सबगुरु न्यूज। लाइट, कैमरा-एक्शन का जिक्र आते ही फिल्मी प्रशंसकों में बॉलीवुड या कहें फिल्मनगरी का नाम अपने आप ही जुबान पर आ जाता है। इस मायानगरी ने कई प्रतिभाओं के सपने भी सच किए, यही आगे चलकर फिल्मी सितारे के रूप में सामने आए। इन सितारों की एक झलक पाने के लिए फैंस, प्रशंसकों का घंटों इंतजार करना और एक ऑटोग्राफ के लिए होश भी खो देना बताता है कि इन फिल्मी कलाकारोंं के लिए कितनी दीवानगी हुआ करती है। यही नहीं हजारों प्रशंसक तो इन सितारों को भगवान का दर्जा भी देेते हैं। कभी यह बॉलीवुड सद्भाव, प्रेम और भाईचारा का समाज में संदेश भी देती रही है। लेकिन जब बॉलीवुड और सितारों का एक ऐसा चेहरा सामने आता है जिसमें, गुटबाजी एक दूसरे से आगेे निकलने की जलन खुलकर सामनेेेे आने लगती है। एक्टर की वास्तविक लाइफ फिल्मी किरदारों से काफी अलग होती है।
मौजूदा समय में बॉलीवुड के कलाकार जिस प्रकार से अपनी जिंदगी जी रहे हैं अगर इनके पन्ने खोल दिए जाए तो प्रशंसकों में भारी निराशा के भाव स्वयं आने लगे हैं। हम बात कर रहे हैंं युवा और जोशीले कलाकार सुशांत सिंह राजपूत की सुसाइड केे बाद बॉलीवुड का जिस प्रकार से डर्टी चेहरा सामनेे आता जा रहा हैैैै वह बताता है कि यह मायानगरी किस मुहाने पर आ खड़ी हुई है। अब सुशांत सिंह की मौत के बाद कई फिल्मी सितारों पर आरोप लग रहे हैं। आज बॉलीवुड गुटबाजी में पूरी तरह स बंटा हुआ नजर आ रहा है। कलाकारों का यह भयावह रूप उन प्रशंसकों और फिल्मी दीवानों के लिए बेहद ही निराशा और आक्रोश से भरा होता चला जा रहा है जिन्होंने मायानगरी का अपनापन और सद्भाव देेखा है। कंगना रनौत, शेखर कपूर, विवेेक ओबरॉय, रवीना टंडन आदि कलाकारों ने फिल्म इंडस्ट्रीज पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। बॉलीवुड मेंं गुटबाजी को लेकर अभी भी बहुत ने कलाकारों ने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है।
सुशांत सिंह राजपूत के अचानक ही चले जाना, फैंस यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पा रहेे हैं। बिहार के पटना समेत कई शहरों में जबरदस्त आक्रोश बना हुआ है, यही नहीं सुशांत की आत्महत्या के खिलाफ युवाओं ने प्रदर्शन किया और आरोप लगाया कि इंडस्ट्री में भेदभाव के चलते सुशांत सिंह राजपूत ने अपनी जान दी। सुशांत की मौत के बाद से ही सोशल मीडिया पर उनके फैंस और दूसरे लोग बॉलीवुड में नेपोटिज्म (भाई भतीजावाद) का मुद्दा उठा रहे हैं। सुशांत के प्रशंसकों ने करण जौहर, सलमान खान, शाहरुख खान आलिया भट्ट और सोनम कपूर जैसे इंडस्ट्री के तमाम लोगों पर नेपोटिज्म को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है।
मायानगरी और कलाकारों के बीच कितना अपनापन हुआ करता था
हम बात कर रहे हैं हिंदी सिनेमा के 50 के दशक की। उस दौरान दिलीप कुमार, देवानंद और राज कपूर तीनों ही अपने पीक पर थे। उसके बावजूद तीनों में इतना प्यार मेलजोल था कि हर सुख दुख में साथ रहना और खूब हंसी मजाक सुनाई पड़ते थे। राजकपूर को लोगों के स्वागत सत्कार का बहुत शौक हुआ करता था। बॉलीवुड को आज भी आरके स्टूडियो की होली जरूर याद होगी। इस होली का आयोजन राजकपूर अपने जीवन के आखिरी समय तक करते रहे थे। पूरे मुंबई में उनकी होली पार्टी मशहूर थी।
जिसमें इंडस्ट्री का हर छोटा-बड़ा कलाकार होली खेलने के लिए आता था, राजकपूर की होली में सभी लोग आपसी प्यार और भाईचारे की तरह से पेश आते थे। इतने बड़े कलाकार होते हुए भी राजकपूर सभी कलाकारों को अपने हाथों से गुलाल लगाया करते थे। आज राजकपूर हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी होली और उनके अपनापन को आज भी लोग मिस करते हैं। हिंदी सिनेमा को विश्व पटल पर शोहरत दिलाने में राजकपूर का बहुत बड़ा योगदान है, उनकी फिल्में सीमाओं से परे थीं। राज कपूर बॉलीवुड को एक फिल्मी परिवार मानते थे।
70 के दशक में बॉलीवुड में मनमुटाव तो हुए लेकिन उनकी भी सीमाएं थी
राजकपूर दिलीप कुमार और देवानंद के 70 के दशक के बाद धीरे-धीरे ढलान पर आने लगे थे। उसके बाद जितेंद्र, धर्मेंद्र, राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन की फिल्मों में एंट्री हुई। इन चारों के अलग-अलग प्रशंसक वर्ग हुआ करते थे। जितेंद्र, अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना के बीच फिल्मों को लेकर मनमुटाव जरूर कई बार देखे गए, लेकिन यह बात खुलकर कभी सामने नहीं आ सकी। ऐसे ही अमिताभ बच्चन और शत्रुघ्न सिन्हा के बीच भी हुवा। लेकिन अपने मतभेद कभी दोनों अभिनेताओं ने सार्वजनिक नहीं किए, अपनी मर्यादा-सीमा का भी पूरा ख्याल रखा।
उसके बाद राज बब्बर को लेकर अमिताभ बच्चन के भी मतभेद गहरा गए थे लेकिन इन दोनों ने भी अपने अपने मनमुटाव अपने तक सीमित रखे थे। उस सिनेमा काल में ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जिन्होंने कभी भी बॉलीवुड को भाईचारे की तरह आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आज के बॉलीवुड की रफ्तार इतनी तेज है कि हर कलाकार एक दूसरे को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ना चाहता है। उसके लिए उसको किसी भी हद से क्यों न गुजरना पड़े। मौजूदा समय में स्थापित फिल्मी सितारे युवा कलाकारों के लिए घातक होते जा रहे हैं यह हमने सुशांत सिंह राजपूत प्रकरण को लेकर देख लिया है। सही मायने में इस मायानगरी का एक भयावह सच सामने आया है।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार