सबगुरु न्यूज। इस जगत में परमात्मा कभी ऐसे महापुरुषों को जन्म देकर भेजते हैं जो स्वयं का ही नहीं बल्कि इस जगत के कल्याण का कार्य भी करते हैं और मानव सभ्यता तथा संस्कृति के मूल्य को स्थापित कर समाज व दुनिया को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं।
अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए दुनिया भौतिक सुख साधनों के पीछे दौडती है। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक जैसे कोई भी रास्ते हों, लेकिन संत केवल उस रास्ते की ओर बढता है प्रकृति अपनी रूहानियत की बर्षा करती है।
उस रूहानी बरसात में संत इतना भीग जाता है कि फिर वह सर्वत्र रूहानियत के जल को छिडकता रहता है और जीव व जगत को कल्याण के मार्ग पर ले जाता है, जहां मानव अपने भौतिक सुख साधनों को बढाकर भी जगत का कल्याण “सेवा रूपी” धर्म से करने लग जाता है।
जात ना पूछे संत की अर्थात संत जाति से नहीं जाने जाते हैं, उनकी अपनी पहचान तो उनके कार्यों से ही हो जाती है और वे जन जन द्वारा पूजे जाते हैं। इनकी दया भावना से मानव भौतिक सुख साधनों को तो पा ही लेता है साथ ही साथ उनके लोक कल्याण का मार्ग भी खुल जाता है। जात, उपाधि, पदवी और राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय दर्जे उनकी शान को कमजोर करते हैं। संत इन सब अलंकरणों से बहुत ऊंचा होता है।
दुनिया में हजारों संत आज भी अपनी रूहानियत की वर्षा से सब को तर कर रहे हैं, भले ही इस दुनिया में अब वे नहीं है। यहीं कारण है कि आज तक भी उनके स्थानों पर आस्था और श्रद्धा के मेले हर वर्ष लगते रहते हैं।
रूहानियत के इन मेलों में राजस्थान के अजमेर जिले में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार पर सालों से उनके उर्स पर आस्था और श्रद्धा का सैलाब उमडता है। देश विदेश तक से उनके मुरीद यहां दर्शन के लिए हर साल आते हैं और अकीदत के फूल व चादर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में उनकी मजार पर पेश करते हैं। यहां तक की देश के सर्वोच्य पद पर आसीन शासनाधयक्ष भी श्रद्धा से अपनी चादर ख्वाजा गरीब नवाज के पेश कर खुद को धन्य करते हैं।
इस वर्ष सोमवार की रात 19 मार्च 2018 से ख्वाजा साहब का 806वां उर्स शुरू हो गया है। संत जन कहते हैं कि हे मानव, संत तो सदा ही हितकारी होते हैं और उनका हस्तक्षेप सदा प्रकृति में होता है। वे सदा ही परमात्मा से दुआ प्रार्थना कर प्राणी जन को सुखी और समृद्ध बनाने में लगे रहते हैं।
इसलिए हे मानव तू अपने अन्दर की ओर झांक जहां महामानव खुद अमर संत बन कर बैठा है, जिस पर ये स्वार्थी मन पर्दा लगाए हुए है। इसलिए वह तुझे कभी संत बाबा और कभी तुझे बहरूपिया तो कभी कल्याण करने वाला बादशाह बनाकर उपाधियां बांटता फिर रहा है। तू इस मन के पर्दे को हटा, तुझे हर संत आत्मा में बैठा ही नजर आएगा और तेरा भटकाव बंद हो जाएगा अन्यथा अकीदत के फूल व चादर तेरे लिए एक चयनित कर्म ही बन कर रह जाएगा।
सौजन्य : भंवरलाल