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adhik maas ka mahatva-अधिक मास : परब्रह्म के मातृ रूप में शक्ति की उपासना
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अधिक मास : परब्रह्म के मातृ रूप में शक्ति की उपासना

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अधिक मास : परब्रह्म के मातृ रूप में शक्ति की उपासना
adhik maas ka mahatva
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सबगुरु न्यूज। देवी भागवत महापुराण में परब्रह्म के स्त्री रूप की उपासना के महत्व को बताया गया है ओर प्राचीन काल से यह शाक्त भक्तों का शाक्त भागवत या देवी भागवत पुराण कहा जाता है। इस महापुराण के बारे मे पहली बार विष्णुजी भगवान ने ब्रह्माजी को बताया और ब्रह्माजी ने अपने मानस पुत्र नारदजी को बताया तथा नारदजी ने पुराणों के रचयिता वेद व्यासजी को सुनाया।

वेद व्यासजी ने इस पुराण को विधिवत रूप से लिखकर पहली बार इस पुराण का उपदेश महाभारत में परीक्षित पुत्र जनमेजय को दिया जब राजा परीक्षित को शाप से सर्प ने डंस लिया था और उनकी अकाल मृत्यु हो गई थीं।

उनका मोक्ष नहीं हो पा रहा था। तब देवी भागवत पुराण अर्थात अम्बा यज्ञ कराने की बात बताई ओर सम्पूर्ण देवी भागवत पुराण के बारे में बताया। इसके बाद जनमेजय ने अम्बा यज्ञ देवी भागवत पुराण की कथा यज्ञ अनुष्ठान करा राजा परीक्षित को मोक्ष दिलवाया।

इस उत्तम व पावन पुराण में अठारह हजार श्लोक हैं। संस्कृत भाषा मे इसकी रचना की गईं। इस पुराण में बारह स्कन्ध, तीन सौ अठारह अध्याय है। पुराण में सर्ग प्रति सर्ग वंश वंशानुगत ओर मन्वन्तर वर्णन आदि पाँच विषयों का लक्षण इसमे विद्यमान हैं।

जो निर्गुण है, सदा विराजमान हैं, सर्व व्यापी हैं जिसमे कभी विकार नहीं होता, जो कल्याणमय विग्रह है जो योग से जानी जा सकती हैं तथा सब को धारण करने वाली, तुरीयावस्थापन्ना है उन्हीं भगवती की सात्विक राजसी और तामसी शक्तियां स्त्री की आकृति में महालक्ष्मी महा सरस्वती महा काली के रूप प्रकट होती हैं।

संसार की अव्यवस्था दूर करने के लिए इनका अवतार होता है। इन तीनों शक्तियों को जो शरीर धारण करतीं हैं उसे ही सर्ग कहा जाता है। स्थिति सृष्टि और संहार का कार्य करने के लिए ब्रह्मा विष्णु और रूद्र के रूप में उन आद्या शक्ति का प्रकट होना ही प्रति सर्ग हैं। सूर्य वंश व चन्द्र वंश आदि बाते “वंश ” है।तथा मनुओ का वर्णन मन्वतर है और इनकी वंशावली वंशानुकीर्तन है। आदि सभी बातों का उल्लेख देवी भागवत पुराण में मिलता है।

ऐसी धार्मिक मान्यताएं हैं कि अधिक मास के अवसर पर देवी भागवत पुराण की कथा पढने सुनने से और उसी अनुरूप दान पुण्य करने से सभी पितृ दोष शांत हो जाते हैं तथा घर परिवार में सुख समृद्धि व वंश की वृद्धि होती हैं। सर्वत्र सहयोग व समन्वय का वातावरण बनाता हैं। ऋण, शत्रु, मुक़दमा, रोग से निजात मिलती है।

धार्मिक ग्रंथों व साहित्यों मे वर्णित है कि ब्रह्मा विष्णु और महेश आदि ने सृष्टि जगत के लिए देवी शक्ति की उपासना की तथा सभी देवताओं ने संकट के समय देवी का आशीर्वाद लिया।

सौजन्य : भंवरलाल