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शाही मजिस्द में अवशेषों की जांच के लिए अधिवक्ता कमिश्नर भेजने की मांग - Sabguru News
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शाही मजिस्द में अवशेषों की जांच के लिए अधिवक्ता कमिश्नर भेजने की मांग

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शाही मजिस्द में अवशेषों की जांच के लिए अधिवक्ता कमिश्नर भेजने की मांग

मथुरा। श्रीकृष्ण जन्मभूमि वाद में शुक्रवार को नया मोड़ आ गया जब श्रीकृष्ण विराजमान बनाम सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड वाद में भी शाही मस्जिद ईदगाह में मौजूद मन्दिर के अवशेषों की सुरक्षा के लिए एक वकील कमिश्नर की मांग की गई।

डीजीसी सिविल संजय गौड़ ने बताया कि सिविल जज सीनियर डिवीजन ज्योति सिंह की अदालत में दिए गए प्रार्थनापत्र में कहा गया है कि वादी की जानकारी में आया है कि प्रतिवादीगण शिला लेखों व धार्मिक कलाकृतियों को मौके से हटा सकते हैं, विस्मार कर सकते हैं और प्राचीन पौराणिक साक्ष्य को मिटा सकते हैं। ऐसी सूरत में प्रतिवादीगण के खिलाफ निषेधाज्ञा इसलिए जारी किया जाना आवश्यक है कि दौरान मुकदमा धार्मिक कलाकृतियों, शिला लेखों व धार्मिक पौराणिक साक्ष्य को विस्मार करने से रोका जा सके अन्यथा वादी के दावे का मंशा ही समाप्त हो जाएगा।

प्रार्थनापत्र में प्रतिवादियों को अस्थाई निषेधाज्ञा द्वारा धार्मिक कलाकृतियों, शिला लेखों व धार्मिक पौराणिक साक्ष्य को विस्मार करने से रोकने का अनुरोध किया गया है। इसके साथ ही अदालत से वरिष्ठ अधिवक्ता नियुक्त कर दोनो पक्षों की उपस्थिति में शाही मस्जिद ईदगाह की वडियोग्राफी सर्वे कराने का भी अनुरोध किया गया है।

उन्होंने बताया कि वादी मनीष यादव ने 15 दिसम्बर 2020 को सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में श्रीकृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ भूमि के एक भाग में बनी शाही मस्जिद ईदगाह को हटाने की मांग संबंधी एक वाद दायर किया था जिसमें शाही मस्जिद ईदगाह आदि को प्रतिवादी बनाया गया था।

आज हुई सुनवाई में शाही मस्जिद ईदगाह एव यूपी सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से उनके अधिवक्ताओं ने समय मांग लिया है। डीजीसी सिविल के अनुसार इस वाद में सिविल जज सीनियर डिवीजन ने अगली सुनवाई के लिए एक जुलाई पहले से ही निर्धारित की है तथा उसमें कोई परिवर्तन नही किया है।

वैसे इस वाद के वादी मनीष यादव ने हाईकोर्ट इलाहाबाद में एक याचिका दायर कर श्रीकृष्ण जन्मभूमि से संबंधित वादों की जल्दी सुनवाई करने का अनुरोध किया था तथा जिस पर गुरूवार को हाईकोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि से संबंधित सभी वादों की सुनवाई चार महीने में पूरा करने का भी आदेश दिया है।

हाईकोर्ट के आदेश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए शाही मस्जिद ईदगाह के अधिवक्ता तनवीर अहमद ने कहा कि इस वाद के वादी मनीष यादव स्वयं इस वाद की हर पेशी में उपस्थित नही हुए हैं तथा जज की आर्डरशीट में इसका जिक्र किया गया है। इसलिए देर तो वे स्वयं कर रहे हैं।

उनके बयान के जवाब में वादी मनीष यादव ने कहा कि वे श्रीकृष्ण जन्मभूमि से संबंधित वादों में मथुरा आ रहे थे लेकिन उन्होंने यह पाया कि यहां पर तो तारीख पर तारीख ही दी जा रही है इसलिए उन्होंने हाईकोर्ट में अपना ध्यान केन्द्रित किया और उसका प्रतिफल भी यह मिला कि हाईकोर्ट ने सभी वादों को चार माह के अन्दर निपटारा करने का आदेश दिया है।

उधर, श्रीकृष्ण जन्मभूमि संबंधी एक अन्य वाद में वादी महेन्द्र प्रताप सिंह एवं चार अन्य द्वारा दायर किए गए वाद में उक्त आशय का प्रार्थनापत्र दो बार पहले ही दिया जा चुका है जिसमें शाही मस्जिद ईदगाह में मौजूद मंदिर के अवशेषों को प्रतिवादियों द्वारा नष्ट करने से बचाने के लिए मन्दिर में एक सीनियर अधिवक्ता कमिश्नर को भेजने व रिपोर्ट लेने का पहले ही अनुरोध किया जा चुका है तथा कमिश्नर की जांच के दौरान दोनो पक्षों की उपस्थिति की भी प्रार्थना की गई है।

महेन्द्र प्रताप सिंह इस वाद में वादी के साथ अधिवक्ता भी हैं। उन्होंने अधिवक्ता कमिश्नर नियुक्त करने के अनुरोध के दूसरे प्रार्थनापत्र में ज्ञानवापी वाराणासी का जिक्र किया है जिसमें अधिवक्ता कमिश्नर द्वारा सर्वे करने का आदेश हाल में ही वाराणासी के सिविल जज द्वारा दिया जा चुका है।

अधिवक्ता महेन्द्र प्रताप सिंह ने आज पुनः प्रार्थनापत्र देकर वाद की सुनवाई के लिए निर्धारित एक जुलाई को बदलने का अनुरोध सिविल जज सीनियर डिवीजन से एक प्रार्थनापत्र के माध्यम से किया है और कहा है कि चूंकि ईदगाह में मौजूद मंदिर के अवशेषों को प्रतिवादीगणों द्वारा नष्ट करने की आशंका है इसलिए उन्होंने अदालत ने एक जुलाई से पहले की तिथि निर्धारित करने का अनुरोध किया है।

डीजसी सिविल के अनुसार श्रीकृष्ण जन्मभूमि से संबंधित नौ मुकदमों में अलग अलग स्तर पर सुनवाई हो रही है किंतु इससे संबंधित पहला वाद जिसे लखनऊ निवासी रंजना अग्निहोत्री ने सिविल जज सीनियर डिवीजन के यहां दायर किया गया था तथा जिसे जज ने अस्वीकृत कर दिया था उसकी रिवीजन की सुनवाई जिला जज राजीव भारती की अदालत में हो रही है तथा जिस पर रिवीजन की वैधानिकता पर 19 मई को विद्वान न्यायाधीश द्वारा निर्णय दिया जाना है।