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मायूस 'अक्षय तृतीया' की बिना 'पेरावनी' के विदाई - Sabguru News
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मायूस ‘अक्षय तृतीया’ की बिना ‘पेरावनी’ के विदाई

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मायूस ‘अक्षय तृतीया’ की बिना ‘पेरावनी’ के विदाई

सबगुरु न्यूज। भारतीय ग्रमीण संस्कृति में आखा तीज एक बडे उत्सव की तरह मनाया जाता है। फसलों के कट कर आने के बाद आर्थिक स्थिति मजबूत हो जाती है तथा बाजारों में भारी लेनदेन ओर धंधे शुरू हो जाते हैं। जेवर, बर्तन, कपडे, किराने की दुकान पर खाद्य सामग्री मिठाईयों की दुकाने तथा इससे जुड़े हर छोटे बड़े काम धंधे तथा मजदूर को हर तरह के रोजगार मिलने लग जाते हैं।

विवाह का यह अबूझ मुहूर्त होता है और हजारों विवाह इस मुहूर्त में होते हैं तथा लाखों रूपए का दान पुण्य इस आखा तीज पर होता चला आया है। इस पर्व के साथ ही अर्थ वयवस्था अपनी गति पर आ जाती है और व्यक्ति बिना मोहताज अपनी मेहनत से अपना घर चला लेते हैं तथा देश की भी सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि हो जाती है। भविष्य के लिए खाद्यान्नों के भंडारण व आयात निर्यात की नीति भी तय हो जाती है।

कोरोना महामारी के संकट से घिरी आखा तीज पर होने वाले यह सब काम रूक गए हैं और लगता है कि एक दुलहन बनकर आई आखा तीज को विदाई ख़ाली हाथ ही हो रही है और उससे जुड़े हर कारोबार उसे बिना पेरावनी किए ही उसे विदा कर रहे हैं।

कोरोना महामारी के संकट में तथा लोक डाऊन की स्थिति में सभी लोग घरों में ही बैठे हैं। कोरोना महामारी से लडने वाले तमाम योद्धा ही घरों से बाहर निकल कर कोरोना पीड़ितों के लिए चिकित्सा में जुटे हैं तो कोई कोरोना संकट के समय प्रभावित लोगों की भोजन सामग्री आदि से मदद कर रहे हैं तो कोई व्यवस्था चाक चौबंद करने मे जुटे हुए हैं क्योंकि सामाजिक डिसटेसिग को बनाए रखना जरूरी है। ऐसी स्थिति में हर त्योहार व उत्सव बंद हो गए हैं और अपनी मान्यताओं के अनुसार घर में ही इन की पूर्ति कर ली जा रही है।

वैशाख मास की शुक्ल तृतीय को अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है। यह युगादि तिथि होती है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार इस दिन किया गया दान, पुण्य, तप, हवन, पिण्ड दान, स्नान आदि सभी उतम माने गए है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन किए स्नान, दान, तप, हवन आदि का अनन्त काल तक फल मिलता है।

मांगलिक कार्य के लिए यह उतम तिथि तथा अबूझ मुहुर्त माना जाता है। अबूझ अर्थात बिना पूछा हुआ मुहूर्त। शादी आदि के लिए यह बडा महत्व का मुहुर्त है। संत जन कहते हैं कि हे मानव निश्चित रूप से तू घर में ही बैठ कर इस आखा तीज को ख़ाली रूप से ही विदा कर लेकिन मन के उत्साह की आखा तीज को मन में ही मना तथा इंतजार कर इस महामारी के जाने का।

इसलिए हे मानव तू विकट घडी में तो अन्न जल खाद्य पदार्थों का जरूरतमंद लोगों की मदद कर तथा मवेशियों के लिए चारा, पक्षियों के लिए दाने तथा पेयजल की व्यवस्था कर इस अक्षय तृतीया अर्थात आखा तीज को भरी हुई विदाई दे। यह जगत की मान्यताओं के देवी देवता हैं केवल जोगणिया धाम पुष्कर के ही देवी देवता नहीं।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर