अजमेर। राजस्थान के अजमेर में चल रहे महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का 807वां सालाना उर्स आज कुल की रस्म के साथ ही संपन्न हो गया।
रजब माह की छह तारीख छठी के मौके पर गुरूवार को आस्ताना शरीफ को गुलाब, केवड़े के जल से धोया गया। इसी के साथ उर्स की पहली तारीख को खोला गया जन्नती दरवाजा भी मामूल कर दिया गया। हालांकि उर्स के मौके पर कल पंद्रह मार्च को जुम्मे की नमाज एवं सत्रह मार्च को बड़े कुल की रस्म होना बाकी है।
इस अवसर पर सुबह दरगाह के आहता-ए-नूर में छठी की फातहा पढ़ी गई और खुद्दाम-ए-ख्वाजा (खादिमों) की ओर से आस्ताना शरीफ में चादर पेश कर मुल्क में अमन चैन, खुशहाली एवं कौमी एकता-भाईचारे की दुआ की गई। अपराह्न ग्यारह बजे दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन की सदारत में दरगाह स्थित महफिलखाने में कुल की महफिल आयोजित की गई और कुरानख्वानी की रस्म अदा की गई।
इस दौरान आस्ताना शरीफ में किसी भी जायरीन को प्रवेश नहीं करने दिया गया और खुद्दाम-ए-ख्वाजा ने ही आस्ताना शरीफ में कुल के छीटों के साथ दुआ मांगी। करीब सवा बजे दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन ने जन्नती दरवाजे में प्रवेश कर आस्ताना शरीफ पहुंचे। उसके बाद उर्स में खुलने वाले जन्नती दरवाजे को भी बंद कर दिया गया।
इससे पूर्व उर्स में आए अकीदतमंदों ने ख्वाजा साहब की मजार को गुस्ल देने की परंपरा के तहत बीती रात से ही आस्ताने की बाहरी दीवारों को केवड़ा-गुलाबजल एवं ईत्र से धोना शुरू किया। यह सिलसिला कुल के छीटें के रूप में पूरी रात चलता रहा और दरगाह शरीफ गुलाब और केवड़े से महकती रही। कुल के छीटें के साथ ही जायरीन के लौटने का दौर भी शुरू हो गया हैं।
गौरतलब है कि कल जुम्मे की नमाज में बड़ी संख्या में देश के दूरदराज से आए जायरीन एवं स्थानीय लोग शिरकत करेंगे और सत्रह मार्च को बड़े कुल के छीटें की धार्मिक रस्म के साथ सालाना उर्स के विधिवत समापन का ऐलान कर दिया जाएगा।