सिरोही। सिरोही जिले की भाजपा और सिरोही के भाजपा सांसद देवजी पटेल अशोक गहलोत को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सीधे घेरने वाले जिस मुद्दे को राजनीतिक लाभ के लिए छिपा रहे थे उसे भाजपा के सांसद किरोडीलाल मीणा ने उजागर कर दिया।
इसमें अंदरखाने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी माने जाने वाले पाली के पूर्व सांसद बद्रीराम जाखड़ का नाम आ रहा था। लेकिन, किरोड़ीलाल मीणा ने पहली बार सार्वजनिक रूप से इसमें जाखड़ का नाम लेते हुए अशोक गहलोत के परिवार के समर्थन का आरोप लगाया है। लेकिन, किरोड़ीलाल मीणा ने जितना बताया ये मामला सिर्फ उतना ही नहीं है। ये राजस्थान में कांग्रेस के जनशोषण, मानवाधिकार उल्लंघन तथा ब्यूरोक्रेट्स और राजनेताओं गठबंधन का जीता जागता उदाहरण है।
आम आदमी की छूट से गहलोत सरकार ने कांग्रेसियों को फायदा पहुंचाया
माउण्ट आबू के लोग पिछले करीब 40 सालों से मकानों के निर्माण, टूटे मकानों के पुनर्निर्माण, मरम्मत के लिए तरस रहे हैं। 2009 में यहां पर ईको सेंसेटिव जोन लागू हो गया। उस समय अशोक गहलोत सरकार थी। दो साल में इसका जोनल मास्टर प्लान बनाना था। लेकिन, तत्कालीन गहलोत सरकार ने इसे बनने नहीं दिया। इसके बाद 2015 में वसुंधरा सरकार ने इसे लागू किया। लेकिन, इसे एनजीटी में चैलेंज कर देने से यहां के लोगों को निर्माण अनुमतियां नहीं मिल पाई।
2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान अशोक गहलोत ने बामनवाड़ में सभा के दौरान यहां का बिल्डिंग बायलॉज और एस-टू जोन का निर्धारण कर दिया गया। एनजीटी में चल रहे जोनल मास्टर प्लान को चुनौति की अपील का भी निर्णय आ गया। लेकिन, माउण्ट आबू के उपखण्ड अधिकारियों और नगर पालिका के आयुक्तों ने स्थानीय लोगों को एक-एक ईँट और सीमेंट तक को तरसा दिया।
यहीं से शुरू हुआ लीम्बड़ी कोठी का कथित स्कैम। जब माउण्ट आबू उपखण्ड अधिकारी और नगर परिषद आयुक्त माउण्ट आबू के लोगों को भवन निर्माण की मिल चुकी कानूनी अनुमति को अटका रहे थे। इसी दौरान लीम्बड़ी कोठी को टनों निर्माण सामग्री दी गई। जब पूरी दुनिया कोरोना से जूझ रही थी। गहलोत सरकार के द्वारा माउण्ट आबू में लगाए गए उपखण्ड अधिकारी और नगर पालिका आयुक्तों ने आम आदमी को अधिकारों से वंचित करके लिम्बड़ी कोठी को बेहिसाब निर्माण सामग्री जारी करना शुरू कर दिया।
कई अधिकारियो ने नजरअंदाज की अनियमितता
किरोड़ीलाल मीणा के आरोप के अनुसार लिम्बड़ी कोठी के निर्माण में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबियों का बेनामी पैसा लगा है और कथित घोटाला हुआ है। ये आरोप सही हैं तो ये भी सही है कि उस कथित घोटाले को मूर्त रूप देने में माउण्ट आबू से जयपुर तक के कई अधिकारी शामिल हैं। इससे पहले इस कथित घोटाले को करने के लिए राज्य सरकार की भूमिका पर नजर डालना जरूरी है।
सिरोही विधायक संयम लोढ़ा ने विधानसभा में माउण्ट आबू के लोगों को निर्माण के सभी अधिकार मिलने के बाद भी नए भवन निर्माण, टूटे हुए मकानों को तोड़कर पुननिर्माण, मरम्मत आदि करने का अधिकार माउण्ट आबू के उपखण्ड अधिकारी और नगर परिषद द्वारा नहीं दिए जाने का मुद्दा उठाया। इसके जवाब में स्वायत्तशासन मंत्री शांति धारीवाल ने भी माउण्ट आबू में उपखण्ड अधिकारियों के हाथ में समस्त अधिकार दिए जाने पर उनके निरंकुश होने की बात कही।
इसके बाद भी गहलोत सरकार ने नगर पालिका को मिल चुके कानूनी अधिकारों को उपखण्ड अधिकारी को हस्तांतरित करके लोगों के शोषण का अधिकार दे दिया। प्रदेश में गहलोत सरकार बनते ही लीम्बड़ी कोठी को अवैध निर्माण के लिए निर्माण सामग्री जारी करने की शुरूआत माउण्ट आबू के पूर्व उपखण्ड अधिकारी डॉ रविंद्र गोस्वामी के समय से शुरू हुई बताई जा रही है। इसके बाद गौरव सैनी, अभिषेक सुराणा और कनिष्क कटारिया ने इसे यथावत रखा।
कनिष्क कटारिया ने तो इस हद तक अनियमितता बरती कि माउण्ट आबू के आम लोगों को पूर्व उपखण्ड अधिकारियों के द्वारा जारी निर्माण अनुमति को तो रोक दिया लेकिन, अवैध होने के बावजूद लीम्बड़ी कोठी के काम को नहीं रोका। यही नहीं जिन अनियमितताओं के चलते दूसरें मकान तोड़े गए वो सब लिम्बडी कोठी में होते रहे।
कटारिया दूसरे लोगों के निर्माण को सेंटीमीटर और इंच में नापकर नपी तुली सामग्री देते थे, लेकिन लिमबड़ी कोठी में पूरा एक अतिरिक्त माला निर्माण करने की निर्माण सामग्री जारी करते रहे। सूत्रों की मानें तो जब भी इसका विरोध होता या शिकायत होती तो किसी अधिकारी के सक्रिय होने पर जयपुर में बैठे एक प्रमुख अधिकारी इसके निर्माण में बाधा पहुंचाने वाले अधिकारियों को हड़का दिया करते थे।
आयुक्तों की नियुक्ति भी जाखड़ की पैरवी पर!
लिम्बड़ी कोठी के अनियमित निर्माण में किस तरह के राजनीतिक और प्रशासनिक गठजोड़ से किया गया ये इससे पता चलता है कि नगर पालिका में आयुक्तों की नियुक्ति में भी बद्रीराम जाखड़ के दखल होने के आरोप लगने लगे थे। इसकी परिणिति यह हुई कि यहां पर आशुतोष आचार्य, जितेन्द्र व्यास, रामकुमार और शिवपालसिंह आयुक्त लगे।
कथित रूप से अशोक गहलोत के करीबी नेता जाखड़ की सरपरस्ती के कारण इन लोगों ने माउण्ट आबू के नगर परिषद कार्यालय में किसी स्थानीय व्यक्ति और जनता की नहीं सुनी। कार्यालयों से गायब रहे। वर्तमान में जिस रामकिशोर को फिर से आयुक्त तैनात किया गया है वो तो इसलिए हटाए गए थे कि किसी स्थानीय निवासी को फोन नहीं उठाते थे। इसके बावजूद फिर से उसे माउण्ट आबू लगाया गया।
लीम्बड़ी कोठी के लिए उपखण्ड अधिकारी कार्यालय से जारी निर्माण सामग्री के टोकन किसी जुगलकिशोर जाखड़ के नाम से बताई जा रही है। ये बद्रीराम जाखड़ के निकट रिश्तेदार बताए जाते हैं। माउण्ट आबू में आयुक्तों की नियुक्ति को सीधे तौर पर जुगलकिशोर जाखड़ के द्वारा नियंत्रित करने का आरोप लगता रहा है। इसी कारण यहां के आयुक्तों ने स्थानीय लोगों का उत्पीड़न कर अकेले जाखड़ और उनके लिंबडी कोठी के प्रोजेक्ट का पोषण करने की नीति अपनाए रखी।
इस तरह की अनियमितता
किरोड़ीलाल मीणा ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक बात गलत बोली वो ये कि माउण्ट आबू में निर्माण पर रोक है। माउण्ट आबू में निर्माण पर रोक नहीं बल्कि ईको सेंसेटिव जोन के तहत बने बिल्डिंग बायलॉज के तहत निर्माण कार्य नियंत्रित यानि रेगुलेटेड है। जिसे उपखंड आधिकारी और आयुक्तों ने पाबन्दी में बदल रखा है। यहीं से सबसे बड़ा स्कैम और अनियमितता सामने आती है।
जिस क्षेत्र में लिम्बडी कोठी है वो क्षेत्र जोनल मास्टर प्लान में नो कंस्ट्रक्शन जोन में है। इसके अलावा पुराने बने हुए भवनों को भी जी प्लस टू और उंचाई 11 मीटर तक निर्धारित की गई है। लीम्बड़ी कोठी में इन दोनों का उल्लंघन हुआ। लीम्बड़ी कोठी पहले ही जी प्लस टू बना हुआ था। माउण्ट आबू के उपखण्ड अधिकारियों ने इसे जी प्लस थ्री बनाने के लिए बेहिसाब निर्माण सामग्री जारी करते रहे।
कानून में प्रावधान होने के बाद भी उपखंड अधिकारीयों ने आम आदमी को टिनशेड की जगह आरसीसी डालने की अनुमति नहीं दी। लेकिन, माउंट आबू के उपखण्ड अधिकारियों ने लीम्बड़ी कोठी और दूसरी बड़ी होटलों को ये अनुमति दी। आम आदमी को अपने टूटे हुए टॉयलेट बनाने की अनुमति नहीं है। नो कंस्ट्रक्शन जोन में होने के बाद भी माउण्ट आबू के उपखण्ड अधिकारियों और आयुक्तों ने लीम्बड़ी कोठी में हर कमरे में टॉयलेट निर्माण की अनुमति और निर्माण सामग्री जारी की।
हुआ इतना बड़ा खेल
माउण्ट आबू में अधिकारियों की नियुक्ति को नियंत्रित करने के पीछे सबसे बड़ा कारण था लिम्बड़ी कोठी को नो कंस्ट्रक्शन जोन से बाहर निकालना। एनजीटी ने जब माउण्ट आबू के जोनल मास्टर प्लान को संशोधित करने का आदेश दिया तो नेताओं और अधिकारियों ने मिलकर एक सबसे बड़ा खेल खेला।
दरअसल, जोनल मास्टर प्लान में नक्की से देलवाड़ा जाने वाले मार्ग के पश्चिमी हिस्से को नो कंस्ट्रक्शन जोन में शामिल किया गया है। लिंबडी कोठी इसी क्षेत्र में पड़ती है। जयपुर से डीएलबी से एक आदेश आया। इसमें लिखा था कि नक्की से अहसान अली की दरगाह से अर्बुदा मंदिर मोड़ तक के मार्ग पर पश्चिमी हिस्से को नो कंस्ट्रक्शन जोन से बाहर किया जाए। इस प्रस्ताव को माउण्ट आबू नगर पालिका में पास करके फिर से डीएलबी भेज दिया गया।इसे लेकर पाली में को कांग्रेस के नेता सीडी देवल ने अपत्ति भी दर्ज करवाई थी।
आरोप ये लग रहा है कि अब चूंकि इस प्रस्ताव में अड़ंगा आ गया इसलिए गहलोत सरकार माउण्ट आबू के जोनल मास्टर प्लान को संशोधित नहीं कर रही है। जबकि हाल में अप्रेल में हुई एनजीटी की सुनवाई में जोनल मास्टर प्लान को संशोधित नहीं किये जाने को लेकर गहलोत सरकार को आड़े हाथ भी लिया और मुख्य सचिव को तलब करने की हिदायत दी।
मॉनीटरिंग कमेटी में निर्णय लिए जाने के बाद भी जोनल मास्टर प्लान संशोधित नहीं होने के बहाने से माउण्ट आबू के उपखण्ड अधिकारी और आयुक्त माउण्ट आबू में आम लोगों को नए निर्माण और जर्जर हो चुके भवनों के पुननिर्माण की अनुमति नहीं दे रहे हैं।
यही नहीं यहां पर जोनल मास्टर प्लान लागू नहीं होने के बहाने से नगर पालिका और उपखण्ड अधिकारियों ने निर्माण अनुमतियां रोक रखी हैं, लेकिन इसी जोनल मास्टर प्लान के आधार पर पूर्व आयुक्त शिवपालसिंह और वर्तमान आयुक्त रामकिशोर लोगों को पट्टे दे रहे हैं। जिनमें भारी अनियमितता के आरोप भी लग रहे हैं। जबकि माउंट आबू में फिलहाल जोनल मास्टर प्लान और बिल्डिंग बायलॉज के तहत नए निर्माण, जर्जर मकानों के पुनर्निर्माण, मरम्मत, रिनॉवेशन एडीशन अल्ट्रेशन की कोई रोक नहीं है।
कथित रूप से अशोक गहलोत के करीबियों को निर्माण अनुमति देने वाले उपखंड अधिकारियों और आयुक्तों ने न्यायालय के आदेशों की अपने अनुसार समीक्षा करके माउंट आबू में कई सालों से रह रहे लोगों को अनुमति जारी करने पर रोक लगा दी है। हाल ये है कि माउंट आबू का जोनल मास्टर प्लान 2030 तक का है। इसमें से 10 साल गहलोत सरकार ने बर्बाद कर दिए। 7 साल बाद फिर से नया प्लान बनने जाएगा।
कांग्रेस नेताओं के बच्चों के लिए स्थानीय बच्चों का पलायन
राजस्थान के कश्मीर को अशोक गहलोत सरकार और इनके अधिकारियो ने भारत के कश्मीर की सी स्थिति पैदा कर दी है। माउंट आबू में ईको सेंसेटिव जोन के तहत जोनल मास्टर प्लान में स्थानीय लोगों के व्यवसाय, रहवास, सेनिटेशन के मौलिक अधिकार और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए दिए गए अधिकारों का मुख्यमंत्री कार्यालय और स्वायत्त शासन मंत्रालय के संरक्षण में माउंट आबू के उपखंड अधिकारी और आयुक्तों ने दमन किया।
इन अधिकारों से स्थानीय लोगों को वंचित करके कांग्रेस नेताओं को फायदा पहुचाया। परिणाम स्वरूप राजस्थान कांग्रेस के अशोक गहलोत के करीबी नेताओं के बच्चों के होटल उद्योग यहां पनपाये गए और स्थानीय लोगों के व्यसायिक और आवासीय अधिकारों का दमन करने से उनके बच्चों को माउंट आबू छोड़ने को मजबूर होना पड़ रहा है।
सामाजिक ताने बाने को इस तरह से कुचला कि तीन पीढियां एक ही कमरे में रहने को मजबूर हैं। इस कारण युवाओं की शादियां नहीं कर पा रहे थे यहां के लोग। ऐसे में माउंट आबू छोड़कर आबूरोड, अम्बाजी, अहमदाबाद, पालनपुर और अन्य जगहों पर पलायन कर गए। लोगों ने अपने हक के लिए धरने दिये तो कनिष्क कटारिया जैसे उपखंड अधिकारियो ने धरनार्थी को शांति भंग में गिरफ्तारी की स्थिति ला दी।