कोलकाता। मिष्ठान प्रेमी बंगाल वासियों के लिए 14 नवंबर का दिन विशेष महत्व का है क्योंकि अपनी विशिष्ट विरासत को समेटे बंगाल के रसगुल्ला को पिछले वर्ष इसी दिन भौगोलिक पहचान का तमगा हासिल हुआ था।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोशल मीडिया पर जारी अपनी पोस्ट में कहा कि बंगलार रसाेगोल्ला को पिछले वर्ष इसी दिन जीआई तमगा हासिल हुआ था। हम इस मधुर दिवस की खुशी में आज के दिन कोलकाता के #मिस्टी हब में रसोगोल्ला दिबस# मना रहे हैं। सभी का स्वागत है।
न्यूटाउन के मिस्टी हब में इस मौके पर आधारभूत संरचना विकास निगम एक समारोह आयोजित कर रहा है। इसमें प्रख्यात इतिहासविद् रसगुुल्ला की ऐतिहासिकता और विरासत की चर्चा करेंगे।
गौरतलब है कि मिस्टी हब एक ऐसा सांस्कृतिक केन्द्र बन गया है जहां पूरे कोलकाता और अन्य जगहों से बड़ी संख्या में लोग खिंचे चले आते हैं। वहां संगीत कार्यक्रम और बंगाली मिठाइयों के इतिहास पर प्राय: चर्चा होती रहती हैं।
उल्लेखनीय है कि रसगुल्ले की शुरुआत को लेकर पश्चिम बंगाल और ओडिशा में छिड़े विवाद को पिछले साल जीआई के चेन्नई ऑफिस ने सुलझा दिया और फैसला कर दिया है कि रसगुल्ला पश्चिम बंगाल का है न कि ओडिशा का। जीआई एक तरह से इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी का फैसला करती है और बताती है कि कोई प्रोडक्ट्स किस इलाके, समुदाय या समाज का है।
वर्ष 2015 से जीआई रजिस्ट्रेशन को लेकर दोनों राज्यों के बीच विवाद जारी था। ओडिशा ने कहा था कि इस बात के सबूत हैं कि रसगुल्ला राज्य में पिछले 600 सालों से प्रयोग में है जबकि कोलकाता दावा था कि साल 1868 में नबीन चंद्र दास ने पहली बार रसगुल्ला बनाया था जो मिठाई बनाने के लिए खासा प्रसिद्ध थे।