नगर परिषद के गेट पर तत्कालीन बोर्ड के कांग्रेस पार्षदों का धरना था। वही धरना जिसमें आयुक्त को स्ट्रोक आय्या था। उसमें सिरोही के वर्तमान विधायक कांग्रेस पार्षदों को सम्बल देने को पहुंचे थे।
अपने भाषण में एक महिला की विधवा पेंशन के मामले में अधिकरियो के सम्मानजनक व्यवहार नहीं करने के मामले का जिक्र करते हुए सिरोही विधायक नहीं कहा था कि अधिकारियों का जनता से दुर्व्यवहार ‘अक्षम्य है। माफी देने लायक नहीं है। आपको नौकरी मिली यही लोगों की सार सम्भाल के लिए। आप कोई हमारे मालिक नहीं हो। हम टैक्स भरते हैं। रोटी खाते हैं उस पर टैक्स भरते हैं। गेहूं पर टैक्स भरते हैं। दवाई खाते हैं उस पर टैक्स भरते हैं। तब जाकर तुम्हारा घर चलता है।’
लेकिन, उनके विधायक बनते ही शायद ये अधिकारी अब जनता के टैक्स की बजाय खुद ही माइनिंग करके तनख्वाह लेने लगे हैं। इसलिए आयुक्त, तहसीलदार आदि को लोगों को कमरे के बाहर इंतजार करवाने या कमरे में घुसने ही नहीं दने की छूट मिल चुकी है। चुनाव पास आते आते गवर्नेंस नदारद हो चुकी है।
ये बात अलग है कि मामला विधायक के पास पहुंचे तो कुछ हो जाये और अगर कोई अपनी बात उन तक नहीं पहुंचा पाए तो फिर घूमते रहो। एक का तुर्रा ये रहता है कि उन्हें यहां रहना नहीं है तो आम जन को परेशान करो, दूसरा ये तुर्रा देते हैं कि मैं तो वैसे ही किसी नगर परिषद में तीन महीने से ज्यादा नही रहता इसलिए जनता को परेशान करो। आयुक्त की कार्यप्रणाली तो पिंडवाड़ा और आबूरोड में भी इस मामले में विवादित ही थी।