सबगुरु न्यूज-माउंट आबू। भाजपा पार्षद सौरभ गांगाडिया ने इको सेंसेटिव ज़ोन माउंट आबू की मॉनिटरिंग कमिटी के अध्यक्ष को पत्र लिखकर माउंट आबू की मॉनिटरिंग कमिटी की बैठक शीघ्र बुलवाने का अनुरोध करते हुए गुलामी का प्रतीक बन चुकी टोकन व्यवस्था को हटाने का अनुरोध किया है।
गंगड़िया ने लिखा कि उच्च न्यायालय के आदेश के उपरांत यह तो स्पष्ट हो गया है कि मॉनिटरिंग समिति के कार्य करने पर व निर्णय लेने पर कोई रोक नही है ।
अतः अतिशीघ्र मॉनिटरिंग समिति की बैठक का आह्वान कर, आबू के जन हित व पर्यावरण संरक्षण के गंभीर मुद्दों पर चिंतन कर समाधान हेतु मार्गदर्शन व आदेश करावें ।
इस पत्र में बैठक मेंलिए जा सकने वाले प्रस्तावों के सुझाव भी उन्हें दिए हैं।
इसमें बिपरजोय चक्रवात में हुए नुकसान व घरों की मरम्मत हेतु किए गए आवेदनों पर त्वरित कार्यवाही व repairs हेतु निर्माण सामग्री का आबू पर्वत पर ही उपलब्ध करवाने का निर्णय व प्रयोजन करवाने का अनुरोध किया है।
गांगडिया ने लिखा कि आबू पर्वत पर स्थापित निर्माण सामग्री हेतु टोकन व्यवस्था का सरलीकरण करना या फिर टोकन व्यवस्था को निरस्त करना चाहिए । उन्होंने लिखा कि यह व्यवस्था पूर्व में मॉनिटरिंग समिति द्वारा ही स्थापित की गई थी व इसे निरस्त करने का या फिर सरलीकरण करने का अधिकार भी मॉनिटरिंग समिति के पास ही है । उन्होंने लिखा कि यह व्यवस्था उस समय लागू की गई थी जब मास्टर प्लान पर असमंजस की स्तिथि थी व विभिन्न न्यायालयों में आबू पर्वत पर निर्माण संबंधित वाद लंबित थे ।
उन्होंने लिखा कि अब स्थिति बहुत हद तक क्लियर हो चुकी है । यह एक अस्थाई व्यवस्था थी पर समय के साथ इसको कानून का रूप दे दिया गया जो कि गलत है।
इस जटिल प्रक्रिया की वजह से आम जन बेहद परेशान है त्रस्त है ।
उन्होंने इसे अव्यवहारिक प्रक्रिया बताते हुए आबू पर्वत पर निर्माण सामग्री के काला बज़ारी के माफिया को जन्म देने वाला बताया है। उन्होंने आरोप लगाया कि टोकन व्यवस्था से गरीबों व सामान्य परिवारों का शोषण होता गया व बड़े लोगो ने मनमाने दाम पर उपलब्ध निर्माण सामग्री का उपयोग कर अपना कार्य पूर्ण किया ।
उन्होंने लिखा कि जब कानून के तहत ( बिल्डिंग बाय लॉज़ 2019 ) बिंदु संख्या 5 के तहत प्लास्टर करने हेतु , पुनः फर्श बनाने हेतु व अपने मालिकी के भूखण्ड पर छज्जा निर्माण हेतु किसी भी स्वीकृति की आवश्यकता नही है तो फिर इन कार्यों के लिए निर्माण सामग्री हेतु टोकन लेना कहाँ तक न्यायसंगत है ,यह एक विचारणीय विषय है ।
इन छोटे छोटे कार्य हेतु आबू पर्वत के आमजन को परेशानी में डालना , धक्के खिलाना ,मानसिक रूप से व आर्थिक रूप से प्रताड़ित करना कहाँ का न्याय है ?
टोकन व्यस्था एक ग़ुलामी का प्रतीक बन कर रह गया है व आबू वासी आज़ाद भारत में अब और ग़ुलाम बन कर नही रहना चाहते । इस पीड़ा से हमे मुक्त करवाने हेतु कोई ठोष निर्णय करावे और आबू वासियों को ग़ुलामी की बेड़ियो से मुक्त कराने का अनुरोध किया है ।
इसमें लिखा कि आबू पर्वत पर स्थित गरीब बस्तियो का मास्टर प्लान 2030 के तहत तीन श्रेणियों में वर्गीकरण किया गया है । उत्थान ( अम्बेडकर कॉलोनी ) पुनर्विकास ( अन्य बस्ती ) और पुनर्वास ( सीतावन बस्ती) प्रावधानों के तहत इन बस्तियों के विकास हेतु कोई ठोस योजना बनाई जावे ताकि इन गरीब बस्तियों में रहने वाले लोगो को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर मिले । इन बस्तियों में हर घर में बिजली ,पानी व शौचालय की मूल भूत सुविधाओं को उपलब्ध करवाना हमारा दायित्व बनता है । सरकार की योजना के तहत इन गरीब बस्तियों में योग्य परिवारों को पट्टे आवंटन हो। सीतावन में बसने वाले परिवारों को किसी अन्य जगह सम्मानपूर्वक विस्थापित किया जाना चाहिए ।
आबू पर्वत पर पुराने बोरवेल को रिपेयर , डिसिल्टिंग व फ्लशिंग की अनुमति प्रदान करावे । ईएसजेड नोटिफिकेशन 2009 के तहत ठोस कचरा प्रबंधन नीति लागू करवाना अतिआवश्यक है ।
आबू पर्वत स्थित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट अभी पूर्ण रूप से कार्यरत नही है । ईको सेंसेटिव ज़ोन में एक प्रभावी एसटीपी का होना बहुत आवश्यक है । सीएनजी और एंड इलेक्ट्रिक चार्जिंग स्टेशन की व्यवस्था हो ।
आबू पर्वत पर सोलर प्लांट स्थापित करने हेतु एक योजना को लागू करना चाहिए । जो भी व्यक्ति सोलर प्लांट स्थापित करना चाहे उसे प्रोत्साहन मिलना चाहिए व आवश्यक सुविधा भी मिलनी चाहिए ।