नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी ने आज कहा कि दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के कोरोना विषाणु के संक्रमितों के उपचार की शर्त संबंधी आदेश बदल कर केजरीवाल सरकार को अदालत में फजीहत होने से बचा लिया है।
भाजपा की प्रवक्ता एवं सांसद मीनाक्षी लेखी ने यहां संवाददाताओं से कहा कि दिल्ली की बदहाली के लिए दिल्ली विधानसभा में चुने गये विधायक एवं मंत्री जिम्मेदार हैं जो पद की इच्छा रखते हैं लेकिन अपनी जिम्मेदारियों के प्रति उदासीन हैं।
लेखी ने कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री ने ऐसा परिपत्र निकाला जिसमें कहा गया कि दिल्ली के अस्पतालों में कोई राज्य के बाहर का व्यक्ति इलाज नहीं करा सकता है। उन्होंने कहा कि भारत राज्यों का एक संघ है और सभी लोग भारतीय नागरिक हैं जिनसे देश में कहीं भी कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
ऐसे गैरकानूनी नियमों को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा खारिज होना तय है। क्योंकि 2018 में भी केजरीवाल सरकार के ऐसे ही फैसले काे दिल्ली उच्च न्यायालय में रद्द किया जा चुका था। इसे जानते बूझते हुए भी केजरीवाल ने फिर गंदी राजनीति की और पुन: ऐसा आदेश जारी किया। उन्होंने बैजल के कदम का बचाव करते हुए कहा कि उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार के आदेश को रद्द करके केजरीवाल सरकार को अदालत में फजीहत से बचा लिया है।
लेखी ने कहा कि केजरीवाल सरकार ने कोरोना महामारी के लिए कोई तैयारी नहीं की केवल झूठे प्रचार प्रसार पर ध्यान लगाए रखा। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने पहले कहा था कि 32 हजार बेड कोरोना के मरीजों के लिए दिल्ली में उपलब्ध हैं लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय में पेश एक रिपोर्ट के अनुसार 3100 से कुछ अधिक बेड ही उपलब्ध हैं।
दिल्ली में 38 अस्पतालों में पांच को कोविड अस्पताल में बदलने की बात कही थी लेकिन हकीकत में केवल दो कोविड अस्पताल ही बनाए गए हैं। इससे लोगों को प्राइवेट अस्पतालों का रुख करना पड़ रहा है जहां बेड की कालाबाज़ारी चल रही है।
लेखी ने कहा कि दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। दिल्ली में कोरोना मरीजों के डाटा में हेराफेरी की जा रही है। डाटा में तब्लीगी के लोगों का कॉलम राजनीतिक कारणों से हटाया गया जिससे उनका एवं उनकी गतिविधियों पर नज़र रखना दूभर हो गया और इसी से दिल्ली में यह महामारी तेजी से पैर पसार रही है।
दिल्ली में बीमारी से ठीक होने वालों की दर भी बाकी देश की तुलना में दस प्वाइंट कम है। दिल्ली में डिस्पेंसरी की संख्या 1392 से घटकर 1289 रह गई है। करीब सौ मातृत्व केन्द्र बंद हो चुके हैं। मोहल्ला क्लीनिक एक धोखा साबित हुए हैं। अगर मोहल्ला क्लीनिक में डॉक्टर, नर्स, टेक्नीशियन आदि होते एवं जांच की व्यवस्था होती तो उनकी कोरोना के खिलाफ जंग में अहम भूमिका होती।