Warning: Constant WP_MEMORY_LIMIT already defined in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/18-22/wp-config.php on line 46
राजस्थानी कविता की प्रमाणिकता गांव की संस्कृति से आती है: डा. अन्नाराम शर्मा - Sabguru News
होम Latest news राजस्थानी कविता की प्रमाणिकता गांव की संस्कृति से आती है: डा. अन्नाराम शर्मा

राजस्थानी कविता की प्रमाणिकता गांव की संस्कृति से आती है: डा. अन्नाराम शर्मा

0
राजस्थानी कविता की प्रमाणिकता गांव की संस्कृति से आती है: डा. अन्नाराम शर्मा

पाली। अखिल भारतीय साहित्य परिषद जोधपुर प्रांत की ओर से मंगलवार को आनलाइन मीट के जरिए से आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी में राजस्थानी भाषा एवं आपणी बोली अपणो गांव विषय पर विद्वजनों ने भाग लिया।

संचालक डा. गोविन्द सिंह राजपुरोहित ने बताया कि संगोष्ठी के दूसरे सत्र में जोधपुर प्रांत के 44 साहित्यकारों ने शिरकत की। कवियत्री तृप्ति चतुर्वेदी पाण्डेय की वाणी वंदना मातृ भू की भव्य छवि का एक रूपाकर हो से संगोष्ठी का आगाज हुआ।

संगोष्ठी संयोजक पवन पाण्डेय ने कहा कि राजस्थानी भाषा में जो अपणायत, माधुर्यता व सांस्कृतिक एकरूपता है वह अदभुत है। राजस्थानी शब्द भावों से परिपूर्ण है अतः इस भाषा का अन्य कोई भाषा मुकाबला नहीं कर सकती है ।

अध्यक्षीय उद्बोधन में अखिल भारतीय साहित्य परिषद राजस्थान के क्षेत्रीय अध्यक्ष डा.अन्नाराम शर्मा ने कहा कि राजस्थानी भाषा में मिठास है। इस भाषा एक-एक शब्द संस्कृति परंपरा का वाहक है। अर्थ वैविध्य के लिए अपनी बोली पूर्ण समर्थ है। हमें नई सभ्यता की नई शब्दावली को भी ग्रहण करना है और अपनी भाषा की रक्षा का भाव भी रखना है।

संगठन मंत्री विपिन चंद्र पाठक ने राजस्थानी भाषा को अपनत्व की भाषा कहा जो इसमें मिठास है, आदर सम्मान है वही राजस्थान की पहचान है। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डा. नरेन्द्र मिश्र ने कहा राजस्थानी भाषा में जो स्नेह प्यार दिखाई देता है मैं उसमें वसुधैव कुटुंबकम को खोजता हूं।

डाॅक्टर विक्रम सिंह राजपुरोहित ने कहा राजस्थानी भाषा को जीवित करना पड़ रहा है अतः राजस्थानी भाषा का दिन प्रतिदिन उपयोग बढ़ाना है। जो आनंद राजस्थानी बोली में आता है वह मिठास आदर सम्मान कहीं भी नहीं है। डाॅ. अखिलानंद पाठक ने कहा अपनी बोली अपना गांव का संकल्प और भावना निश्चित रूप से भारतीय संस्कृति और परंपरा में अपनी गांव अपने माटी, अपनी संस्कृति का ना सिर्फ संरक्षण करने वाला विचार है वरन अपने मूल से जुड़े रहने का एक प्रयास है।

वैश्वीकरण के दौर में गांव से युवाओं के पलायन से भारत की संस्कृति, सभ्यता, भाषा-साहित्य का भी पलायन देखा जा रहा है। अगर गांव और मायड़ भाषा को बचाना है तो अपनी बोली अपना गांव पर विचार करना ही होगा। परमानंद भट्ट जालोर ने राजस्थानी दोहे सुनाते हुए कहा कि मां अर मायड़ भोम ज्यूं मायड़ भाषा मान राजस्थानी राखियां रहसी राजस्थान।

प्रमोद श्रीमाली पाली ने कहा कि राजस्थानी भाषा नई पीढ़ी तक पहुंच ही नहीं रही है। हमें अपनी भाषा पर गर्व करना होगा और इसे नई पीढ़ी के संस्कारों में शामिल करना आवश्यक होगा।

डा. गोरधनसिंह सोढा जहरीला के अनुसार देश व यहां की मातृभाषा हिन्दी की बात हो रही है जहां गांव की मिट्टी की सौंधी खूशबू आती है वहीं अपनी बोली पूरे संसार में मिठास घोलती है और वक्त पड़ने पर दुश्मन को ललकारती है व गांव में पैदा हुआ गबरू जवान सीमा पर इस कदर डटकर वन्देमातरम् कहते हुए दुश्मन के छक्के छुड़ाता है।

गांवों की मिट्टी की तासिर है कि बालू मिट्टी भी सोना उपजाती है मगर दुख इस बात का है कि आजकल का माहौल स्वदेशी नहीं रहा, विदेशी भाषा को ज्यादा रूतबे वाली समझ कर लोग उसे अपना बड़प्पन दिखाने की हिमायत करते हैं और गांवों से शहरों की ओर पलायन करते हैं। नतीजा शरीर हनन हो रहा है, यही कारण है कि आज वैश्विक बीमारी कोरोना का घर शहर बने हैं, गांव नहीं। अतः हमें गांवों को सशक्त बनाकर तथा खुद स्वावलम्बी बनकर स्वदेशी के जरिए आत्मनिर्भर भारत का सपना सच्चा करना है।

प्रधानाचार्य विजय सिंह माली ने कहा कि हमें अपनी राजस्थानी बोली व गांवों पर गर्व है। मातृ बोली व गांव संस्कृति और संस्कारों के संवाहक है। मां, मातृभूमि और मातृ भाषा का कोई विकल्प नहीं हो सकता। उन्होंने घर परिवार के साथ प्राथमिक स्तर तक मातृभाषा में पढ़ाई कराने, विद्यालय की प्रार्थना सभा में सप्ताह में एक दिन मातृभाषा का उपयोग करने जैसे उपयोगी सुझाव दिए।

सोजत से डाॅ. श्रीलाल सुथार ने कहा सभी भारतीय भाषाओं को आज अंग्रेजी भाषा के अतिक्रमण से भारी हानि हो रही है। साहित्यकारों पर ही भाषा और संस्कृति को बचाने का गुरूतर दायित्व है। इस अवसर पर अमर चंद बोरड़ श्री गंगानगर, डा.हरिदास व्यास जोधपुर, डा. महेन्द्रसिंह राजपुरोहित, डा. मीनाक्षी बोराणा, डा. कर्णसिंह बेनीबाल बीकानेर, प्रेम
प्रकाश पारीक, डा. कामिनी ओझा, मूलचंद बोहरा बीकानेर, नीरज सिंह शेखावत सादुलशहर, अरुणा गुलगुलिया खाजूवाला, इला पारीक, बसंती हर्ष बीकानेर, नीलम पारीक बीकानेर, आशा शर्मा बीकानेर, लालाराम प्रजापत, दिलीप सिंह परमार सिरोही सहित कई साहित्यकारों ने अपने अपने विचार रखे। आभार डा. पूनाराम पटेल सिरोही ने प्रकट किया।