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जरूरतमंद वकीलों को मिले आर्थिक मदद : इलाहाबाद हाईकोर्ट - Sabguru News
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जरूरतमंद वकीलों को मिले आर्थिक मदद : इलाहाबाद हाईकोर्ट

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जरूरतमंद वकीलों को मिले आर्थिक मदद : इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज। वैश्विक महामारी कोरोना के चलते देशव्यापी लाॅकडाउन में जरूरतमंद वकीलों एवं पंजीकृत अधिवक्ता लिपिको की मदद के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गंभीर रूख अपनाते हुए बार एसोसिएशन एवं अवध बार एसोसिएशन को योजना तैयार कर पांच मई तक आर्थिक सहायता देने का निर्देश दिया है।

मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर तथा न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की खंडपीठ ने यह आदेश दिया है। न्यायालय ने ट्रस्टी कमेटी को तत्काल बैठक कर जरूरतमंदों की सहायता के लिए कार्य योजना तैयार करने को कहा है। प्रदेश के सभी बार एसोसिएशनो के मार्फत तैयार कार्य योजना के तहत कोरोना वायरस महामारी के चलते आर्थिक तंगी से जूझ रहे प्रदेश के वकीलों को पांच मई अगली सुनवाई की तिथि तक आर्थिक सहायता देने को कहा है।

ट्रस्टी कमेटी में महाधिवक्ता अध्यक्ष सहित बार काउन्सिल के नामित दो सदस्य है। प्रमुख सचिव न्याय सदस्य सचिव है जिन्हे निर्णय लेना है। अदालत ने ट्रस्टी कमेटी को अधिवक्ताओं की विधवाओं व आश्रितों की विचाराधीन 300 अर्जियो को एक माह के भीतर निर्णीत करने का भी निर्देश दिया है। इसमें मृतक अधिवक्ता आश्रित को 5 लाख रूपए दिया जाता है।

न्यायालय ने बार काउंसिल आफ इंडिया को आदेश दिया है कि वह 27 अप्रेल तक उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को फंड उपलब्ध कराएं। बीसीआई अध्यक्ष मनन मिश्र ने कहा कि वहा अधिकतम एक करोड़ हर बार काउन्सिल की सदस्यता के हिसाब से देने जा रहे हैं।

केंद्र सरकार से भी 20 हजार प्रति अधिवक्ता की सहायता मांगी है। कोर्ट ने बार काउन्सिल ऑफ इंडिया से कहा है कि वह उत्तर प्रदेश बार काउन्सिल को कार्य योजना तैयार कर बार एसोसिएशन के मार्फत जरूरतमंद अधिवक्ताओं को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराएं। यह आर्थिक सहायता बिना किसी भेदभाव के निष्पक्षता, पारदर्शिता के साथ समान रूप से उपलब्ध कराई जाए।

बार काउन्सिल सभी बार एसोसिएशनो को अकाउंट मेंटेन करने का भी निर्देश दे। इसे एक हफ्ते के भीतर अमल में लाया जाए। इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की कार्यकारिणी का गठन न हो पाने के कारण कोर्ट ने एक मानिटरिंग कमेटी बना दी है जिसमें पूर्व अध्यक्ष राकेश पांडेय, निर्वाचित अध्यक्ष अमरेन्द्र नाथ सिंह, पूर्व महासचिव जेबी सिंह, निर्वाचित महासचिव प्रभा शंकर मिश्र, वरिष्ठ अधिवक्ता वीपी श्रीवास्तव, राज्य सरकार के मुख्य स्थाई अधिवक्ता विकास च॔द्र त्रिपाठी को शामिल किया गया है।

न्यायालय ने मानिटरिंग कमेटी को बार एसोसिएशन के खातों के संचालन का अधिकार दिया है जो योजना तैयार कर सहायता देने का कार्य करेगी। एल्डर कमेटी की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता टीपी सिंह ने बार के खातों का ब्यौरा पेश किया। जिस पर कोर्ट ने कहा कि उनके पास तत्काल मदद के लिए धनराशि है। कमेटी 25 अप्रैल से योजना तैयार कर जरूरतमंद वकीलों को मदद शुरू करें। इसका अलग से अकाउंट रखा जाए।

कमेटी हाई कोर्ट परिसर में स्थित बार एसोसिएशन के कार्यालय में आने पर सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रखे। कोर्ट ने निबंधक शिष्टाचार को कहा है कि वह कमेटी के सदस्यों को परिसर में आने की अनुमति प्रदान करें। कोर्ट ने महा निबंधक को आदेश दिया है वह उच्च न्यायालय की नियमावली के तहत मुन्शियो के पंजीकरण की प्रक्रिया यथाशीघ्र शुरू करें।

कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं से भी अपील की है कि वह अपने स्तर पर मुंशियों को यथासंभव फंड इकट्ठा कर मदद करें। कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी कहा है कि प्रदेश के सभी जिला अदालतों सहित हाईकोर्ट में कार्यरत मुन्शियो के लिए एक कानून बनाने पर विचार करें। याचिका की अगली सुनवाई पांच मई को होगी।

जनहित याचिका की सुनवाई दिल्ली लखनऊ इलाहाबाद कुल सात जगहों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए की गई। बार काउंसिल आफ इंडिया के अध्यक्ष मनन मिश्र, उत्तर प्रदेश बार काउंसिल की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता वी के श्रीवास्तव व अनादि नारायण, अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल, अवध बार एसोसिएशन के परिहार, हाईकोर्ट एल्डर कमेटी के तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता टीपी सिंह, पूर्व अध्यक्ष राकेश पांडेय, निर्वाचित अध्यक्ष अमरेन्द्र नाथ सिंह ने बहस की।

टीपी सिंह ने कोर्ट को बताया कि हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पास आपातकालीन सहायता कोष में 888965 रूपए, हाई कोर्ट बार एडवोकेट वेलफेयर फंड में 21 लाख 62 हजार 47 रूपए, एडवोकेट वेलफेयर फंड में 2748651 रूपये, हाईकोर्ट बार के खाते में 4265719 रुपए मौजूद है। चुनाव खर्च के लिए जमा कराई गई सिक्योरिटी धनराशि में से 12 लाख रुपए अभी तक बचे हैं, जिसमें से साढे छह लाख बार की अलमीरा में एसोसिएशन कार्यालय में रखा है। जिसकी चाभी पूर्व अध्यक्ष राकेश पांडेय के पास है।

उत्तर प्रदेश बार काउंसिल की तरफ से कहा गया कि वह ट्रस्टी कमेटी के क्रियाकलापों से संतुष्ट नहीं है। अधिवक्ताओं की मृत्यु के बाद उनकी विधवाओं व आश्रितों की तरफ से भेजे गए 300 आवेदन विचाराधीन है। जिस पर ट्रस्टी कमेटी निर्णय नहीं ले रही है, जिससे उनकी मृत्यु पर 5 लाख रूपए देने की योजना पर अमल नहीं हो पा रहा है। कोर्ट ने लम्बी बहस के बाद कल ही फैसला सुरक्षित कर लिया था।