नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीमकोर्ट को बताया कि महिला सैन्य अधिकारियों को कमांडिंग पोस्ट न सौंपने के पीछे उनके पारिवारिक कारणों और युद्ध में बंदी बनाए जाने के खतरे के अलावा सेना के पुरुष जवानों की मानसिकता भी महत्वपूर्ण कारण है।
केंद्र सरकार ने न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की खंडपीठ के समक्ष यह दलील दी कि महिला सैन्य अधिकारी सेना में कमांड पोस्ट के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती हैं, क्योंकि सेना में जवानों की पलटन फिलहाल महिला अधिकारियों की कमांड स्वीकार करने के लिए मानसिक रूप से अभी तैयार नहीं हैं।
सरकार ने कहा कि महिला सैन्य अधिकारियों को परिवारिक कारणों और युद्ध में बंदी बनाए जाने के खतरे को ध्यान में रखकर भी कमांड पोस्ट सौंपने में अभी समस्या है। केेंद्र ने कहा कि महिलाओं के युद्धबंदी होने की सूरत में उनकी बड़ी पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
सेना में महिलाओं को कमांडिंग पदों पर स्थायी कमीशन दिए जाने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार ने कहा कि सेना के अधिकतर जवान ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं। वहां के सामाजिक ढांचे और सेना में अभी तक काम करने के पुरुष प्रधान तरीके की वजह से महिला अधिकारियों से आदेश लेने के लिए जवान मानसिक रूप से तैयार नहीं किए जा सके हैं।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी कहा कि सेना में तैनाती को लेकर पुरुष और महिला जवानों में उनके शारीरिक स्तरों में अंतर की वजह से एक जैसा निर्णय अभी नहीं लिया जा सकता है। कॉम्बैट यानी आमने-सामने और पारंपरिक युद्ध की परिस्थितियों में महिला अधिकारियों की तैनाती से भी दिक्कतें हो सकती हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता आर बालसुब्रमण्यम और नीति गोखले ने दलील दी कि ऐसे चुनौतीपूर्ण पदों पर महिला अधिकारियों को शामिल करने से सशस्त्र बलों की गतिशीलता में बदलाव आएगा।
महिला अधिकारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली मीनाक्षी लेखी और ऐश्वर्या भट्ट ने केंद्र की दलील का विरोध करते हुए शीर्ष अदालत को बताया कि ऐसे कई मामले देखने को मिले हैं, जब महिलाओं ने विपरीत परिस्थितियों में असाधारण बहादुरी दिखाई है।
शीर्ष अदालत ने संकेत दिया कि महिला अधिकारियों को कमांड पोस्ट पर तैनात नहीं किए जाने की बात से सहमत नहीं हुआ जा सकता। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सेना से कहा कि सांगठनिक जरूरतों के हिसाब से उचित इंतजाम किए जा सकते हैं, क्योंकि पुलिस बल में भी महिलाओं ने कमांडिंग पोस्ट पर बेहतरीन काम किया है। इसलिए बदलते समय में मानसिकता में भी बदलाव करना होगा।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि महिलाओं को भी ऐसे अवसर दिए जाने चाहिए, जहां वे अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमताओं का प्रदर्शन करते हुए देश की सेवा कर सकें।