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सावित्री बाई फुले की 123वीं पुण्यतिथि : पुष्पांजलि अर्पित - Sabguru News
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सावित्री बाई फुले की 123वीं पुण्यतिथि : पुष्पांजलि अर्पित

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सावित्री बाई फुले की 123वीं पुण्यतिथि : पुष्पांजलि अर्पित


अजमेर। भारत की प्रथम महिला शिक्षिका तथा सामाजिक क्रांति की अग्रदूत, एक प्रखर, निर्भीक, चेतना सम्पन्न, तर्कशील, दार्शनिक, लोकप्रिय महान मराठी कवयित्री माता सावित्री बाई फुले की 123वीं पुण्यतिथि पर मंगलवार को माली-सैनी समाज समेत विभिन्न समाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने पुष्पांजलि अर्पित की।

नसीराबाद रोड स्थित मनुहार गार्डन में सावित्री बाई फुले जागृति मंच की ओर से आयोजित कार्यक्रम में माता सावित्री बाई फुले को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए बडी संख्या में लोग जुटे। मंच अध्यक्ष सुनीता चौहान ने इस अवसर पर उनकी संघर्षमय जीवन गाथा को एक मिसाल बताते हुए सभी से उनके बताए मार्ग पर शिक्षाओं पर चलने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि खासतौर पर महिलाओं के लिए सावित्री बाई फुले मार्गदर्शक का स्थान रखती हैं।

इस अवसर पर मंजू अजमेरा, सुशीला चौहान, नीतू अजमेरा, ममता चौहान, बबीता टांक, उर्मिला मारोठिया, विजयलक्ष्मी सिसोदिया, गायत्री सांखला, रजनी मारोठिया, मधु चौहान, राजकुमारी टाक, उषा गहलोत, सेवाराम चौहान, अशोक तंवर, जितेंद्र मारोठिया, मामराज सैन, हेमराज सिसोदिया, महेंद्र सिंह चौहान, महेश चौहान, माखनलाल मारोठिया, नरेंद्र टाक, भगवान सिंह मौर्य, मनीष मारोठिया समेत बडी संख्या में गणमान्यजन मौजूद रहे।

सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय

सावित्रीबाई फुले ने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए। वे प्रथम महिला शिक्षिका थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है। 1852 में उन्होंने बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की।

सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ था।

सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं। महात्मा ज्योतिबा को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है। उनको महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है।

ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। वे एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था।

सामाजिक मुश्किलों से सामना

वे स्कूल जाती थीं, तो विरोधी लोग पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 170 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था कितनी सामाजिक मुश्किलों से खोला गया होगा।

सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिए उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुंच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।

1848 में महिलाओं के लिए खोला स्कूल

3 जनवरी 1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने महिलाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पांच नए विद्यालय खोलने में सफल हुए। तत्कालीन सरकार ने इन्हें सम्मानित भी किया। एक महिला प्रिंसिपल के लिए सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया, वह भी पुणे जैसे शहर में।

10 मार्च 1897 को प्लेग के कारण निधन

10 मार्च 1897 को प्लेग के कारण सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया। प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं। एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी छूत लग गया और इसी कारण से उनकी मृत्यु हुई।