चेन्नई। कांची संकरा मठ के 69 वें मठाधीश्वर श्री जयेन्द्र सरस्वती का आज सुबह हृदय गति रुक जाने से देहावसान हो गया। मठ के वरिष्ठ आचार्य 83 वर्षीय संत जयेन्द्र सरस्वती ने सुबह पौने आठ बजे सांस लेने में तकलीफ होने की शिकायत की। उन्हें तत्काल एबीसी अस्पताल ले जाया गया जहां पूर्वाह्न नौ बजे हृदय गति रुकने से उनका निधन हो गया।
जयेन्द्र सरस्वती कुछ समय से अस्वस्थ थे। पिछले कुछ महीनों में उन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। मठ की आधिकारिक वेबसाइट पर शंकराचार्य के निधन की पुष्टि करते हुए कहा गया कि श्री कांची कामकोटि पीठम के 69 वें आचार्य जगदगुरु जयेन्द्र सरस्वती शंकराचार्य स्वामिंगल ने बुधवार सुबह नौ बजे शुक्ल त्रयोदशी (28 फरवरी, 2018) को सिद्धि प्राप्त की।
मठ के अधिकारियों ने बताया कि शंकराचार्य सरस्वती के पार्थिव शरीर को श्रद्धालुओं के दर्शन और प्रार्थना के लिए गुरुवार सुबह तक मठ में रखा जाएगा। मठ के अन्दर नन्दवनम में कल सुबह आठ बजे जयेन्द्र सरस्वती का उनके गुरु चंद्रशेखरेन्द्र सरस्वती स्वामिगल की समाधि के निकट वृंदावन प्रवेश कार्यक्रम (महासमाधि) किया जाएगा।
शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती लगभग 2500 वर्ष पहले आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठ के मुखिया थे। शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती का जन्म 18 जुलाई 1935 को तमिलनाडु के तिरुवरूर जिले में इरुलनीकी गांव में हुआ था। बचपन में उनका नाम सुब्रमण्यम महादेव अय्यर था। कांची मठ के चंद्रशेखेन्द्र ने उन्हें 19 वर्ष की उम्र में 22 मार्च 1954 को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था।
उन्होंने ‘महा पेरियावा’ के संरक्षण में आध्यात्मिक शिक्षा-दीक्षा ली। अपने गुरु के साथ उन्होंने देश के अनेक स्थानों की यात्रा की। वह प्राय: धार्मिक प्रवचन देते रहते थे। इसके अलावा वह आध्यात्मिक और सामाजिक गतिविधियों में शामिल रहे। उनके दिशानिर्देश में मठ ने अनेक स्कूल और अस्पताल खुलवाए।
जनवरी 1994 में चंद्रशेखरेन्द्र सरस्वती ने सिद्धि ली तो जयेन्द्र सरस्वती औपचारिक रूप से मठाधीश्वर बन गए। मुखर और स्पष्ट वक्ता जयेन्द्र सरस्वती ने मठ को विभिन्न सामाजिक गतिविधियों से जोड़ा। उनके प्रयासों से मठ अनेक स्कूलों, नेत्र चिकित्सालयों और अस्पतालों को संचालित कर रहा है। उन्होंने लोगों से सीधे संपर्क बनाया था।
जयेन्द्र सरस्वती के 1987 में अचानक मठ छोड़ देने से विवाद पैदा हो गया था लेकिन 17 दिनों बाद उनके लौट आने से मठ और बड़ी संख्या में उनके अनुयायियों ने उनका स्वागत किया। इसके बाद उन्होंने सामाजिक संगठन जन कल्याण शुरू किया। उन्होंने अटल बिहारी बाजपेयी सरकार के दौरान अयोध्या विवाद के समाधान के लिए मध्यस्थता के प्रयास किए थे, हालांकि वे असफल रहे थे।
नवंबर 2014 में उस समय मठ की प्रतिष्ठा को आघात पहुंचाने वाली खबरें आईं जब जयेन्द्र सरस्वती को कनिष्ठ शंकराचार्य के साथ कांचीपुरम भगवान वर्द्धराज मंदिर के प्रबंधक शंकररमन की हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया। वर्ष 2013 में हालांकि पुड्डुचेरी की एक विशेष अदालत ने दो आचार्यों सहित सभी आरोपियों को इस मामले में बरी कर दिया। शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती के देहावसान की खबर सुनते ही देश और दुनिया भर के उनके अनुयायियों में शोक की लहर दौड गई।