सन्तोष खाचरियावास
गौर से देखिए, कई सफेदपोशों के चमचमाते कुर्तो पर घूस की विष्ठा चिपकी है…, खुद को भले ही पाक-साफ दर्शाए लेकिन आसपास का आलम सड़ांध मार रहा है…।
दफ्तरों-चौराहों पर विष्ठा खाने वाले कई सूअर घूम रहे हैं…। कोई अपने बाड़े में ऊपरी कमाई कर रहा है तो दूसरे बाड़े में खुद उसे भी घूस देनी पड़ रही है। मैला खाने-खिलाने और आसानी से पचाने में यह प्रजाति माहिर हो चुकी है। कहने का सीधा-सीधा मतलब यह है कि घूस की विष्ठा अब कइयों को आम का कलाकंद लगने लगी है।
कई तो सुबह घर से बकायदा टारगेट तय कर निकलते हैं कि शाम को कितनी विष्ठा इकट्ठी करके लानी है, ताकि अपने साथ-साथ अपनी बीवी और मासूम बच्चों का भी इसका स्वाद चखा सकें, बच्चों के महंगे स्कूलों की फीस हंसते-हंसते भर सकें, उनके लिए तमाम ऐशो आराम जुटा सकें। उनकी शाही शादी में दिल खोलकर अपना वैभव दिखा सकें।
जैसा खाय अन्न, वैसा होय मन…घूस की विष्ठा पर पलने वाले उनके बच्चे-पोते भी बड़े होकर देश का क्या भला करेंगे, यह कहने की जरूरत नहीं है।
दोषी समाज भी है…, पहले ऐसे सूअरों का सामाजिक बहिष्कार होता था, अब समाज भी उन्हें सिर पर बैठाता है। विष्ठा खाने वालों की डकार अब उनके बीवी-बच्चों की तरह समाज को भी सुगन्धित लगती है। यानी घूस की विष्ठा को सामाजिक स्तर पर भी मान्यता मिल चुकी है।
ताज्जुब तो तब होता है जब घूस मांगने वाला, सामने अपने समाज का भी हो तो परवाह नहीं करता। कुछ कंसेशन भले ही कर दे मगर घूस लेता जरूर है। और जब उसका भ्रष्टाचार उजागर होता है, उस पर कोई कार्रवाई होती है तो वही समाज उसके पक्ष में आंदोलन का झंडा उठा लेता है…। वाकई सामाजिक एकता की परिभाषा भी बदल गई है!
पिछले दिनों एसीबी ने जो रिश्वतखोर पकड़े, उनमें कई तो अपने दफ्तरों में 15 अगस्त और 26 जनवरी पर कई-कई बार तिरंगा भी फहरा चुके थे। अब घूस लेते पकड़े गए तो क्या उनके खिलाफ सिर्फ भ्रष्टाचार का ही मामला दर्ज होना काफी है या फिर देशद्रोह का केस भी चलना चाहिए।
भाजपा हो कांग्रेस सरकारें, हर राज में विष्ठाखोर ऐश कर रहे हैं…। युवा वर्ग इस गंदगी को मिटाने का मन बना चुका है…। दिल्ली के बाद पंजाब में आम आदमी पार्टी ने इसी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार बना ली है…। शनिवार को केजरीवाल ने गुजरात में भी भ्रष्टाचार मिटाने का पासा फेंका है…। राजस्थान भी दूर नहीं है.. चेत जाओ, …वरना, फिर मत कहना कि झाड़ू ने कहीं का नहीं छोड़ा!!